काव्य :
कैसे कह दूँ श्याम
सुन तुम्हारी बाँसुरी धुन गूँजती दिशाएँ,
ग्वाल बाल होती थी बाबरी गोपिकाएँ।
गउएँ भी चरना भूल लखती थीं बाँसुरी।
सुन बंशी धुन सब खुद को बिसर जाती,
कैसे कहूँ वह धुन सुनने कान तरस जाते,
बंशी बजाने तुम, आज जो नहीं आते।
कैसे कह दूँ श्याम तुम हृदय में समाए हो,
काम क्रोध मद लोभ बीच प्रेम उपजाए हो।
कैसे कह दूँ श्याम
तुम्हारी सूरत है भोली , सबको लेती मोह,
तोतली बोली मुख ब्रह्मांड मैया हो बेहोश।
इंद्र कोप भारी वर्षा पर्वत कनिका पर लिए,
पशु पक्षी बालक वृद्ध सबको शरण लिए।
आज सूखा वर्षा मद मत्सर सब फन फैलाए,
अब न नाथने आते हो न ही शरण लेने आए।
कैसे कह दूँ श्याम तुम हमारे साथ रहते हो,
दुख ईर्ष्या द्वेष भावना में श्याम कैसे बसते हो।
सत्येंद्र सिंह
पुणे, महाराष्ट्र
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हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteमधुर कृष्ण भक्ति!💐
प्रकाशित करने के लिए संपादक श्री. देवेंद्र सोनी जी का धन्यवाद!💐
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