काव्य :
प्रिये मुझे तुम संबल दो
(अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर)
परिवार, न कोई दुख सहे
आवश्यकता, सब मुझसे कहे
हर संभव, पूर्ण मैं करता हूं
सबको ही, खुश रखने को
पूछो ,क्या क्या मैं सहता हूं
प्रिये ,मुझे तुम संबल दो
सबकी,मैं रक्षा करता हूं
जितना हो,अच्छा करता हूं
धन अर्जन,मर्यादित जीवन
प्रेम से,लालन पालन करता हूं
आकस्मिक बाधा भी,हल करता हूं
प्रिये,मुझे तुम संबल दो
तुम सब सा ही मैं हूं शरीर
तुम जैसी ही होती मेरी पीर
कंधो पर दायित्व मैं ढोता हूं
होकर के पराजित रोता हूं
मेरे मन को ,कोई तो समझो,ब्रज
प्रिये ,मुझे तुम संबल दो
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र,भोपाल
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