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काव्य : यह सलोना सावन - अंजना दिलीप दास, बसना, महासमुंद


काव्य : 
यह सलोना सावन

       

 जेठ की खड़ी दुपहरी,

 देह को जो तपाती है ।

 यह सलोना सावन भादों ,

आकर ही ठंडक पहुंचाती है ।

 नीले ,नीले बादल लेकर ,

 आते अपनी बूंदों के संग ।

 सारे किसान भाईयों के मन में,

 नई फसल की नई उमंग ।


पहुंच ही जाते अपने खेतों में ,

 पहने बरसाती रंग बिरंग ।

 माटी के इन लालों की ,

 क्या ही कहने निराले ढंग ।  

 कभी प्राचीनतम तकनीकों

 से शुरवात खेती की करते ।

 समय बचाने फसल बढ़ाने,

 नवीन प्रणाली भी अपनाते ।


जैसे भी हो तकनीकें आखिर ,

मेहनत तो होती ही है ।

पसीने बहाने का एकमात्र उद्देश्

 सबका दो जून की रोटी ही है ।

बादल बरस कर घिर घिर, 

हर्षित करते जन जीवन।

हरियाली का पर्व लेकर आता है,

जब यह सलोना सावन ।

       

माताएं बहनो को,ये हरी हरी ,

चूड़ियां भी खूब लुभाती हैं।

श्रावणी  साजो श्रृंगार से सभी,

स्वयं को सजाये खूब इठलाती हैं।  

यह सावन सलोना ही जब ,

मनिहारी  बन कर आता है।

किसान माताओं के लिए 

हरिहर, फसल 

आभूषण बन जाता है। 


जीव जंतुओं का भी तो,

 सरल हो जाता है जीवन ।

हरी हरी दुर्वा घास खाकर ,

तृप्त करते हैं अपना मन ।

त्योहारों की बोहनी कर 

आलोकित करता धरती 

का कण कण ।

जेठ की तपन के बाद जब आता ,

यह सलोना सावन।                   

             - अंजना दिलीप दास 

         बसना, महासमुंद (छत्तीसगढ़ )

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

8 Comments

  1. बेहतरीन कविता भारतीय किसानों के लिए

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  2. बहुत ही खूबसूरती से मन लुभावनी कविता 🎉 congratulations for your bignining your

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  3. ।। बहुत बेहतरीन कविता के लिए ढ़ेर सारे बधाई हो।।

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  4. सावन की हरियाली सी कविता
    शब्दों की बुआई ने मन को जीता

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