ad

काव्य : विभोर - अंजनी कुमार'सुधाकर' , बिलासपुर


 काव्य : 

विभोर


लौट आया है जीवन जैसे सुंदर 

खोया कोना वह सुखद अनूप;

छलक उठा आल्हाद हृदय का

पा कर पुनः निसर्ग रुप प्रभुत्व।


चंद्र किरणें धवल रुप ले कर

हैं उतरतीं जब पूनम की रात;

मिलता नीरव एकांत में बैठने 

कह पाने उनसे मन की बात।


मिलने को आतुर है वसुधा से  

झुका हुआ क्षितिज पर अंबर;

उड़ें रजत फलक घन बन कर

पर्वत शिखर हरित हैं प्रांतर।


बह कर मंद पवन मन छू जाये,

हो कर स्वछंद ओढ़नी लहराये;

अल्हड़ जीवन षोडष वय लौटा

बीतीं यादें तीतिल पंख लगाये।


जिसे ढ़ूंढ़़ती पा लेने अब तक 

साक्षात रतिहार यहाॅं खड़ा है;

मेरे हिस्से का कर रहा प्रतीक्षा 

आह! सुरम्य वह यहाॅं पड़ा है।


मन मंदिर है हो उठा निनादित 

सज गई संध्या पूजा की थाली;

पूजा अर्चन करने को श्रृंगारित 

पुष्प माला गुंथ लाया है माली।


सुन सुमुखी देना संदेश जा कर 

मेरे प्रियतम परदेशी साजन को;

दिखा जाये मुझे चंद्र मुख अपना 

आ कर इस पर्वत गंध मादन को।


सुरम्य प्रकृति में आ कर खोई है 

है हो गई आनन्द विभोर मानसी।

टूट न जाए सब्र प्रतीक्षा से पहले 

*करे चकवी प्रिय चकोर वापसी।*

*करे चकवी प्रिय चकोर वापसी।।*

  -अंजनी कुमार'सुधाकर' , बिलासपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post