काव्य :
प्रथम पाठ
अतिरेक ही अंकुरण है,
असंतुलन ही उदगम ,
चित,गात,नाता,मति,
मर्यादाओ के चटकने का
शंखनाद है युद्ध ।
संतुलन है युद्ध प्रतिरोधी,
आधिक्य अमन अवरोधी,
"बिखराव"का चक्र धरा पर,
पसारेगा सिर्फ विरानियां ।
रामायण हो या महाभारत,
काल का संदर्भ कुछ भी हो,
करना होगा साम्य सिंगार,
तभी थमेगा युद्ध का हाहाकार ।
धारण योग्य समरसता ,
साधने योग्य साम्यवस्था,
रण,मनुष्य का मनुष्य से,
या मनुष्य का प्रकृति से,
बौद्धिक स्तर या काया स्तर,
धरा पर खड़े-गतिमान
होने का प्रथम संतुलन,
प्रकृति हमे सिखाती है ,
जीवन के पाठ्यक्रम में ,
इस एक शब्द को समझना होगा ,
प्रथम पाठ यही पढ़ना होगा,
विनाश से बचना है तो,
"संतुलन "हमे सीखना होगा ।
- रानी पांडेय , रायगढ़,छत्तीसगढ।
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