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चंद्रमा के बिम्ब की आकृति के प्रभाव का ज्योतिषीय विवेचन - राजेन्द्र शर्मा भोपाल


 चंद्रमा के बिम्ब की आकृति के प्रभाव का ज्योतिषीय विवेचन 

 - राजेन्द्र शर्मा भोपाल 

ज्योतिषीय विवेचना में चन्द्रमा को मन का कारक बताया गया है क्योंकि चन्द्रमा की गति सभी ग्रहों में सबसे तेज है तथा यह पृथ्वी के सबसे नजदीक भी है इसलिए इसका मानव जाति पर प्रभाव सबसे अधिक देखा गया है यदि जन्म के समय चन्द्रमा की स्थिति शुभ होती है तो व्यक्ति जीवन पर्यंत मन से प्रबल स्थिर प्रकृति का होता है कभी विचलित नहीं होता इसके विपरीत प्रतिकूल स्थिति होने पर व्यक्ति मन से चंचल ज्यादा सोचने वाला एवं मानसिक रोगी भी देखा जाता है चन्द्रमा की प्रतिकूल स्थिति निम्न स्थितियों में बनती है 

1.चंद्रमा का बिंब कृष्ण पक्ष में अर्ध सप्तमी से दूसरी अर्ध सप्तमी तक छोटा होने से 15 दिन अशुभ तथा शुक्ल पक्ष के 15 दिन शुभ रहता है 

2.जन्म के समय यदि चन्द्रमा 6,8,12 वें अशुभ घर में स्थित हों अथवा राहु केतु शनि जैसे अशुभ ग्रह के साथ स्थित हों अथवा दृष्ट हों तो चंद्रमा पीड़ित कहलाता है और अच्छे फल नहीं देता 

हम सब पृथ्वी पर निवास करते है चन्द्रमा पृथ्वी से सबसे नजदीक है और यह पृथ्वी की परिक्रमा मात्र एक माह में पूर्ण कर लेता है इसलिए इसकी शुभ अशुभ स्थिति का प्रभाव समयानुसार मानव जाति पर सबसे अधिक पड़ता है सभी ग्रह गुरुत्वाकर्षण बल के कारण एक दूसरे ग्रह की परिक्रमा अपनी अपनी कक्षाओं में करते हैं तथा इनकी निश्चित ऊंचाई पर निश्चित कक्षाएं भी है जो गोल आकर में न होकर अंडाकार हैं इसलिए जब चन्द्रमा कक्षा में भ्रमण करते समय पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है तब पृथ्वी एवं चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होने के कारण पृथ्वी का वह भाग प्रभावित होता है जो सामने आता है इसलिए समुद्र में ऊंची लहरें उठना ज्वार भाटे आना भूकंप एवं अन्य मौसमी परिवर्तन भी इसकी वजह बनते हैं मानसिक बीमारियों भी इसी समय ज्यादा देखने में आती हैं यह ज्योतिषीय आचार्यों ने भी अनुभव किया है चन्द्रमा की गति स्थिति तो अपना प्रभाव छोड़ती ही है चन्द्रमा की कक्षा ऊर्ध्व होती है इसलिए चन्द्रमा के बिम्ब की आकृति का आम आदमी की जिन्दगी पर दुष्प्रभाव तदानुसार पड़ता है यह प्रभाव बिंब की दिशा दशा स्थिति के अनुसार संबंधित प्रदेश में देखा जाता है चन्द्रमा जब सूर्य के समक्ष 180 डिग्री पर होता है तब पूर्णिमा तिथि होती है और इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूरे बिंब आकर में होता है जैसे जैसे यह आगे बढ़ता है तो प्रत्येक 12 डिग्री पर एक तिथि निर्मित होती है इस प्रकार 360 डिग्री में कुल 30 तिथियां होती हैं इस भ्रमण के दो पक्ष होते हैं एक शुक्ल पक्ष दूसरा कृष्ण पक्ष सूर्य को पार कर जब चन्द्रमा 12 डिग्री आगे बढ़ता है तो एक तिथि निर्मित हो जाती है इस प्रकार प्रथम तिथि से पूर्णिमा तक 15 तिथि शुक्ल पक्ष की तथा पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 तिथि कृष्ण पक्ष की कहलाती हैं जब चन्द्रमा सूर्य में छुप जाता है तो उसके तीव्र प्रकाश के कारण हमें दृष्टिगोचर नहीं होता लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ता है तब इसकी आकृति धीरे धीरे बढ़ते क्रम में विभिन्न रुपों में हमें दिखाई देने लगती है और पूर्णिमा पर पूरा बिंब दिखने लगता है इन विभिन्न आकृतियों का ज्योतिषीय दुष्प्रभाव लक्षण एवं फल दशविध संस्थान के नाम से जाना जाता है 

1.जब चन्द्रमा का आकर नौका के समान अथवा नाव की तरह विशालता को प्राप्त होता है तब नाविक लोगों को पीड़ा एवं अन्य सभी के लिए शुभ होता है 

2.जब चन्द्रमा का आकर किसान के हल के समान हो जाए अर्थात आधा भाग उन्नत हो तो हल से जीवन यापन करने वाले किसानों को पीड़ा होती है शासकों के बीच अकारण स्नेह एवं अन्न की अधिकता होती है यह लाड़गल संस्थान कहलाता है 

3.जब चन्द्रमा का श्रृंग दक्षिण में मोटा एवं उत्तर में पतला होता है तो दुष्ट लाड़गल संस्थान होता है इससे पांड्य देश के शासकों को पीड़ा एवं सेनाओं की यात्रा में उद्यम करता है 

4.जब चन्द्रमा का श्रृंग दंड के समान आकर का हो तो प्रथम दिन यदि सुभिक्ष,वृष्टि होती है तो वह महीने भर तक रहती है यह सम दंड संस्थान कहलाता है इसमें गाय को पीड़ा एवं शासक कठोर दंड देने वाला होता है 

5.जब चन्द्रमा का श्रृंग धनुष के आकार का हो जाए जो उत्तर एवं दक्षिण में विस्तार लिए हो अर्थात चौड़ा हो तो यह कार्मुकयुग संस्थान 

कहलाता है ऐसी स्थिति में जब युद्ध होता है तो धनुष आकृति की जिस दिशा में जीवा होती है उस दिशा के शासक की जीत होती है 

6. जब चन्द्रमा के दक्षिणी श्रृंग का अग्रभाग कुछ ऊंचा हो तो पार्श्वशायि संस्थान होता है इसमें धनी व्यापारी को नुकसान परेशानी  एवं वर्षा का अभाव रहता है 

7. जब चन्द्रमा का श्रृंग नीचे की ओर झुका हुआ हो तो आवर्जित नामक संस्थान होता है और इस स्थिति में मनुष्यों और गोवंश के लिए दुर्भिक्छ होता है चारे एवं अनाज दोनों की कमी हो जाती है 

8. जब चन्द्रमा के श्रृंग में अखंडित गोलाकार रेखा चारों ओर दिखाई तो कुंडाख्य संस्थान होता है इस स्थिति में शासक अपने पद से हट जाते हैं अथवा पद त्याग हो जाता है 

  चन्द्रमा के श्रृंग के कारण शुभ अशुभ प्रभाव तो पड़ता ही है साथ ही जब कोई अन्य ग्रह इनके सामने आकर अपना प्रभाव छोड़ते हैं तब भी उसका प्रभाव पड़ता है प्रभाव की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है कि वेधित ग्रह किस प्रकृति का है यदि वेधित ग्रह एवं चन्द्रमा की प्रकृति समान है तो असर अनुकूल और यदि विरोधी प्रकृति का होता है तो प्रतिकूल प्रभाव देखने में आते हैं जैसे प्रकृति जलीय ,अग्नि तत्व ,वायु तत्व होना इसके अतरिक्त वेधित ग्रह की गति एवं चंद्रमा ग्रह से उसकी दूरी तदनुसार अपना प्रभाव छोड़ती है कक्षाएं ऊपर नीचे होती हैं इसलिए इनका बेधन ग्रह के आकर एवं उसकी स्थिति पर भी निर्भर करता है 

चंद्रमा की गति सबसे अधिक होने के कारण एवं मन की गति तेज होने के कारण इसे मन का कारक कहा गया है

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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