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काव्य : बहाना क्यों बनाते हो,आजकल दूर जाने का - सीताराम साहू'निर्मल'छतरपुर


 काव्य : 

बहाना क्यों बनाते हो,आजकल दूर जाने का

/पूर्णिका/


बहाना क्यों बनाते हो,आजकल दूर जाने का।

तुम्हारा मन नहीं लगता,मेरे संग मुस्कुराने का।


ये अपनी जिन्दगी मैंने ,भुलाईं है तेरी खातिर,

निभाई हर कसम मैंने, साथ तेरा निभाने का।


मेरी यह जिन्दगी तुमने बचाई मानता सच मैं,

इसी कारण हमेशा काम करता हूं मनाने का।


तुम्हें इक बात बतलाऊं,तुम्हें खोना नहीं चाहूं,

मुझे ईश्वर से डर है,डर नहीं कोई ज़माने का।


मेरे दिल को दुखाने की सजा ईश्वर तुझे न दे,

यही मैं चाहता हरदम,नहीं मतलब सताने का।


तुम्हारी जिन्दगांनी को सजाना चाहता हूं मैं,

रहे निर्मल तेरी काया,नहीं अरमान पाने का।


 - सीताराम साहू'निर्मल'छतरपुर मप्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

1 Comments

  1. दूर जाने का बहाना नहीं,
    पास रहने का वादा नहीं,
    फिर भी दिल से दूर हो जाते हैं,
    कुछ लोग अनजाने में।

    बहुत ही सुंदर कविता sir जीवंत ,,,, मानो,जीवन में यह घटित पंक्तियां शब्दशः

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