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प्रसंगवश : रेवड़ियां बांटकर सत्ता हथियाने का दौर - कहां जाकर रुकेगा ? - डॉ घनश्याम बटवाल , मंदसौर


 ♦️प्रसंगवश  - विशेष आलेख

रेवड़ियां बांटकर सत्ता हथियाने का दौर - कहां जाकर रुकेगा ?

-  डॉ घनश्याम बटवाल , मंदसौर 

                           गरीबों - पीड़ितों और शोषित वर्ग को राहत दे सरकारें ठीक माना जासकता है , होना भी चाहिए । यह अलग बात है कि दशकों से जारी विभिन्न कथित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लक्षित वर्ग को मिला या नहीं अथवा कितना मिला ? यह अलग विषय है पर वर्तमान में प्रचलित कई राज्यों की रेवड़ियां बांटकर सत्ता प्राप्त करना सुगम रास्ता बन रहा है , इसके परिणाम अकर्मण्यता के साथ अपात्रों को भी गंगा नहाने का लाभ मिल रहा है । ऐसा नहीं है कि एक ही दल यह प्रकल्प चला रहा कमोबेश सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसे हथियार बनाया हुआ है , बल्कि हाल तो एक से बढ़कर एक घोषणा कर सत्ता प्राप्ति का माध्यम बनाने में जुटे हैं । भाजपा कांग्रेस तेलुगू देशम समेत कोई दल अछूता नहीं रेवड़ी बांटने में 

राजनीति जो कराये कम है, दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी अजब-गजब की राजनीति खेली जा रही है। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘महिला सम्मान राशि’ और ‘संजीवनी’ नामक दो प्रमुख योजनाएं घोषित की हैं। उन्होंने पात्र महिलाओं को 1000 रुपए माहवार देने का आश्वासन दिया है और सत्ता में आने के बाद यह राशि 2100 रुपए तक बढ़ाने का वायदा भी किया है।

 ‘संजीवनी’ के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र वाले बुजुर्ग सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज करा सकेंगे। पूरा खर्च सरकार वहन करेगी। ऐसी चुनावी घोषणाएं पश्चिम बंगाल, मप्र, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड सरीखे 10 राज्यों में की जा चुकी हैं, लेकिन नौकरशाही ने न तो कोई सवाल उठाया और न ही सरकारी विभागों ने इन घोषणाओं के खिलाफ विज्ञापन देकर उन्हें खारिज किया। 

दिल्ली में ‘आप’ पार्टी  की ही सरकार है। बेशक मुख्यमंत्री केजरीवाल के बजाय आतिशी काबिज़ हैं। जाहिर है कि केजरीवाल ने जिन योजनाओं की घोषणाएं कीं, उन्हें मुख्यमंत्री आतिशी का भी समर्थन है, लेकिन दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों ने एक विज्ञापन जारी कर कहा है- सरकार ऐसी कोई स्कीम नहीं चला रही। इतना ही नहीं, महिला और स्वास्थ्य विभागों ने दिल्ली के लोगों को आगाह किया है कि ‘अस्तित्वहीन’ योजनाओं में पंजीकरण के नाम पर व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें। कोई व्यक्ति या राजनीतिक दल ऐसे फॉर्म भरवाता है अथवा निजी जानकारी मांगता है, तो यह ‘धोखाधड़ी’ है। इन योजनाओं की कोई सरकारी अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है।’’ जाहिर है कि विज्ञापन का स्पष्ट संकेत केजरीवाल और ‘आप’ की तरफ है। यह कैसा मजाक है? दिल्ली सरकार अपने ही खिलाफ काम कर रही है अथवा लोकतांत्रिक व्यवस्था को खारिज किया जा रहा है? किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक दल ‘रेवडिय़ों’ के आश्वासन देते हैं अथवा योजनाओं की घोषणा करते हैं।

ऐसे ही चुनावी वायदों पर जनता वोट देती है। यह लोकतांत्रिक अधिकार कैसे छीना जा सकता है? कुछ हालिया सालों के उदाहरण गौरतलब हैं। हिमाचल में 2022 के चुनाव से पहले और कर्नाटक में 2023 के चुनाव से पहले महिलाओं में नकदी राशि बांटने की घोषणाएं कांग्रेस ने की थीं। दोनों ही राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ थी। भाजपा ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा में महिला वोट बटोरने की खातिर ऐसी ही घोषणाएं की थीं। दोनों राज्यों में क्रमश: कांग्रेस और बीजू जनता दल की सरकारें थीं, लेकिन चुनावों के बाद भाजपा दोनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ हुई। इन तमाम संदर्भों में किसी भी सरकारी विभाग और मंत्रालय ने ऐसी घोषणाओं को न तो खारिज किया और न ही विज्ञापन जारी करने का दुस्साहस किया। आखिर दिल्ली में ऐसा क्यों हुआ? क्या जनादेशी सत्ता नौकरशाही के सामने बौनी है? क्या केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने विभागों को ऐसी हरकत के लिए बाध्य किया? उपराज्यपाल भी केंद्र सरकार के एजेंट हैं। उन्हें कोई जनादेश हासिल नहीं है, लेकिन अभी तक दिल्ली में यह सवाल गुत्थी बना हुआ है कि इस राज्य का प्रमुख, कार्यकारी चेहरा कौन है? यदि मुख्यमंत्री आतिशी ने सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ‘प्रशासनिक कार्रवाई’ करने का बयान दिया है, तो क्या वह ऐसा करने में सक्षम होंगी? 

दिल्ली सरकार की नौकरशाही उपराज्यपाल के संरक्षण में है, अफसर मुख्यमंत्री तक की बात नहीं सुनते, लिहाजा ऐसी हरकत करना बड़ा सामान्य है। मुख्यमंत्री आतिशी ने यह आरोप लगाया है कि भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र सांसद प्रवेश वर्मा सरकारी आवास से महिलाओं को 1100 रुपए प्रति बांट रहे हैं। इस तरह नकदी बांटना क्या चुनाव की मर्यादा के तहत आता है या रिश्वत बांटना है, यह देखना होगा।

महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश , बंगाल , हरियाणा में मिला मतों का अतिरिक्त लाभ राजनीतिक दलों का आकर्षण बन गया । यह जानते हुए भी कि इन रेवड़ियों की भारी भरकम योजनाओं ने उनके राज्य का आर्थिक बजट भी गड़बड़ा दिया है और वित्तीय संस्थानों , बैंकों और बाज़ार से बहुत बड़ी राशि कर्जा लेना पड़ रहा है और हालात यह बन रहे हैं कि हजारों करोड़ रुपये की राशि ब्याज के रूप में चुकाने को विवश होरहे हैं । स्थिति यह होरही है कि अब लोकप्रिय होचुकी रेवड़ियों की योजनाओं को बंद करना भी सरकारों को अलोकप्रिय बनाने का जोखिम है जो कोई दल उठाना नहीं चाहता ।

इन रेवड़ियों को बांट सिस्टम आर्थिक गर्त में जारहा है और कोई रोकथाम नजर नहीं आती ? कहां और कब रुकेगा यह सिलसिला ।

यह तो हुई सत्ता की होड़ और जोड़ में जुटी राजनीतिक पार्टियों की स्थिति पर समाज के विभिन्न वर्गों में इन रेवड़ियों को लेकर खासा उत्साह है हर महीने नक़द राशि जो बैठे बिठाए मिल रही है । हर बार यह आशा भी कर रहे हैं कि मिलने वाली राशि में बढ़ोतरी होगी । जो वंचित हैं वे कोस रहे हैं कि हमें क्यों नहीं मिल रहा यह लाभ ?

मनोवृत्ति और मानसिकता हर माह नक़द खाते में जमा हो कि बन गई है ।

इतना होने बाद भी गरीब और अमीर की खाई और बढ़ी है , गहरी हुई है ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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