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लघु कथा : मनहूस घड़ी - वीरेंद्र प्रधान,सागर



 लघु कथा

   मनहूस घड़ी

                                                                                       लगभग सत्तर वर्षीय वरिष्ठ नागरिक है विनायक राव.एक माह पूर्व आरक्षण कराये जाने के बावजूद चूँकि उपलब्ध नहीं थी इसलिए उसे नीचे की बर्थ नहीं मिल पाई.उसे सबसे ऊपर की बर्थ मिली.जाना जरूरी था इसलिए यात्रा में गया.अगल- बगल की सीट वालों से बहुत आरजू और मिन्नतें करने के बाद भी कोई भी बर्थ की अदला- बदली के लिए तैयार न हुआ. फलत:

अपना सामान सबसे नीचे की बर्थ के नीचे रखकर वह अपनी बर्थ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा. २-३ बार के प्रयास के बाद आखिर वह अपनी बर्थ पर चढ़ने में सफल हो ही गया.उसे लगा कि जैसे उसने अपनी बर्थ पर नहीं वरन एवरेस्ट की चोटी

पर चढ़ने में विजय पा ली हो.अपने सामान की चिंता में जोकि

बर्थ पर न चढ़ा पाने के कारण नीचे रखा था उसे रात भर नींद न आई. अनिद्रा की स्थिति में बार- बार पेशाब के लिए बर्थ से नीचे उतरना और चढ़ना पड़ा जोकि उसे बड़ा ही कष्टकारी साबित हुआ.सुबह छह बजे के लगभग ताजी ठंडी हवा लगने से उसकी झपकी लग गई. लगभग आधा घण्टे बाद जब नींद खुली तो उसने सबसे आपने सामान को तलाशा. उसने देखा कि उसका बेग कोई चोर लेकर जा चुका था. शोर मचाने या किसी से कुछ पूछने पर लाभ न हुआ.सभी ने उसके बेग के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की.सात बजे उसका स्टेशन आ गया.बेचारा विनायक राव लगेज के भार से से मुक्त होकर किंतु दिमाग पर बहुत भार लिए धीरे- धीरे उतरा.एक खुशी के अवसर पर शामिल होने के लिए की गई उसकी यह यात्रा एक गम भरी यात्रा साबित हुई.डिब्बे में से बाहर निकल कर हर कदम पर वह उस मनहूस घड़ी को कोस रहा था जिसमें उसकी नींद लग गई थी और किसी चोर को उसका बेग चुराने का मौका मिल गया.


-वीरेंद्र प्रधान

(कवि, लघु कथाकार) 

सागर (मध्य प्रदेश)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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