असली मित्र कौन ?
- बोधार्थी रौनक़, गिरिडीह,झारखण्ड
हाल में ही मित्रता दिवस मनाया गया, सभी के स्टेटस अपने मित्रों के लिए सजे थे यह देखते हुए मेरे भी मन में अनगिनत स्मृतियाँ जाग उठी- बचपन के खेल, मिट्टी में सने पैर, स्कूल के दिनों की शरारतें, पहली बार किसी ने आँसू पोंछे, पहली बार किसी ने बिना पूछे साथ खड़े होने का भरोसा दिया,गुरुजनों ने गलतियों पर डांट लगाई फिर भी पुचकारा—ये सब यादें मानो हवा में तैरने सी लगी ।
इन्हीं स्मृतियों के बीच अचानक चाणक्य नीति की वह तीखी लेकिन सच्ची सीख गूँज उठती है – “मित्र वही जो श्मशान तक साथ छोड़ आए।” यह वाक्य मित्रता की असली कसौटी है, जो हमें बताता है कि सच्चा मित्र वही होता है, जो केवल हँसी-ठिठोली और आराम के दिनों का साथी न हो, बल्कि जीवन के सबसे कठिन क्षणों में भी साथ खड़ा रहे, यहाँ तक कि अंतिम यात्रा तक भी।
लेकिन इसी सोच के बीच मेरे मन में एक सवाल उठता है – क्या यह मित्र केवल पुरुष ही हो सकता है? क्या स्त्री मित्र नहीं हो सकती? क्या समाज की सोच इतनी सीमित है कि वह मित्रता को केवल एक ही रूप में देखे? मेरी दृष्टि में मित्रता का कोई लिंग नहीं होता ना ही एक विशेष आकार होत है । यह आत्मीयता, भरोसे, संवेदना और त्याग और सीख का वह रिश्ता है जो किसी दीवार में बँध नहीं सकता। मित्रता वही है जो व्यक्ति की आत्मा से जुड़कर उसके जीवन को स्पर्श करे, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष या फिर किताबें ।
मित्रता केवल कंधा देने का वादा नहीं, बल्कि सही रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी भी है। चाणक्य का कथन याद आता है—“बीमारी, विपत्ति, अकाल, शत्रु-संकट, राजद्वार और श्मशान में जो साथ दे वही सच्चा बंधु है।” लेकिन मैं इसमें एक और बात जोड़ना चाहता हूँ – सच्चा मित्र वही है जो कुमार्ग से सुमार्ग, असत्य से सत्य और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। मित्र वह है, जो हमें गलत राह पर देखकर चुप न रहे, बल्कि डाँटकर भी हमें रोक दे। जो हमारी निराशा के अंधकार में आशा का दीपक जला दे। जो केवल हँसी का साथी न हो, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर आईना दिखाने की हिम्मत भी रखता हो।
मित्रता जीवन में अनेक रूपों में आती है। कभी यह माँ के स्नेह में दिखती है, जो हर मुश्किल में ढाल बनकर खड़ी होती है। कभी यह शिक्षक के कठोर शब्दों में छुपी होती है, जो डाँटते हैं लेकिन हमारी राह रोशन कर देते हैं। कभी यह किसी बहन की चिंता में, किसी भाई के सहयोग में, या किसी सहेली की निस्वार्थ मदद में दिखती है। किताबें भी मित्र होती हैं, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं। यहाँ तक कि प्रकृति भी मित्र की तरह है – पेड़, नदियाँ, हवा – जो हमें सिखाती हैं कि जीवन में संतुलन और धैर्य कैसे रखें।
लेकिन आज की दुनिया में मित्रता बदल गई है। सोशल मीडिया ने ‘फ्रेंड’ शब्द को इतना हल्का कर दिया है कि कभी-कभी लगता है, उसकी असली गहराई कहीं खो गई है। इंस्टाग्राम पर सैकड़ों फॉलोअर्स हैं, फेसबुक पर हज़ारों फ्रेंड्स, लेकिन असली सवाल यह है कि संकट की घड़ी में उनमें से कितने कंधा देने आएँगे? असली मित्र की पहचान फेसबुक की लाइक या इंस्टा स्टोरी के व्यूज़ से नहीं होती, बल्कि उससे होती है कि वह बीमारी में दवा से ज़्यादा हौसला दे सकता है या नहीं, वह श्मशान में कंधा देने से पीछे हटता है या नहीं।
आज मित्रता के दो रूप हमारे सामने हैं—ऑनलाइन और ऑफलाइन। ऑनलाइन मित्रता का महत्व यह है कि इसने दुनिया को जोड़ दिया है। एक साधारण मोबाइल और इंटरनेट ने हमें “वैश्विक गाँव” का नागरिक बना दिया है। झारखंड का एक छात्र न्यूयॉर्क के कलाकार से जुड़ सकता है, जापान के किसी प्रोफेसर से सलाह ले सकता है। कोविड-19 महामारी के समय जब लोग अपने घरों में कैद थे, तब ऑनलाइन मित्रता ने अकेलेपन को हल्का किया। लोग वीडियो कॉल पर साथ पढ़े, साथ गाए, साथ रोए। यूक्रेन युद्ध के दौरान दुनिया भर के ऑनलाइन मित्र समूहों ने राहत राशि जुटाई और अनगिनत ज़िंदगियों को सहारा दिया।
लेकिन ऑनलाइन मित्रता के साथ अंधेरा भी है। यह अक्सर सतही हो जाती है। प्रोफ़ाइल तस्वीर देखकर बनी दोस्ती कुछ ही दिनों में भूल जाती है। सोशल मीडिया पर हज़ारों लोग सिर्फ “फ्रेंड लिस्ट की संख्या” बनकर रह जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या भरोसे की है—कौन असली है, कौन नकली, यह पहचानना कठिन हो गया है। फर्जी अकाउंट, नकली पहचान और धोखे के किस्से आम हैं। 2024 में हजारों लोग ऑनलाइन मित्रता के नाम पर ठगे गए। और सबसे बड़ी कमी यह है कि इमोजी वाला रोता चेहरा भेजना आसान है, लेकिन असली आँसू पोंछने वाला हाथ स्क्रीन के पार चाहिए।
दूसरी ओर, ऑफलाइन मित्रता मिट्टी की खुशबू से जुड़ी है। बचपन का दोस्त, पड़ोस का साथी, कॉलेज का मित्र—ये वे लोग हैं जो शादी में घर सजाते हैं, बीमारी में अस्पताल दौड़ते हैं और मुसीबत में कंधा देने से नहीं कतराते। इतिहास इसके सुंदर उदाहरणों से भरा है—गांधीजी की दक्षिण अफ्रीका में हेनरी पॉलक से हुई मित्रता ने उनके जीवन को नई दिशा दी। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव एक साथ राष्ट्र के लिए हँसते- हँसते शहीद हुए ऐसे ही मित्र हमारे जीवन की सबसे सुंदर स्मृतियाँ गढ़ते हैं।
लेकिन ऑफलाइन मित्रता भी कमियों से खाली नहीं है। यह अक्सर सीमित दायरे में बँधी रहती है—हमारे मोहल्ले, स्कूल या कार्यस्थल तक। जीवन की दौड़–भाग, दूरियों और परिस्थितियों के कारण कभी–कभी यह कमजोर भी पड़ जाती है। शहर बदलते ही कई पुरानी दोस्तियाँ धीरे–धीरे धुंधली हो जाती हैं।
मेरे लिए सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या हमें ऑनलाइन और ऑफलाइन मित्रता को अलग–अलग खेमों में बाँटना चाहिए? मेरा उत्तर है—नहीं। क्योंकि ऑनलाइन मित्रता ज्ञान, अवसर और विविधता का पुल है, जबकि ऑफलाइन मित्रता विश्वास, भावनाओं और जीवन की गहराई की नींव है। एक हमें “नए क्षितिज” देती है, दूसरी हमें “मजबूत जड़ें।” और यही संतुलन हमारे जीवन को पूरा करता है।
कविता की पंक्तियों में कहूँ तो—
“नेट की डोर ने दुनिया दिखाई, गली की चौपाल ने जड़ें बताई।
दोनों का संगम हो जाए जब, जीवन में सच्ची मित्रता आए तब।”
आज भी मेरे मन में लॉकडाउन की याद ताज़ा है। जब ऑनलाइन मित्रता ने सहारा दिया, लेकिन असली सुकून तब मिला जब मेरा गाँव का दोस्त मेरे दरवाज़े पर सब्जी का थैली रखकर चुपचाप चला गया। वह दृश्य आज भी आँखों में भरा है—क्योंकि यह दिखाता है कि मित्रता का मूल्य उसके रूप में नहीं, उसकी सच्चाई में है।
मित्रता दिवस हमें यही याद दिलाता है कि मित्रता पोस्ट या मैसेज में नहीं, बल्कि उस कंधे में है जो हमारे दुख में थमता है, उस हाथ में है जो हमें गिरने से बचाता है, उस आवाज़ में है जो हमें अंधकार से उठाकर प्रकाश की ओर ले जाती है।
मेरे लिए मित्र चाहे पुरुष हो या स्त्री, किताब हो या शिक्षक, प्रकृति हो या परिवार—सच्चा मित्र वही है जो हमारी राह को रोशन करे, गलतियों से रोके और हमारे जीवन को सार्थक बनाए। मित्र वही है जो हमारी आत्मा का आईना बन सके और जो हमारी यात्रा को अंत तक साथ निभाए।
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ReplyDeleteधन्यवाद महोदय ।
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