महर्षि वाल्मीकि रामायण व समरसता पर चर्चा और काव्य गोष्ठी
*"एक समंदर ढूंढ रहा हूं मोती अंदर"- डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव, अध्यक्ष रामायण केंद्र भोपाल
भोपाल । अन्तर्राष्ट्रीय संस्था हिंदी साहित्य भारती की भोपाल इकाई द्वारा दिनांक 21 अक्टूबर 2024 को महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर “महर्षि वाल्मीकि रामायण व समरसता विषय पर चर्चा, दो नवांकुर रचनाकारों का सम्मान व समरसता विषय पर तरंग काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
संस्था की अध्यक्ष शेफालिका श्रीवास्तव ने सबका स्वागत किया व अतिथियों की ओर से दीप प्रज्वलित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामायण शोध केंद्र, भोपाल के निदेशक राजेश श्रीवास्तव जी ने की, मुख्य वक्ता के रूप में सुरेश पटवा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आरंभ डॉ. रंजना शर्मा की सरस्वती वंदना और नविता जौहरी द्वारा प्रस्तुत भू-गीत से हुआ। आभासी पटल से आ. निरुपमा खरे को उनकी पुस्तक 'परवाज़' और शालू सुधीर अवस्थी को उनकी पुस्तक "राज - प्रेम अनुभूति,सुखद अहसास " के लिए नवांकुर लेखन सम्मान से विभूषित किया गया। दोनों ही रचनाकारों का परिचय डॉ. मीनू पाँडे ने पढ़ा।
गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में आदरणीय सुरेश पटवा जी उपस्थित थे जिन्होंने बहुत ही सारगर्भित उद्बोधन में बताया कि रामायण ईसा से 700 वर्ष पहले लिखी गई। रामायण काल वाकई में समरसता का काल है। सभी नागरिक समान थे। श्रुति स्मृति का ज्ञान अद्भुत था। रामायण तात्कालिक समरसता सद्भावना का दस्तावेज है। जहां लक्ष्मण परशुराम से टकराते हैं वहीं रामचंद्र जी मृदु स्वभाव से स्थिति को संभालते हैं। उक्त कालखंड में रामचंद्र जी ने समरसता का संदेश दिया है। शबरी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि रामायण का मूल स्वर समरसता और परिवार है। रावण और मंदोदरी में भी सद्भावना और समरसता दृष्टिगत होती है।
उपस्थित सदस्यों ने विषय आधारित बहुत सुंदर-सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की। जनक कुमारी ने क्रोंच पक्षी के चोट खाने पर व्यथा से उपजी कविता से समरसता का संदेश दिया।कर्नल गिरजेश जी देश के हालात पर टिप्पणी कर रहे थे उन्होंने यह तंज कसा की चाहे बाढ़ हो भूकंप हो या कोई आयोजन हो सेना को ही बुलाया जाता है। नीलिमा रंजन जी ने रामचंद्र जी की समरसता पर अपनी कविता प्रस्तुत की। जहाँ सुधा दुबे जी को नदी के पानी में समरसता दिखी - "पानी का कोई धर्म नहीं है तट पर बैठे संत अजान।" वही वंदना मिश्रा जी की पंक्तियां थी- "सामाजिक समरसता भरने आए हैं हम मंच का मीठापन बटोरने आए हैं"। साथ ही सुनीता शर्मा सिद्धी जी , ऊषा चतुर्वेदी जी, चित्रा चतुर्वेदी जी व युवा कवि दिनेश मकरंद जी ने भी बहुत सुंदर भावों से युक्त कविता पाठ किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में रामायण शोध केंद्र, भोपाल के निदेशक, आदरणीय राजेश श्रीवास्तव जी ने रामायण दर्शन को समाहित करते हुए दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा -
"एक समंदर ढूंढ रहा हूं मोती अंदर ,
ढूंढ रहा हूं तेरे दर से क्या है बेहतर,
तेरा ही घर ढूंढ रहा हूं!"
अंत मे मधूलिका सक्सेना 'मधुआलोक' ने सभी अतिथियों का आभार प्रदर्शन निम्न पंक्तियों के साथ किया-
समता शुचिता साथ का मिल जाए जब रंग,
समरसता दिन-दिन बढ़े प्रगति होत संग-संग।
शेफालिका श्रीवास्तव
अध्यक्ष
हिंदी साहित्य भारती भोपाल