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काल भैरव और काली - उषा सक्सेना-मुंबई


 काल भैरव और काली :-(कालाष्टमी)

   भगवान शिव का ही कालभैरव के रूप में विध्वंस कारी अवतार है ।इनका जन्म शिव जी के रुधिर से हुआ था । कार्तिक माहकी कृष्ण पक्षकी अष्टमी के दिन जब भगवान  शिव अअनीति और अत्याचार के विरुद्ध अपने हीपुत्र अंधकसुर से युद्ध कर रहे थे उस समय इनका काल भैरव के रूप में जन्म हुआ था। इसीलिये इसे कालाष्टमी भी कहा जाता है । उनके साथ उनकी शक्ति काली को भी भैरवी के रूप में जन्म लेना पड़ा । इसलिए  कार्तिक माह की अष्टमी माह की अष्टमी के दिन उनका पूजन किया जाता है।यह प्राचीन अवन्तिकापुरी आज का उज्जैन और आशी के द्वार पाल हैं । इसलिये शिव जी के ही महाकाल भैरव का रूप का दर्शन के विना सदैव महाकाल ज्योतिर्लिंग की पूजा अधूरी मानी जाती है । अत: पहले महाकाल के दर्शन करने के पश्चात ही काल भैरव के दर्शन किये जाते हैं । अर्थात  विना द्वारपाल कि अनुमति के आप उस नगर के राजा के के पास नहीं पहुंच सकते । कालभैरव शिव जी का ही रौद्र रूप हैं जिनके लिये आदिशक्ति महाकाली ने भैरवी का  रूप धारण कर उनका वरण किया ।

शिव पुराण की कथा :-

 अंधकासुर जिसका जन्म पार्वती जी के द्वारा चिंतन मे मगन होकर बैठे शिवजी के नेत्रों को कौतूहल वश अपने दोनों हाथों से ढक देने से अंधकार  के आरण हुआ।उस‌ समय चारों ओर अंधकार छा गया था और तब संसार को प्रकाश देने के लिये तीसरा नेत्र खुलते ही उससे एक अश्रु बिंदु गिरा । जिसने एक पुत्र का रूप ले लिया लेकिन वह अंधा था ।यह देख पार्वती भयभीत होगईं ।तब शिव जी ने कहा कि आपके  द्वारा मेरे नेत्र बंद करने से अंधकार होने के कारण ही इसका जन्म अंधक के रूप में हुआ । उस समय हिरण्याक्ष के कोई संतान नहीं थी और वह एक शक्तिशाली संतान के लिये तप कर रहा था। शिव जी ने उसे वरदान स्वरूप अंधक को दे दिया । हिरण्याक्ष की मृत्यु के पश्चात वह देत्यों का अधिपति बना अंधा होने पर भी वह अति शक्तिशाली था । उसके अंधे होनेके कारण हिरण्याक्ष के अन्य पुत्र उसको सदा ही  अपमानित करते ।जिससे दुखी होकर वह हिमालय पर जाकर शिवजी की तपस्या करने लगा । शिव जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा ।तब उसने कहा :-" प्रभु मैं नेत्रहीन होने के कारण अब अपनों से ही अपमानित होता हूं ।अत: मुझे दृष्टि चाहिये जिससे मैं भी इस संसार में सभी कुछ देख सकूं" । 

    शिव जी ने प्रसन्न हो वरदान स्वरूप उसे देखने के लिये दृष्टि प्रदान की।उसी समय पार्वती जी भी शिव जी के पास आकर उसे अपना पुत्र समझ कर प्रेम पूर्वक निहारने लगी ।  यह क्या ? पार्वती को देखकर वह उस पर मोहित होगया । शिव जी के द्वारा लाख समझाने पर भी की यह तुम्हारी माता है इन्हें प्रणाम करो ?वह नहीं माना और पार्वती को अपनी भोग्या बनाने के लिये लालायित हो कर उनकी ओर दौड़ा ।पार्वती जी उसके इस रूप को देखकर भयभीत होगईं ।आज एक पुत्र अत्याचारी होकर अनीति पर उतर आया !  अनाचारी होगया !शिव जी क्रोधित हो उठे और उससे युद्ध  करने लगे ।अंधकासुर एवं शिव जी का यह युद्ध काफी समय तक चला । युद्ध  करते समय शिव जी के शरीर से रक्त की बूंद धरा पर गिरते ही क्रोध से भरे शिव जी के रौद्र रूप काल भैरव का जन्म हुआ और उसने अंधकासुर को मार दिया ।   धरती में गिरी रक्त की एक बूंद को धरा ने सोख लिया  जिससे वहां भूमिपुत्र भौम (मंगल)का जन्म हुआ ।इस तरह अवन्तिकापुरी में ही महाकाल महादेव से कालभैरव और  देवताओं के लिये सेनापति मंगल का जन्म हुआ। जै महाकाल। जै महाकाल की क्षिप्रा तट पर बसी नगरी अवन्तिकापुरी जिसे सप्तपुरियों में महत्वपूर्ण  स्थान प्राप्त है जिसे अब उज्जैन कहते हैं।यहां पर हर बारह वर्ष के बाद देवगुरु  बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर सिंहस्थ का मेला लगता है । जिसमें पवित्र क्षिप्रा नदी में स्नान का अपना महत्व है ।

  - उषा सक्सेना-मुंबई

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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