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सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा...का मंच : रचते हुए ऐसा रच जाना, जिससे बच्चा स्वयं रचना सीख जाए यही बाल साहित्य है




 सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा...का मंच : रचते हुए ऐसा रच जाना, जिससे बच्चा स्वयं रचना सीख जाए यही बाल साहित्य है

इंदौर । बाल दिवस के निमित्त अर्थ पूर्ण बाल साहित्य सर्जन पर *वामा साहित्य मंच* में मंथन हुआ। ज्ञान और सूचना के विस्फोट के इस दौर में बच्चों के लिए उपयुक्त साहित्य उपलब्ध करवाना  साहित्यिकों का दायित्व है, चुनौतीपूर्ण है।इसी दायित्व से प्रेरित होकर मंच की सदस्यों ने विविध विधा में प्रस्तुति दी।वहां बच्चों को लुभाने  वाली कथा, कहानी थी तो कविता की लय,भावभीना पत्र, मनोरंजक संगीत नाटिका भी मंचित हुई। अतिथि बाल साहित्य के  सशक्त हस्ताक्षर *श्री गोपाल माहेश्वरी* थे।

आपने बाल साहित्य से संबंधित सदस्यों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए कहा कहा कि-"बच्चों को कुछ दिया जाए तो वह आमतौर पर उसे जस का तस स्वीकार नहीं करता। अपने अपने ओर से कुछ जोड़ता अवश्य है। और यह जोड़ना ही सृजन का मूल है। लेकिन जिस स्वतंत्रता में उसका स्वयं का, समाज का, या देश का अहित हो वहां उसे रोकना आवश्यक है। रचते हुए ऐसा रच जाना, जिससे बच्चा स्वयं रचना सीख जाए यही बाल साहित्य है।

विभा भटोरे और भावना बर्वे ने संगीत नाटिका के माध्यम से वृक्ष बचाने का सुंदर संदेश दिया। 

बाल सुलभ भावनाएं प्राणियों में भी होती हैं यह रेखांकित किया करुणा प्रजापति के यात्रा वृतांत ने। 

अवंती श्रीवास्तव की कथा मैं नौकरानी नहीं ने नई पीढ़ी के दायित्व बोध पर प्रकाश डाला। अंजना सक्सेना ने लघुकथा के माध्यम से बच्चों के सहयोग व उनसे संवाद  का संदेश दिया। कविता अर्गल ने  संस्मरण सुनाया, इसमें उन्होंने जरूरतमंदों की मदद सिखाने की बात की।

सरला मेहता की जादू नगरी में पकवान का सपना सभी को गुदगुदा गया। 

हंसा मेहता ने कविता ब्राम्हण और शेर सुनाकर शक्ति पर युक्ति की विजय बताई। रचना चोपड़ा ने गुलज़ार के बाल साहित्य के बारे में बात की।

 शोभा प्रजापति की कविता के रंग बिरंगे गुब्बारों ने सबको लुभाया।

उषा गुप्ता ने विद्यार्थियों को पत्र लिखकर शिक्षकों की भूमिका स्पष्ट की।

सरस्वती वंदना छाया मुंशी ने प्रस्तुत की।

अध्यक्ष इंदु पाराशर ने स्वागत भाषण दिया। अतिथि स्वागत पद्मा राजेन्द्र ने किया।सचिव शोभा प्रजापति ने आभार माना।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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