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अन्तर्कथा - विभा रानी श्रीवास्तव, पटना



 अन्तर्कथा

“ख़ुद से ख़ुद को पुनः क़ैद कर लेना कैसा लग रहा है?”

“माँ! क्या आप भी जले पर नमक छिड़कने आई हैं?”

“तो और क्या करूँ? दोषी होते हुए भी दुराचारी ने माफी नहीं माँगी और तुम पीड़िता होकर भी एफ.आई.आर. करने से बच रही हो…! जब मामला विश्वव्यापी हो रहा हो तो एफ.आई.आर. नहीं करना, कहीं न कहीं तुम्हारी विश्वसनीयता पर ही  प्रश्नचिन्ह लगाता रहेगा!”

“कैसे करूँ एफ.आई.आर.?”

“तो आगे भी सैदव अँधेरे में रहने के लिए तैयार रहो- जाल में फँसी हजारों गौरैया-मैना की आजादी का फ़रमान जारी हो सकता था…! तुम उदाहरण बन सकती थी। लेकिन तुमने ही स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की बारीक अन्तर को नहीं समझा।”

“माँ!”

“तुम क़ानून-अनुशासन समझती नहीं हो या तोड़ना स्वतंत्रता लगता है?”

“माँ!”

“जब तुम पंजाब अपने घर में नहीं थी। तुम पटना/बिहार में थी, जब बिहार में शराबबंदी है तो तुमने मस्ती के नाम पर उसका उपयोग क्यों की?”

विभा रानी श्रीवास्तव, पटना

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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