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देशभक्ति के रंगों का रचनाकार: पिंगली वेंकैया को नमन - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 [प्रसंगवश – 02 अगस्त - पिंगली वेंकैया जयंती]

देशभक्ति के रंगों का रचनाकार: पिंगली वेंकैया को नमन

[तिरंगे का स्वप्नदृष्टा, जो इतिहास के पन्नों में खो गया]

        भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा, मात्र एक कपड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा, इसके गौरवशाली संघर्ष, बलिदान और अटूट एकता का जीवंत प्रतीक है। जब तिरंगा हवा में लहराता है, तो हर भारतीय के हृदय में स्वाभिमान और देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ता है। इस प्रतीक की रचना के पीछे एक ऐसी शख्सियत का अमर योगदान है, जिसका नाम इतिहास में उतना चर्चित नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था। पिंगली वेंकैया, वह दूरदृष्टा देशभक्त, जिनकी कल्पनाशीलता, समर्पण और राष्ट्रप्रेम ने भारत को वह तिरंगा दिया, जो आज विश्व मंच पर भारतीय अस्मिता का पर्याय है। उनके बिना तिरंगे की गाथा अधूरी है। उनकी जयंती पर उनके जीवन, संघर्ष और योगदान को स्मरण करना हमारा कर्तव्य ही नहीं, बल्कि सच्ची देशभक्ति की प्रेरणा भी है।

पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था—वे भाषाविद्, भूविज्ञानी और कृषि वैज्ञानिक थे। मात्र 19 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा दी और दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध में हिस्सा लिया। यहीं उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। गांधीजी के स्वदेशी आंदोलन और राष्ट्रवादी विचारों ने उनके हृदय में स्वतंत्रता की ज्वाला प्रज्वलित की। इस मुलाकात ने उन्हें यह अहसास कराया कि किसी स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान उसके प्रतीकों में होती है, और उनमें सर्वोपरि है राष्ट्रीय ध्वज। इस प्रेरणा ने उन्हें एक ऐसे ध्वज की रचना के लिए प्रेरित किया, जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धि, आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक विविधता का प्रतीक हो। यही संकल्प उनके जीवन का ध्येय बन गया।

पिंगली वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को न केवल समझा, बल्कि इसे अपनी जीवन-यात्रा का ध्येय बना लिया। उन्होंने दो दशकों तक विश्व भर के झंडों का गहन अध्ययन किया, उनके रंगों, प्रतीकों और डिज़ाइनों में निहित अर्थों को आत्मसात किया। 1916 में, उनकी पुस्तक " ए नेशनल फ्लैग फॉर इंडिया" प्रकाशित हुई, जो उनके गहन शोध और दूरदर्शिता का साक्ष्य थी। इस पुस्तक में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के महत्व, इसके डिज़ाइन के सिद्धांतों और भारत की सांस्कृतिक-सामाजिक पहचान को उजागर करने वाले तत्वों की सुंदर व्याख्या की। उनके प्रारंभिक डिज़ाइन में लाल और हरा रंग शामिल था, जो हिंदू और मुस्लिम समुदायों की एकता का प्रतीक था। महात्मा गांधी के सुझाव पर इसमें सफेद रंग जोड़ा गया, जो शांति, सत्य और अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था। साथ ही, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक चरखा भी ध्वज का हिस्सा बना, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जीवंत करता था।

1921 में विजयवाड़ा में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिवेशन में वेंकैया ने गांधीजी को तिरंगे का प्रारंभिक डिज़ाइन प्रस्तुत किया। गांधीजी ने इसकी सराहना की, लेकिन इसे और समावेशी बनाने का सुझाव दिया। वेंकैया ने इस मार्गदर्शन को हृदय से स्वीकार कर ध्वज को और परिष्कृत किया। समय के साथ, चरखे की जगह सम्राट अशोक के धर्मचक्र ने ली, जो धर्म, प्रगति और गति का प्रतीक बना। इस अशोक चक्र की 24 तीलियाँ जीवन के विविध पहलुओं और निरंतर प्रगति की ओर संकेत करती हैं। इस प्रकार, तिरंगा केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि भारत की एकता, विविधता और आध्यात्मिक-सांस्कृतिक गहराई का जीवंत प्रतीक बन गया, जो विश्व पटल पर भारतीय अस्मिता को गौरवान्वित करता है।

पिंगली वेंकैया का योगदान केवल तिरंगे की रचना तक सीमित नहीं था; उन्होंने इसके प्रचार और स्वीकार्यता के लिए अथक परिश्रम किया। वे अनेक मंचों पर पहुंचे, कांग्रेस अधिवेशनों में हिस्सा लिया और गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं को इसके गहन महत्व से अवगत कराया। उनके अटूट समर्पण का फल था कि 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने उनके डिज़ाइन किए तिरंगे को, कुछ संशोधनों के साथ, भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया। यह वह ऐतिहासिक क्षण था, जब वेंकैया का स्वप्न साकार हुआ। 15 अगस्त 1947 को, जब तिरंगा स्वतंत्र भारत के आकाश में पहली बार लहराया, तो वह केवल एक ध्वज नहीं था—वह लाखों शहीदों के बलिदान, स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा और नवभारत की आकांक्षाओं का जीवंत प्रतीक था।

यह हृदयविदारक विडंबना है कि इतना अमूल्य योगदान देने के बावजूद, पिंगली वेंकैया को उनके जीवनकाल में वह सम्मान और यश नहीं मिला, जिसके वे सच्चे अधिकारी थे। उनके जीवन के अंतिम दिन गुमनामी और आर्थिक तंगी की छाया में व्यतीत हुए। 1963 में उनके निधन के समय देश का अधिकांश हिस्सा उनके योगदान से अनजान था। यह हमारे लिए गहन आत्मचिंतन का विषय है कि हम अपने नायकों को कितना स्मरण करते हैं। यद्यपि, समय के साथ उनके योगदान को मान्यता मिली—2009 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया और उनके जन्मस्थान मछलीपट्टनम में उनकी स्मृति में कई समारोह आयोजित हुए। फिर भी, यह पर्याप्त नहीं है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पिंगली वेंकैया का नाम प्रत्येक भारतीय के हृदय में अमर रहे, विशेष रूप से युवा पीढ़ी में, जो तिरंगे को देखकर गर्व तो महसूस करती है, किंतु उसके पीछे की प्रेरणादायी गाथा से अक्सर अनजान रहती है।

पिंगली वेंकैया की जयंती पर हमें न केवल उनके अमर योगदान को स्मरण करना चाहिए, बल्कि यह दृढ़ संकल्प भी लेना चाहिए कि हम तिरंगे की गरिमा और सम्मान को अक्षुण्ण रखेंगे। तिरंगा महज एक ध्वज नहीं, बल्कि उन पवित्र मूल्यों का प्रतीक है, जिनके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। केसरिया रंग साहस और त्याग की ज्वाला को दर्शाता है, सफेद रंग शांति व सत्य की शीतलता को, और हरा रंग समृद्धि व विश्वास की हरियाली को। अशोक चक्र हमें धर्म के मार्ग पर निरंतर प्रगति की प्रेरणा देता है। यह ध्वज हमें सिखाता है कि हमारी विविधता हमारी शक्ति है, और हमारी एकता हमारी सच्ची पहचान।

पिंगली वेंकैया का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति केवल भव्य कार्यों में ही नहीं, बल्कि नन्हे-नन्हे समर्पणों में भी प्रकट होती है। उन्होंने कभी यश या सम्मान की लालसा नहीं की; उनका एकमात्र ध्येय था भारत को ऐसा प्रतीक प्रदान करना, जो युगों-युगों तक गर्व का स्रोत बने। आज, जब तिरंगा हवा में लहराता है, तो वह वेंकैया के त्याग और समर्पण की गाथा को जीवंत करता है। उनकी जयंती पर हमें यह प्रण लेना होगा कि हम उनके स्वप्नों के भारत—एक एकजुट, समृद्ध और गौरवशाली भारत—को साकार करने में अपनी भूमिका निभाएंगे। तिरंगा सदा लहराता रहे, और पिंगली वेंकैया का नाम हृदयों में अमर रहे!

  - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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