काव्य :
सेवानिवृत्ति के बाद मन का अंतर्द्वंद
मैं कौन हूँ—-?
जिएं सकारात्मक विचारों से–
क्यों अपने *अंतर्द्वंद्व* से जूझ रहे–
विश्वास रखो कि तुम दुनिया के
अति महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हो।
“सेवानिवृत्ति” कभी नहीं होती
जीवन भर दूसरों की सेवा की
क्योंकि अनन्त दायित्व रहे
शैशव से वरिष्ठ होने तक
तन मन से निभाते रहे
कभी सोचने का समय नहीं रहा
मैं कौन हूँ—-?
क्या कर रहा हूँ– ?
कैसे जिंदगी बीत गई—?
हाँ अब कैसे जीना है–
-सोचो-खोजो—--
अभी तो जीवन प्रारम्भ हुआ
स्वंय को ढूंढने का वक्त मिला
प्रभु उपकारों को निभाना है
कितने अधूरे कार्य पूर्ण करना है
अरे ! अपनी निर्मित दुनिया के
सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हो
बहुत छोटे बड़े कार्य किये
आज कहते हो ! मैं कौन हूँ ?
पैसा कमाने अच्छा निवेश करने
बंगले घर गाड़ी तो जीवन नहीं
ये महत्वपूर्ण हैं हाँ रहना चाहिए
कहते, दुनिया घूमी देश विदेश देखे
पर—क्या अपने अन्तस् को देखने
का मौका दिया कभी
धन संपत्ति सोना चांदी हीरे मोती
हैं जरूरी,संतुष्ट निश्चिंत सशक्त हैं बनाते
अब–कितनी योग्यताएं क्षमताएं हैं
जानने समझने का समय आया है
मन से हर असहजता
दूरकर, अपने को समझो
मित्र मेरे ! अभी तो तुमको
परिजनों प्रियजनों के साथ
चलने का मौका मिला है
पूछो न आपके अपनों से
हाँ, वे माने न मानें पर—
क्या आपके बिना वे कुछ रहते
बढ़ पाते इस अथाह जग में
स्वजन पास रहें या दूर,
सदा साथ रहते ध्यान रखते
तुम कह रहे थक गए
किससे स्वयं अपने से ?
जीवनधारा निर्झर अविरल
यूँ ही प्रवाहित होती रहेगी
न किसी को रोकेगी न रुकेगी
प्रकृति तो एक अबूझ पहेली है
हमारी तुम्हारी हो या सृष्टि की
उसको समझो तब स्व को परखो
तुमको प्रत्युत्तर मिलेगा ही
मानसिक अंतर्द्वंद्व ,शारीरिक क्षीणता
सबको होती है प्रकृति देती ही है
अपनी हताशा दूर करो
जीवन, आपको ऊर्जस्वित
उल्लासितकर उमंगों से भरेगा
मित्र ! मित्रों ! के साथ जीना सीखो
अपनी महत्वकांक्षाएं सपने
पूरी करने चल पड़ो
संघर्षो से कभी न घबराए
आज कदम पीछे क्यों हटाए
भवि की चिंता छोड़ो
चरैवेति चरैवेति—अपनाओ
क्या होगा कब होगा ?
कल क्या होगा ?
त्यागो विचारना—-
जो भी होगा अच्छा होगा।
अभी तो चलना है
मीलों दूर मीलों दूर—
नवीन दिनचर्या बनाओ
जिंदगीके थपेड़े आएंगे थकाएँगे
वय बढ़ेगी तो क्षीण करेंगे
थकना नहीं रुकना नहीं–
यकीन मानो सेवानिवृत्त तो
“जीवनयापन” कार्य से हुए,
स्वभाव व्यवहार विचारों से नहीं
तुम तो जिंदादिल व्यक्तित्व हो
बहुत जिये दुसरों के लिए
अपने लिए जीना है ना
खुशी का मार्ग अपनाना है
अपने अधूरे काज करने हैं
सुयश मान सम्मान शाश्वत रखना
तुम सर्वगुसम्पन्न हो सार्थक हो
नर हो न, निराश न करो मन को
उठो चल पड़ो नए पथ पर—-
सोचो समझो भरोसा रखो*
स्वयं पर औ अपनी उत्कृष्टता पर।
- अलका मधुसूदन पटेल ,जबलपुर म प्र