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लघुकथा : तीर्थ यात्रा - डॉ अंजना गर्ग, म द वि रोहतक


 

लघुकथा

तीर्थ यात्रा    

यमराज ने चित्रगुप्त से कहा, ' देखो इन दोनों देवियों के कागज और बताओ इनको कहां भेजना है।' 

' प्रभु राज कुमारी को तो पहले दो साल स्वर्ग में फिर आठ साल नर्क में, फिर इसका पुनर्जन्म है। यह सुमन को गोलोक वास देना है।' चित्रगुप्त ने अपना बही खाता देखते हुए कहा।

' प्रभु क्या आपके यहां भी कागज अद ल बदल जाते हैं।हम दोनों के कागज बदल गए लगते है।' राज कुमारी  लगभग चीखते हुए बोली। 

' यहां कुछ नहीं बदलता । यह पृथ्वी लोक नहीं है।' 

' फिर प्रभु यह सुमन को गोलोक वास और पुनर्जन्म भी नहीं और मुझे नरक साथ में पुनर्जन्म भी। यह तो नाइंसाफी है। सारी उम्र मैं तीर्थ यात्राएं करती रही, दान पुण्य करती रही और यह तो मेरे साथ बस चली जाती थी।' राज कुमारी ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की।

 ' चित्रगुप्त शायद देवी को अपने कर्मों का ज्ञान नहीं है। इनकी वीडियो यहां लगाओ।' यमराज जी ने कहा 

दोनों तीर्थ यात्राएं कर रही है। मंदिर के रास्ते में केले के छिलके, साबूत नारियल पड़ा है। सुमन झुकती है, उठाती है और दूर रखें डस्टबिन में डाल देती है । राज कुमारी उसे कहती है 'क्या तेरे झुक झुक कर यह नारियल और केले के छिलके उठाने से यह सड़क साफ हो जाएगी। दुनिया भर का कबाड़ यहां फैला हुआ है। चुपचाप चलती जा अपना पैर बचा बचा के।' 

 अगले तीर्थ स्थान पर दोनों गोलगप्पे खाती हैं। राज कुमारी फटाक से दोना दीवार के साथ फेंक देती है। सुमन अपना दोना और राज कुमारी का दोना उठाकर पास रखी बाल्टी में डाल देती है। 

तीसरे तीर्थ स्थान पर भंडारा चल रहा है। राज कुमारी कहती है, ' चल पहले प्रसाद खा लेते हैं।' 

सुमन उसको भंडारे की लाइन में बिठाकर खुद बर्तन साफ करने वाली जगह पर चली जाती है। जैसे  ही राज कुमारी का खाना खत्म होता है। वो बर्तन साफ करने छोड़ कर  थोड़ा प्रसाद हाथ में ले कर खा लेती है। ' चित्रगुप्त मुझे लगता है इतना देखने के बाद देवी को समझ आ गया होगा कि इसे नरक क्यों भेजा गया है।' 

राज कुमारी बोली, ' माना यह तीर्थ स्थलों पर सफाई करती रही पर मैंने दर्शन तो किये ना प्रभु के।' 

' तूने तो विश्वास ही नहीं किया की तीर्थ स्थान में प्रभु वास करते हैं।' 

' नहीं ,मैं मानती थी कि प्रभु का धाम है। तभी तो दर्शन करने जाती थी।'   ' अगर मानती थी तो फिर प्रभु के मुंह पर खाकर कचरा क्यों फेंक देती थी।' यमराज  ने प्रश्न पूछा।

' प्रभु वह तो बस - - - - - ' 

' यही अंतर है इसने धाम को प्रभु का घर समझा और तुमने घूमने के लिए और इस स्वार्थ में तीर्थ यात्रा की कि आगे तुम्हें स्वर्गलोक मिले। साथ ही तुम दोस्त मित्रों रिश्तेदारों को भी बता कर यह जतलाती रहती थी कि मैंने तो यह धाम भी कर लिया वह भी कर लिया।कही दिखावा था तुम्हारे दान पुण्य और तीर्थ यात्रा में भी। इसलिए तुम दोबारा मृत्यु लोक में जाकर अपने कर्मों को सुधारो और सुमन के कर्म तो पहले ही सुधरे हुए हैं। इसलिए इसे गोलोक धाम मिलेगा।'  यमराज यह कहते हुए उठकर चले गए।

अब राज कुमारी को रह रहकर सुमन द्वारा कहीं बातें याद आ रही थी पर अब पछताने से क्या फायदा। 

   - डॉ अंजना गर्ग,  म द वि रोहतक

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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