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कहानी : अपना कौन - मधुलिका श्रीवास्तव भोपाल



कहानी : 

 अपना कौन

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     “क्या हुआ नीलम आज भी रोहन ने फ़ोन नहीं उठाया ?”

     “आप जानते हैं तो फिर क्यों मेरे जले पर नमक क्यों छिड़कते हैं ? नीलम ने कुछ कुढ़ कर कहा । 

     “जले पर नमक नहीं छिड़कता बल्कि तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि तुम्हारे बेटे की अपनी अलग दुनिया है , उसके लिए हमारी कोई अहमियत नहीं है ।” कहते हुए कमल किशोर जी आगे बढ़ गए । 

     अचानक नीलम को धक्का लगा और वे गिरते गिरते बचीं, कमल किशोर को भी धक्का लगा।

      ”क्यों बरखुरदार दिखता नहीं है ? कहाँ भागे जा रहे हो?” कमल किशोर जी चीखे।  दौड़ने वाला लड़का पलटकर आया 

     “अंकल आप रनिंग ट्रैक पर टहल रहे हैं । दौड़ते समय ध्यान नहीं रहता।आपको कहीं लगी तो नहीं।माफ़ कीजिए ।”

      “रनिंग ट्रैक क्या होता है ?ये पैदल चलने वालों के लिए बना है उछल कूद करने के लिए नहीं।” कमल किशोर चिढ़ कर बोले।          “ओह अंकल गलती हो गई।” कहकर उसने दोनों के पाँव छू लिए।नीलम एकदम पिघल गई।

       “रहने भी दो बच्चा माफ़ी तो माँग रहा है।” 

     “बहुत बहुत धन्यवाद आँटी , अंकल मैं जाऊँ, मेरे दो राउंड अभी बचे हैं।”

      “जाओ बेटा जाओ , मगर पैदल चलने वाले बूढ़ों का भी ध्यान रखो ।” वह लड़का उन्हें बाय कर फिर दौड़ने लगा ।कमल किशोर और नीलम वहीं रखी बेंच पर बैठ गए।

     “कितना संस्कारी लड़का है बिलकुल अपने रोहन जैसा ! रोहन भी तो ऐसा ही प्यारा सा है ।इसके गाल में गड्ढे कितने प्यारे लगते हैं , हँस रहा था तो कितना भोला लग रहा था ।” 

    “बस तुम्हें तो हर लड़के में अपना रोहन ही दिखता है ।” कहकर वे दूसरी तरफ़ देखने लगे । कमल किशोर और नीलम दोनों ही रिटायर हैं और मेरठ में रहते हैं ।रोहन उनका इकलौता बेटा है जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस गया है ।पिछले तीन सालों से भारत नहीं आया है । उसकी न जाने कौन सी व्यस्तता है कि वह इन लोगों के फ़ोन नहीं उठाता और न ही पलटकर करता है । तीन साल पहले जब भारत आया था ,तब चाहता था कि वे मेरठ का बंगला बेचकर फ़्लैट में शिफ़्ट हो जाएँ ।उस पैसे से वह अमेरिका में अपने लिए घर ख़रीदना चाहता था पर कमल किशोर जी राज़ी नहीं हुए ।   

      “नहीं रोहन हम ने बहुत मन से ये बंगला अपने रहने के लिए बनाया है ।अब फ़्लैट में रहना नामुमकिन है ।” 

     “पापा आप समझते क्यों नहीं है , मुझे वहाँ बहुत दिक़्क़त है।” रोहन आजिजी से बोला । 

      “मैं अपना बंगला नहीं बेचने वाला ! मैंने ये बंगला अपनी मेहनत और बचत से बनवाया है ।तुम भी अपनी मेहनत और बचत से अपने लिए घर ख़रीदो ।मुझ से कोई उम्मीद मत रखना ।” कहकर वे उठ गए ।       

     रोहन अपनी माँ से मिन्नतें करता रहा , पर वे कमल किशोर को नहीं समझा पाईं।रोहन और सोनिया हफ़्ते भर रहे पर कमल किशोर न पिघले।मायूस होकर रोहन और सोनिया चले गये। बस उसके बाद से ही उसने फ़ोन करना और उठाना बंद कर दिया है। जबकि उसके जाने के बाद नीलम की ज़िद के चलते कमल किशोर जी ने गाँव की ज़मीन का एक टुकड़ा बेचकर रुपये रोहन को भेज भी दिए थे। पर शायद वह रक़म अमेरिका के हिसाब से कम थी।तबसे ऐसा रूठा कि माता-पिता को भूल ही बैठा ।   

     नीलम जी अक्सर उसे फ़ोन लगातीं पर वह बहुत मुश्किल से ही फ़ोन उठाता और इधर उधर की औपचारिक बातें कर फ़ोन रख देता। कमल किशोर उन्हें समझाते कि मोह छोडो पर माँ का दिल तड़पता ही रहता।

       कमल किशोर नीलम की उदासी देख कर बहुत चिंतित हो जाते । उन्होंने नीलम को समझा बुझा कर सुबह टहलना शुरू कर दिया । सुबह पार्क में अक्सर वह लड़का दिख जाया करता। वह झट से उनके पैर छू लेता।धीरे धीरे उनमें बातें होने लगीं ।   

    “कितने राउंड लगाते हो रोज़” वे उसे आवाज़ देकर पूछते। रोज़ 20 लगाता हूँ अंकल , कहकर निकल जाता ।कभी पूछते आज कितने हुए ? कभी कहता 18 तो कभी 15। नीलम को वह बहुत अच्छा लगता था । उसमें उन्हें अपना रोहन दिखता ।वे उसे आशीर्वाद देतीं , कमल किशोर को भी उससे लगाव सा हो गया था।वह जब पैर छूता , तो कहते “ख़ुश रहो बच्चे” और वह हंस देता । एक दिन वे बैंच पर बैठे थे कि उसने पीछे से पुकारा-

     “आज थके हुए बच्चे को बैठने की जगह मिलेगी क्या?”

     “अरे आओ , बेटा आओ । बहुत दिनों से तुमसे जी भरकर बातें करने का मन भी कर रहा था पर लगता , पता नहीं तुम्हारे पास समय है कि नहीं ।” 

      वह आकर उन लोगों के पास बैठ गया । “कैसे हैं अंकल आंटी ! आप रोज़ आते हैं यहाँ ,पहले तो नहीं देखा ।” 

     “तुम्हारी आंटी तैयार ही नहीं होती थीं पर जब से तुम्हें देखा है ।तुम्हारी एक झलक लेने आ जाती हैं।”

      “अरे वाह मुझे भी आप लोगों को देख कर बहुत अच्छा लगता है ।”

      “तुम कहाँ रहते हो और क्या करते हो ?     

       “अंकल मैं मेडिकल की पढ़ाई कर रहा हूँ ।यहाँ पास ही में एक की छत पर एक कमरे में रहता हूँ । छत पर ही कुछ बच्चों की ट्यूशन लेता हूँ जिससे मेरा कुछ ख़र्च निकल आता है ।” 

     “क्यों तुम्हारे मम्मी पापा क्या गाँव में रहते हैं।” 

     “ जी , पिता जी गाँव में रहते हैं।माँ नहीं हैं ,गांव में थोड़ी सी ज़मीन है ,पिताजी उसी की देखभाल करते हैं । रोज़ दौड़ने के बाद कॉलेज जाता हूँ ,शाम को ट्यूशन लेता हूँ ।” 

      “बहुत बढ़िया बहुत समझदार बच्चे हो।अरे मैंने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं ।”

     “जी मेरा नाम अक्षय हैं ।अच्छा अंकल मैं चलता हूँ मुझे कॉलेज जाना है ।” कहकर वह चला गया ।अब बातों का सिलसिला चल पड़ा।कमल किशोर और नीलम नियम से उसकी दौड़ के समय पार्क आ जाते । उससे ज़्यादा बातें तो नहीं होंती फिर भी वे एक दूसरे का हाल तो पूछ ही लेते ।नीलम जी के दिल से भी रोहन के लिए बेचैनी कम होने लगी थी । एक दिन कहने लगी आज अक्षत के लिए एनर्जी ड्रिंक बनाऊँ क्या ? पता नहीं ठीक से कुछ खाता पीता भी है कि नहीं ।अरे वाह नेकी और पूछ पूछ , रोज़ बना लिया करो हम तीनों ही साथ में पिया करेंगे। कमल किशोर जी हुलस कर बोले । अगले दिन वे इनर्जी ड्रिंक बनाकर ले गयीं। पहले तो अक्षय संकोच करने लगा फिर झपट लिया और गट गट पी गया ।

      “ओह आंटी बहुत बढ़िया था सच में मुझमें ताक़त आ गई ।”

     “अब रोज़ बनाकर लाऊंगी , हम तीनों ही पिया करेंगे ।” 

    “अरे नहीं नहीं आप परेशान होंगी।”उसकी आवाज़ में झिझक थी ।

     “नहीं बेटा तुम्हारे बहाने हम भी पी लिया करेंगे । रोहन के जाने के बाद आज पूरे तीन साल बाद, बनाया है इन्होंने ।” कमल किशोर जी हँस पडे । 

     “वाह तब तो बड़ा अच्छा रहेगा , मैं अक्सर ख़ाली चाय पीकर ही कॉलेज चला जाता हूँ ।”

      “फिर खाना कहाँ खाते हो ? “ नीलम जी ने व्याकुलता से पूछा । 

    “जिन के यहाँ PG रहता हूँ ,उनके घर पर ही खाता हूँ पर सुबह का नाश्ता अक्सर ही रह जाता है ।उन्हें ऑफिस जाना होता है टिफ़िन बनाने में अक्सर नाश्ता रह जाता है।” अक्षय ने झिझकते हुए बताया।

     “अरे कोई बात नहीं ; कल से मैं ही ले आया करुँगी ।” 

     “नहीं नहीं आंटी , आप रहने दीजिए मेरा काम चल जाता है। अच्छा आंटीजी अब चलता हूँ । 

    अगले दिन सबेरे वे फिर वही ड्रिंक बना लाईं।अब ये सिलसिला रोज़ शुरू हो गया । वे रोज़ अलग-अलग ड्रिंक बनाकर लातीं । उन्हें जैसे एक मक़सद मिल गया था।अब वे खुश रहने लगीं थीं।कमल किशोर जी भी नीलम जी में आये परिवर्तन से बहुत संतुष्ट थे। एक दिन उन्होंने देखा की कि अक्षय के जूते फट रहे हैं । उन्होंने नीलम से बताया कि क्यों न इस बार रोहन के जन्मदिन पर हम अक्षय के लिए जूते लायें। वे प्रसन्नता से बोली पर नाप कैसे लेंगे? उसकी चिंता तुम मत करो मैं ले लूँगा। अगले दिन जब वह आया तो बैंच पर जैसे ही बैठा , उन्होंने पानी गिरा दिया वह हड़बड़ा कर उठा। उसके गीले जूते के निशान ज़मीन पर बन गये । वह अपने जूते झाड़ते हुए बोला अंकल मैं चलता हूँ ।अरे बेटा गलती से बोतल गिर गई । अरे कोई बात नहीं अंकल, मेरे कॉलेज का समय हो रहा है ।उसके जाते ही कमल किशोर जी ने जूते का नाप ले लिया । अगले दिन वे जूते लेकर पार्क में पहुँचे। अक्षय को देख, कमल किशोर जी ने उसे आवाज़ दी । 

     “देखो हम तुम्हारे लिए नये जूते लायें हैं,  ज़रा पहन कर तो देखो ।”

     “अंकल मेरे लिए… मेरे लिए क्यों ?”   

      “आज हमारे रोहन का जन्मदिन है, तुम पहनोगे तो हमें लगेगा जैसे रोहन ने पहने हैं।” नीलम जी बोलीं । 

    पर पर ;

    “पर वर कुछ नहीं जल्दी से पहनो।” कमल किशोर जी ने आदेश सा दिया। अक्षय ने झिझकते हुए जूते पहने और दोनों के पैर छू लिए।कमल किशोर जी ने उसे गले से लगा लिया। धीरे-धीरे तीनों की दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी।नीलम जी नियम से उसके लिए कुछ न कुछ बना कर लातीं।वह भी ख़ुशी ख़ुशी सब खा लेता। ये चालीस पचास मिनट की मुलाक़ात ने कमल किशोर जी और नीलम जी के जीवन में ऊर्जा भर दी थी।अब वे प्रफुल्लित रहने लगे। एक सुबह अक्षय ने कहा 

      “आंटी कल से मैं दौड़ने नहीं आऊँगा मेरी परीक्षा शुरू होने वाली है फिर एक महीने के लिए गाँव जाऊँगा, पर आप रोज़ आइएगा, मुझे जब भी समय मिलेगा मैं भी आ जाया करूँगा।” 

      कमल किशोर और नीलम दोनों ही मायूस हो गए,पर आखिर उसकी परीक्षा थी फिर उसका गाँव जाना भी ज़रूरी था।दोनों ही चुप रह गए।

      अगले दिन अक्षय नहीं आया। फिर भी वे दोनों ही उसका इंतज़ार करते रहे।धीरे धीरे उनका पार्क में नियमित आना बंद हो गया। वे दिन गिनने लगे कि अक्षय कब आएगा। धीरे धीरे सवा महीना गुज़र गया। उन्हें पछतावा होने लगा कि उन्होंने अक्षय से फ़ोन नंबर क्यों नहीं लिया।तक़रीबन आठ दस महीने से रोज़ मिलते थे पर कभी फ़ोन नंबर का ध्यान ही नहीं आया, पर अब पछताने से क्या होता। दोनों ही उदास रहने लगे । वे एक दूसरे को समझाते कि वह पराया लड़का है एक दिन तो उसे जाना ही था।

        एक दिन अचानक कमल किशोर जी के सीने में दर्द उठा। पड़ोसियों की मदद से नीलम जी उन्हें लेकर अस्पताल दौड़ीं, पर वे जा चुके थे ।नीलम जी हतप्रभ रह गईं। उन्होंने रोहन को फ़ोन लगाया, हमेशा की तरह उसने फ़ोन नहीं उठाया। कमल किशोर जी को मुर्दाघर में रख दिया गया।तीसरे दिन जाकर रोहन ने फ़ोन उठाया और चीखने लगा ,आप लोगों को ज़रा भी चैन नहीं है मैं एक कॉन्फ़्रेन्स में कनाडा आया हुआ हूँ। नीलम ज़ोर ज़ोर से रो पड़ीं।

     ”तेरे पापा नहीं रहे बेटा” 

     “क्या कह रहीं हैं ? कैसे,कब हुआ , क्या हुआ था? रोहन घबरा गया।

    “कुछ नहीं अटैक आया और दस मिनट में ही चले गये।” उधर काफ़ी देर तक चुप्पी छायी रही ।

      “तू सुन रहा है ना ? कब आएगा बेटा ?”थोड़ी देर बाद रोहन बोला 

     “माँ मेरा आना तो अभी संभव नहीं है।मेरा एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा है।पंद्रह बीस दिन तो लग जाएंगे।” 

     “बेटा फिर उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा?“

     “अरे माँ चाचा के बेटे राहुल को बुला लो ,वह तो दिल्ली में ही रहता है।मैं जब आऊँगा तब अस्थि विसर्जन कर दूँगा।” 

    “पर बेटा पर बेटा…”

   “ओ माँ B प्रेक्टिकल , मेरा आना नहीं हो सकेगा प्लीज़ समझा करो।” कह कर उसने फ़ोन काट दिया । 

    नीलम जी असहाय सी वहीं धम से बैठ गईं। अगले दिन पड़ोसी शर्मा जी रोहन के चाचा की मदद से कमल किशोर जी का दाह संस्कार कर दिया। कुछ दिन तो रिश्तेदार रुके रहे पर अस्थि विसर्जन न होने से कोई काज नहीं हो सकते थे।सभी लौट गए।

     नीलम जी बिलकुल अकेली पड़ गईं । उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? रोहन का भी कुछ पता नहीं था।धीरे-धीरे बीस बाइस दिन निकल गए पर रोहन नहीं आ पाया।

     उन्हें अक्षय बहुत याद आता पर उसका पता या फ़ोन नंबर तो उन्होंने लिया ही नहीं था।एक दो बार पार्क में भी गईं पर कुछ पता नहीं चला।हार कर वे घर में ही क़ैद हो गईं । 

       कुछ दिन बाद जब अक्षय वापस लौटा तो उसे पार्क में अंकल आंटी नहीं दिखे। दो एक दिन तो उसने ध्यान नहीं दिया फिर उसकी बेचैनी बढ़ने लगी। पार्क में घूमने वाले लोगों से पूछना शुरू किया तब पता चला कि अंकल महीना भर पहले नहीं रहे , आंटी ने तब से ही आना बंद कर दिया है। अक्षय भौंचक्का रह गया। वह असमंजस में पड़ गया, उसे तो उनका घर भी नहीं पता था , पिछले साल भर से तो वह उनसे पार्क में ही मिलता रहा था। उन्होंने कभी उसे घर नहीं बुलाया, न ही वह कभी गया। काफ़ी पूछताछ के बाद आख़िरकार उनका पता मिल ही गया। वह उन के घर गया, आंटी उसे देख कर लिपट गईं और फूट फूट कर रोने लगीं।बेटा तुम्हारे अंकल मुझे अकेला छोड़ गए।

       “क्या हुआ था उन्हें , मैं जब गया था तब तो बिलकुल अच्छे थे।” 

      “बस बेटा हार्ट अटैक आया , जब तक अस्पताल ले जाती,तब तक तो वे जा चुके थे।“ 

     “ओह आंटी आप बिलकुल मत रोइए, मैं हूँ न आप के पास।रोहन कब वापस गया?” 

    “वह तो आया ही नहीं ।उसे छुट्टी नहीं मिली है अब तक।” कहकर वे अंदर चली गईं और अस्थियों का कलश लेकर बाहर आयीं।

      “बेटा ये अभी भी घर में ही है,तुम उनका विसर्जन कर दोगे ?”

      “क्यों आंटी रोहन आएगा न ?”

      “पता नहीं बेटा, वह कब तक आएगा?     

      “तेरे अंकल की आत्मा भटकती होगी।तुझे भी तो वे अपना बेटा ही मानते थे न।” 

     अक्षय कुछ नहीं बोला। वह पशोपेश में था कि क्या करे और क्या नहीं? वह थोड़ी देर बाद बोला । 

   “अच्छा आंटी मैं चलता हूँ फिर आऊँगा।”आंटी उसे निरीह आँखों से देखती रहीं,कुछ बोली नहीं।तीन दिन ऐसे ही निकल गए।अक्षय तीसरे दिन आया।

    “रोहन की कोई ख़बर आयी क्या?” 

     “नहीं बेटा, शायद अगले हफ़्ते आयेगा।”आंटी ने मायूसी से कहा ।

      “चलिए आंटी हम अस्थि विसर्जन कर आते हैं।”

      आंटी भरभरा कर रो पड़ीं। 

    “बेटा तुमने मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया।” 

     वे दोनों ही गंगा में अस्थि विसर्जन कर आये। कोई कुछ नहीं बोला। इसके बाद अक्षय नियमित आंटी के घर आने लगा।उनकी देखभाल करता। उसने उनके लिए एक केयरटेकर भी रख दी ,जो चौबीस घंटे उनके पास रहती। ऐसे ही एक शाम जब आंटी से मिलने पहुँचा तो देखा, कोई उनके पास बैठा है।उसे देखते ही आंटी बोली 

    “आओ बेटा आओ… ये रोहन है, आज ही आया है। रोहन बेटा ये अक्षय है , मैंने इसी से तुम्हारे पापा का अस्थि विसर्जन करवाया है।यह मेरा बहुत ध्यान रखता है।डॉक्टरी पढ़ रहा है। वे एक ही सांस में बोलीं ।

    रोहन ने उठकर हाथ मिलाया और चुपचाप शून्य में ताकने लगा ।एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया।अक्षय स्वयं को अपदस्थ महसूस कर रहा था।

      “आंटी मैं चलता हूँ , फिर आऊँगा।” उसके जाते ही रोहन बोला 

      “क्या मम्मी किसी भी एरे गैरे को घर में घुसा लेती हो।अब आप मेरे साथ चलो, ये मकान, ज़मीन और फ़्लैट सब हम बेच देते हैं , आप मेरे साथ ही अमेरिका में रहना।”

     नीलम जी कुछ नहीं बोलीं ।उन्हें चुप देख रोहन फिर बोला, 

     “माँ ! मैं एक महीने की छुट्टी लेकर आया हूँ ,आप मुझे मकान और ज़मीन के पेपर दे दो, मैं ब्रोकर से बात करता हूँ।”

       “इतनी जल्दी क्या है बेटा? मैं साल भर तक तो कहीं नहीं जाऊँगी। तुम अगले साल आना, तब जो करना हो कर लेना।रोहन भड़क गया ।

    “माँ अब यहाँ रखा ही क्या है ? मैं कुछ नहीं जानता, आपको जो कुछ समेटना है समेट लो, मैं कल ही ब्रोकर से बात करता हूँ । कहकर वह बाहर निकल गया। अगले दो तीन दिन अक्षय नहीं आया। रोहन दिन भर ग़ायब रहता।एक दिन जब रोहन घर पर नहीं था ।उन्होंने अक्षय को फ़ोन लगाया कि बेटा तुम आये नहीं , मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी काम है।

      शाम को जब वह पहुँचा तो रोहन बैठा हुआ था और कह रहा था कि मम्मी मेरी एक ब्रोकर से बात हो गई है, वह इस मकान और रोहित नगर के फ़्लैट की बहुत अच्छी क़ीमत लगा रहा है।मैं अपनी छुट्टी बढ़ा लेता हूँ ,सोचता हूँ, यह काम ख़त्म करके ही हम चलें। ज़मीन का फिर कभी देख लेंगे।

     “नहीं रोहन… मैं ये मकान और फ़्लैट नहीं बेचूँगी और साल भर तो मैं कहीं जाऊँगी भी नहीं।” 

     “क्या मम्मी इतनी दूर से मेरा आना जाना बहुत मुश्किल है, पैसा भी बहुत लगता है।आप समझती क्यों नहीं ?” 

    “तेरी कब की टिकटें हैं ?”

    “मम्मी टिकट तो इतवार की हैं , मकान के काम लिए सोचता हूँ कि पंद्रह दिन बढ़ा लेता हूँ।क्यों आप क्यों पूछ रही हैं ?”

    “तू कल ही चला जा, मुझे न मकान बेचना है और न ही तेरे साथ जाना है।” कहकर वे उठकर अंदर चली गईं।रोहन भी पैर पटकता हुआ बाहर निकल गया।

     थोड़ी देर तो अक्षय किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रहा फिर आंटी के पीछे अंदर गया ।उसे देखते ही वे उससे लिपट गईं और रोने लगीं।

      “तू आता रहेगा न बेटा, मैं रोहन के साथ नहीं जाना चाहती।”

       “आंटी आप चिंता मत कीजिए, मैं आता रहूँगा, पहले जैसे ही।अभी चलता हूँ।”

      रोहन ने नीलम जी को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वे नहीं मानी। रोहन की छुट्टियां ख़त्म हो गईं और वह चला गया। इस बार भी वह मोह माया त्याग कर अपनी माँ को अकेला छोड़ गया।माँ की ममता भी जैसे मर गई थी , कमल किशोर जी के प्रति रोहन के व्यवहार से वे अंदर तक टूट गई थीं। एक बार फिर वे अपने खोल में सिमटने लगीं।अक्षय रोज़ आता पर उनकी खामोशी नहीं तोड़ पाया।उन्होंने घर से बिलकुल निकलना बंद कर दिया था। एक दिन आया और बोला     

     “आंटी मुझे बहुत भूख लगी है, मैंने दिन भर से कुछ खाया नहीं है ।उठो न मेरे लिए कुछ बना दो।”

    वह भूखा है सुनकर वे किचन में गईं और उसके लिए खाना बनाने लगीं।अक्षय समझ गया कि बहुत बड़ा हथियार उसे मिल गया है,अब तो वह रोज़ ही अपनी फरमाइशें करके उनसे कभी कुछ खाने के लिए बनवाता तो कभी इनर्जी ड्रिंक की माँग करता।धीरे धीरे नीलम जी ठीक होने लगी।अब वे स्वयं ही उसके लिए कुछ न कुछ बना लेतीं।अक्षय उन्हें धीरे धीरे शाम को सैर के लिए भी ले जाने लगा । रोहन कभी कभी फ़ोन कर लेता।धीरे धीरे सात आठ महीने निकल गए । 

       एक दिन सुबह सुबह नीलम जी की आया का फ़ोन अक्षय के पास आया , भैया जी आज तो मम्मी जी अभी तक उठी नहीं है।मुझे बहुत डर लग रहा है।

       “अरे तो तुम शर्मा अंकल को बुलाओ मैं भी पहुँच रहा हूँ।” जब तक वह पहुँचा शर्मा जी डॉक्टर को बुला चुके थे।डॉक्टर ने उनके न रहने की ख़बर दी। सभी भौचक्के रह गए।अक्षय ने उसी समय रोहन को फ़ोन लगाया।दूसरे ही दिन रोहन आ गया।जब सब काम निपट गए तो एक दिन रोहन ने वक़ील को बुलाया । 

      वक़ील ले वसीयत पढ़ी तो रोहन एक दम सन्न रह गया। ये कैसे हो सकता है माँ ऐसा नहीं कर सकतीं? 

      “रोहन सर! ये वसीयत तो आपकी माँ ने छह महीने पहले ही बना दी थी।ये मकान वे अक्षय के नाम कर गईं हैं।दस एकड़ ज़मीन और फ़्लैट आपके नाम कर गईं और पाँच एकड़ ज़मीन वृद्धाश्रम को दान कर गईं हैं।  

       “मुझे कुछ नहीं चाहिए, आप सब रोहन को ही दे दीजिए, वह उनका बेटा है।”

    “अक्षय जी! वे आप के लिए एक ख़त भी छोड़ गई है आप पढ़ लो।” वकील ने एक लिफ़ाफ़ा अक्षय को पकड़ा दिया। ख़त में लिखा था, अक्षय बेटा तुम सोच रहे होगे कि मैंने तुम्हें ये घर क्यों दिया ? बेटा तुम ही मेरे अकेलेपन के साथी थे। तुमने मेरे बेटे से बढ़कर मेरा ध्यान रखा, मैं तुम्हारा क़र्ज़ तो नहीं उतार सकती पर कुछ कम तो कर सकती हूँ।तुम मना मत करना। मैं ने रोहन को भी उसका हक़ दे दिया है। पुश्तैनी ज़मीन और फ़्लैट पर सिर्फ़ उस का हक़ है ,पर ये मकान मैंने और तुम्हारे अंकल ने अपनी कमाई से बनाया है, इस पर रोहन का कोई हक़ नहीं है।- तुम्हारी आंटी 

       अक्षय ख़त पढ़ कर फूट फूट कर रो पड़ा।रोहन ने ज़मीन और फ़्लैट के काग़ज़ात लिए और पैर पटकता हुआ बाहर निकल गया।

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मधूलिका श्रीवास्तव 

E-101/17 शिवाजी नगर, 

भोपाल (म.प्र.)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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