काव्य :
सोना खेतों में.. नूतन वर्षाभिनन्दन 2025
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इंजिनियर अरुण कुमार जैन
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दिन धुंधला सा, रात है भीगी, ठिठुरा सारा तन है,
सूरज, चंदा कोई न दिखते,
सहमा सा हर मन है.
पेड़ हैं सूखे, वसुधा सूखी,
पशु, पक्षी व्याकुल से,
देह कांपती शीत ऋतु से,
मन हैं ये आकुल से.
नव प्रभात न,निशा नहीं नव,न स्वर्ण रश्मियां भू पर,
जल,वायु,वन, उपवन मंथर,
नहीं दिखें कुछ भी नव.
फिर भी नूतनवर्ष कह रहे,
करते हैं अभिनन्दन,
मध्यरात्रि से हैप्पी कहते,
शोर शराबे में जन.
चलोसाथ हम प्रमुदित होलें,
नाचें मन वृंदावन,
2025 का कर लें, इन सब संग अभिनन्दन.
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चैत्र मास में नव बसंत संग,
भू इंद्रधनुष आएगा,
नयी कोंपलें, धूप गुनगुनी,
हर मन मुस्कायेगा.
सोना खेतों में जब होगा,
मन में मयूर सा नर्तन,
उस दिन सारा राष्ट्र करेगा,
नूतन वर्ष अभिनन्दन.
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