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कहानी : फूलमती की राधा - सुमन चंदा, लखनऊ


कहानी :  फूलमती की राधा

    अपने गाँव मसकनवा (गोंडा) को छोड़कर फूलमती अपने बच्चों के साथ इलाहाबाद आ गयी थी | पति से दारू पी कर मार खाना और घर में उत्पात मचाने से, फूलमती तंग - तग आ चुकी थी। गाँव में बच्चो को ना पर्याप्त भोजन दे पा रही थी, और ना ही वो उन्हें पढ़ा पा रही थी |

इलाहाबाद आते ही उसने घर-घर जाकर खाना बनाने का काम शुरू कर दि‌या । अपने दोनो लड़के और लड़की को सरकारी स्कूलों में नामांकन कराया |  बच्चों को अच्छी शिक्षा देना और उन‌को लायक बनाना ही फूलमती का ध्येय था | खुद कम पढ़ी-लिखी थी पर वो चाहती थी कि बच्चें जरूर पढ़े। इस‌के लिये वो दिन रात मेहनत करती थी। दोनों लड़के खुद स्कूल चले जाते थे पर लड़‌की को फूलमती ही छोडने जाती थी | लड़की राधा चौदह साल की थी और कक्षा आठ में पढ़ती थी । पूछने पर बताती थी कि उसकी लड़की उम्र से बड़ी दिखती है और काफी सुंदर है। एक दिन किसी कार्यवश अपनी मां से मिलने राधा मेरे घर आयी थी । मै देखते ही रह गयी । फूलमती सच ही कहती है, ईश्वर ने जैसे फुरसत में उसे बनाया हो | पतली-दुबली मासूम सी बहुत ही सुंदर लग रही थी | मैंने फूलमती से कहा, इसे पढ़ाओ-लिखाओ और लायक बनाओ, आगे की जिंदगी भी उतनी ही खूबसूरत हो जितनी ये दिखती है । फूलमती ने सर हिलाकर दर्शाया मानो वो भी यही चाहती है। समय के साथ राधा बड़ी होती गई । फूलमती के अगल-बगल काम करने वाले कई परिवार रहते थे। कई लड़के आते-जाते राधा को छेड़ने लगे। कई दिखाते जैसे वो उसको बहुत चाहते हैं और उससे बहाने-बहाने से बात करते । घर पर कोई बुर्जुग या पिता भी नहीं थे | फूलमती सारे दिन काम पर रहती थी | राधा स्कूल आते-जाते लड़को से मिलती और धीरे-धीरे उसे ये सब अच्छा लगने लगा |दो लड़के सौरभ  और रोहित से उसकी दोस्ती भी हो गयी। सौरभ उसपर ज्यादा ही ध्यान देने लगा । वो कहीं दुकान पर छोटा-मोटा काम करता था। कभी आइस्क्रीम, कभी केक और कई गिफ्ट ला राधा को देने लगा । राधा धीरे-धीरे सौरभ से ज्यादा घुल-मिल गयी और हमेशा छुप-छुप कर उससे मिलने लगी । उसका पढाई पर अब जरा भी ध्यान ना था। 

इधर फूलमती मुझसे हमेशा राधा की बड़ाई करती | खुश होकर बताती कि राधा की पढाई अच्छी चल रही है | फूलमती के दिमाग में केवल राधा के आने वाली जिंदगी के सपने थे | खुद जीवन में बहुत सतायी गयी थी, पढ़ी-लिखी नहीं थी तो बच्चों को पढ़ाना चाहती थी | सरकारी स्कूलो में बच्चे जाते है, पर क्या पढाई होती है, बच्चे समझ पा रहे है या नहीं, कितना सीख रहे हैं ये बेचारे गरीब या कम पढ़े-लिखे लोग समझ नहीं पाते । स्कूल में बच्चो को भेजना ही पढाई समझते हैं। फूलमती भी यही समझ बैठी |

मोबाइल में कई सोसल साइट, फेस बुक, इंस्टाग्राम आ गये है । झूठे दिखावे और प्रचार के लिये राधा अपनी माँ का मोबाइल ले उसपर अपनी विभिन्न अदाओं से पिक्चर पोस्ट करती | लोगो के लाइक और कमेंट पढ़-पढ़ खुश होने लगी कि सारे लोग उसे पसंद करते है | सौरभ भी उसे उकसाता और उसे अच्छे-अच्छे कपड़े लाकर देता | वो फोटो खीचकर ड्रेस छुपा देती और माँ को कुछ नहीं बताती | एक दिन जब राधा स्कूल से घर लौटी तो माँ ने राधा के गर्दन के पास कुछ लाल निशान सा देखा | पूछने पर बोल दी-किसी कीड़े ने काटा है । फूलमती समझ नहीं पायी । तीन चार दिन के बाद एक दिन शाम को राधा स्कूल से घर नहीं लौटी । रात होती जा रही थी, राधा का कुछ पता नही था । फूलमती और उसके लड़को ने हर जगह पता किया पर कही राधा नहीं मिली | राधा की सहेली पर बहुत दबाव डालने पर पता चला कि राधा सौरभ नाम के लड़के से बहुत बात करती थी । सभी सौरभ के घर दौड़ पड़े । सौरभ का कही अता-पता नहीं था | लोक-लाज के डर से, और गाँव में बदनामी होगी सोच पुलिस को भी खबर नहीं किया । सभी अपनी तरह से चारो तरफ राधा को खोज रहे थे | फूलमती का रो-रोकर बुरा हाल था । वो हर तरफ से प्रयास कर रही थी कि बच्ची मिल जाये तो वो उसे घर ले आये ।

 एक दिन घरों पर काम करके जब फूलमती घर लौटी तो उसे राधा दिखाई दी। उसको देखकर वो समझ ही नहीं पायी कि वो बेटी राधा है, पूरी तरह जख्मी राधा खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। जगह-जगह चोट के निशान थे और वो पूरी तरह पीली पड़ गयी थी। बस इतना बता पायी कि सौरभ ने उसे किसी गैंग में भेज दिया था, वो लोग राधा को कहीं बेचना चाह रहे थे, उसकी दुर्गति में उन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वो किसी तरह उन लोगों से अपनी जान बचा कर भाग कर घर लौटी थी । 

आज फूलमती अपनी राधा का पूरा इलाज करवा रही है। उसने राधा को क्षमा कर दिया है और राधा के लौट आने से ही खुश है। पुलिस को उसने उन लोगों की पूरी जानकारी भी दे दी जिससे वो दरिन्दे पकड़े जा सके | राधा की मानसिक स्थिति पूरी तरह हिली हुई है। लेकिन वो जीना चाहती है, अपनी गलती के लिये वो बार-बार माँ से माफी मांग रही। फूलमती उसे हौसला देती रहती है। आज राधा शारीरिक तरीके से ठीक हो गयी है, लेकिन वो बहुत ही गंभीर और चुप सी हो गयी है। माँ के साथ वो काम पर जाती है । उसकी पढाई पूरी तरह छूट गयी है। किसी महिला से वो अब सिलाई का भी कोर्स कर रही है। कपड़े की डिजाइन और सिलाई को अच्छा करने लगी है। लोग उससे कपड़ा भी सिलवाने लगे है। जो कुछ उसके साथ हुआ, वो एक हादसा समझ वो भूल जाना चाहती है।

एक सोलह लाल की लड़की की जिंदगी की क्या ऐसे ही शुरुआत होती है। समाज में, सरकारी स्तर पर कितने स्कूल और एन.जी.ओ. चल रहे है जहाँ बच्चों की शिक्षा का दावा किया जाता है। बच्चों को सपने बुनने दिया जाता है। यथार्थ में कोई सरकारी या प्राइवेट तंत्र यह सुनिश्चित नहीं करता कि पढ़ाई का स्तर क्या है? बजे क्या पढ़ रहे हैं, कितना सीख रहे हैं। गाना, डांस करवा के झूठी पब्लिसिटी की जाती है। आश्वाशन दिया जाता है कि स्कूल सभी तरह से बच्चो का डेवलपमेंट कर रहा है, भाषणबाजी होती है। सवाल समाज से है, घरी में काम करने वालों के बच्चों का, इतने बड़े वर्ग की शिक्षा का क्या प्रबंध है ? बच्चे अपना भविष्य सुनिश्चित करें, तो कहाँ करें ?

 - सुमन चंदा, लखनऊ 



देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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