जेठ की खड़ी दुपहरी,
देह को जो तपाती है ।
यह सलोना सावन भादों ,
आकर ही ठंडक पहुंचाती है ।
नीले ,नीले बादल लेकर ,
आते अपनी बूंदों के संग ।
सारे किसान भाईयों के मन में,
नई फसल की नई उमंग ।
पहुंच ही जाते अपने खेतों में ,
पहने बरसाती रंग बिरंग ।
माटी के इन लालों की ,
क्या ही कहने निराले ढंग ।
कभी प्राचीनतम तकनीकों
से शुरवात खेती की करते ।
समय बचाने फसल बढ़ाने,
नवीन प्रणाली भी अपनाते ।
जैसे भी हो तकनीकें आखिर ,
मेहनत तो होती ही है ।
पसीने बहाने का एकमात्र उद्देश्
सबका दो जून की रोटी ही है ।
बादल बरस कर घिर घिर,
हर्षित करते जन जीवन।
हरियाली का पर्व लेकर आता है,
जब यह सलोना सावन ।
माताएं बहनो को,ये हरी हरी ,
चूड़ियां भी खूब लुभाती हैं।
श्रावणी साजो श्रृंगार से सभी,
स्वयं को सजाये खूब इठलाती हैं।
यह सावन सलोना ही जब ,
मनिहारी बन कर आता है।
किसान माताओं के लिए
हरिहर, फसल
आभूषण बन जाता है।
जीव जंतुओं का भी तो,
सरल हो जाता है जीवन ।
हरी हरी दुर्वा घास खाकर ,
तृप्त करते हैं अपना मन ।
त्योहारों की बोहनी कर
आलोकित करता धरती
का कण कण ।
जेठ की तपन के बाद जब आता ,
यह सलोना सावन।
- अंजना दिलीप दास
बसना, महासमुंद (छत्तीसगढ़ )
बेहतरीन कविता भारतीय किसानों के लिए
ReplyDeleteThank you so much 🙏🏻
Deleteबहुत ही खूबसूरती से मन लुभावनी कविता 🎉 congratulations for your bignining your
ReplyDeleteThank you 🙏🏻 didi
Delete।। बहुत बेहतरीन कविता के लिए ढ़ेर सारे बधाई हो।।
ReplyDeleteThank you so much sir 🙏🏻
Deleteसावन की हरियाली सी कविता
ReplyDeleteशब्दों की बुआई ने मन को जीता
Thank you so much sir 🙏🏻
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