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समीक्षा : बेहतरीन कविताओं की श्रृंखला है यादों के रजनीगन्धा - रानी सुमिता भोपाल


समीक्षा

बेहतरीन कविताओं की श्रृंखला है यादों के रजनीगन्धा

कविता का एक मतलब यह भी है कि आप आज तक और अब तक कितना आदमी हो सके।

                                   (धूमिल)

      कविता कलम की सबसे कोमल कृति है, सृजन का सबसे परिष्कृत रूप , जिसमें आंतरिक  मनोभाव कलम तत्क्षण प्रकट कर देते हैं परन्तु इसकी दृष्टि दूर की होती है। बकौल संतोष श्रीवास्तव “ मेरी कविताएं मेरी ताकत हैं “।

यह भी सत्य है कि रचना करना कवि कर्म है परन्तु कविता में आत्मा पिरोना कवि धर्म। बिना आत्मा की कविता एक बेजान तान की तरह हो जाती है जिसके सुर मन को नहीं सोहते। वहीं कई बार सरल शब्दों की बुनावट इतनी सुदृढ़ होती है कि लिखी गई कविता दूरगामी प्रभाव विकीर्ण करती है।कविता केवल भावाभिव्यक्ति नहीं होती बल्कि अपने काव्य रस के कारण जब  मन को स्पर्श करने में सफल होती है तो अपने कविता होने के भाव को चरितार्थ करती है।

 वरिष्ठ साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव जी द्वारा रचित कविता संग्रह “ यादों के रजनीगन्धा” अपने शीर्षक की  वजह से एक बयानगी प्रतीत होता है। रजनीगन्धा पुष्प की यह खासियत है कि यह व्यक्ति के मन को इस तरह सुवासित करता है कि इस फूल से दूर रहने पर भी मन इस फूल की खुशबू से तर रहता  है। “यादें” एक धरोहर की तरह होती हैं और ताउम्र साथ-साथ चलती हैं। संतोष जी के इस संग्रह में  यादों की सरिता बरबस बही है और यकीनन वे यादें कवयित्री के तन-मन , जीवन को  रजनीगन्धा की तरह  सुवासित कर रही हैं। शीर्षक के अनुसार बेशक यादें इस संग्रह का बेस है परन्तु इनकी कविताओं का वितान अत्यंत विस्तृत है। कवयित्री की दृष्टि दूरगामी ही नहीं, अत्यंत बारीक और सूक्ष्म भी है।

समाज में मौजूद विसंगतियां उन्हें कलम उठाने पर मजबूर करती हैं । कई कविताओं में वे समाज से प्रश्न करती दिखती हैं। इतिहास की विगत घटनाओं पर अपनी स्त्रीवादी सोच के नजरिए से कविता रचती हैं  तभी वे  “ स्वीकार ”  में भीष्म पितामह की सोच को शब्दों में ढ़ाल कर कहती हैं…..

सदियों लोक में याद रहेगी 

भीष्म प्रतिज्ञा

सदियों लोक में 

यह भी तो याद रखा जाए

भीष्म के विवश नेत्रों को

खोला अम्बा ने

एक स्त्री ने।

      पुत्र हेमंत को समर्पित इस संग्रह में  बेशक जीवन के संघर्ष से उपजी उदासी अनेक कविताओं में प्रतिबिंबित हो रही है क्योंकि अक्सर  जीवन यात्रा की प्रतिध्वनि लेखन में उपस्थित रहती हैं | 

 “ विदा होता चैत्र”  कविता में चैत्र मास की विदाई से उपजी उदासी को अपनो के विछोह से जोड़ती कवयित्री कहती हैं ….

ऐसे ही याद आता रहेगा 

किसी सूने राह पर 

तुम्हारा आंखों से ओझल हो जाना 

  पर कई  कवितायें जीवन के  विहंगम दृश्य भी उपस्थित कर पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।  “ आईना” कविता  सार्वभौमिक है। खुद के जीवन के अनुभव हैं पर हर उम्र के व्यक्ति इससे जुड़ा महसूस कर सकते हैं | इसी तरह “लोकगीत “ को पढ़ना सुखद अनुभूति देता है और कवयित्री के सूक्ष्म दृष्टि के विस्तार से अवगत कराता है। “रैन बसेरा”  में  कवि मित्र को श्रद्धांजलि अर्पित करती कवयित्री लेखन को  दार्शनिक ऊंचाईयों पर  लेकर जाती हैं। वस्तुतः प्रत्येक कविता शब्दों से एक नव संसार रचती है और कवयित्री के मन की थाह पाठकों तक पहुँचाती है। “जीवन एक सभ्यता” में काल के अवशेषों को देखती कवयित्री जीवन के सत्य पर जा टिकती है और सचमुच इसे पढ़ने के पश्चात एक पल की चुप्पी आपके वजूद पर छा जाती है।प्रेम के अनेक रूप लेकर कवयित्री उपस्थित हैं |  प्रकृति की मदमस्त अदाएं स्वाभाविक रूप से कवि मन को मोहित करती हैं और कवि की कलम उतनी ही स्वाभाविक कवितायें रचनाबद्ध करती हैं। बदलती प्रकृति और पर्यावरण अवस्था भी लेखन  में सहज चिन्ता बन कर उभरी है  | “बादल की महफिल” प्रकृति का सुन्दर दृश्य उपस्थित करता है । 

कविवर गोपाल दास नीरज के शब्दों में…

उसकी अनगिनत बूंदों के बीच स्वाति बूंद कौन

यह बात स्वयं बादल को भी मालूम नहीं

        स्पष्ट है कि  इस संग्रह में  बेहतरीन कविताओं की श्रृंखला है।

   संग्रह की कविताएँ  मुख्यतः छंद-मुक्त और अतुकांत शैली में लिखी गई हैं। संतोष श्रीवास्तव एक मंजी हुई कथाकार और उपन्यासकार हैं। वस्तुतः एक गद्य लेखक बंधन का आदी नहीं होता। उसे अपने लेखन रूपी समुद्र में तैरने की आदत होती है तब ऐसे कथा लेखक की कविताएं जब कम शब्दों में लंबी और गहरी बात सफलता पूर्वक कह लेती है तो इसे लेखक के बहुआयामी व्यक्तित्व की उपलब्धि कही जायेगी।

  संग्रह की कई कविताएँ गद्यात्मक शैली में भी लिखी गई हैं पर सभी  लय की लीक से परे नहीं हुई  हैं और ह्रदय को स्पर्श कर अपना प्रभाव छोड़ने में  सफल रही हैं। 

“यादों के रजनीगन्धा” संग्रह का मुखपृष्ठ जिसे साहित्यकार,चित्रकार  विनीता राहुरीकर ने बनाया है, संग्रह के नाम की तरह ही सुन्दर और आकर्षक है। वनिका पब्लिकेशन ने संग्रह को प्रकाशित किया है। साहित्य जगत के लिए यह संग्रह  एक उपलब्धि है।


रानी सुमिता भोपाल

कविता संग्रह

यादों के रजनीगंधा 

कवयित्री संतोष श्रीवास्तव 

प्रकाशक वनिका पब्लिकेशन नई दिल्ली

पृष्ठ 216

मूल्य ₹450

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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