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धैर्य और अनुशासन के शिव - डॉ हंसा व्यास ,नर्मदापुरम



धैर्य और अनुशासन के शिव

 - डॉ हंसा व्यास ,नर्मदापुरम 

सावन मास के आराध्य शिव | सम्पूर्ण प्रकृति में शिवत्व की धारा प्रवाहित हो जाती है | झोपड़ी से लेकर अट्टालिकाओं में शिव के जयकारे सुनाई देते हैं | 

धैर्य का पर्याय है शिव , अनुशासन की परिभाषा है शिव, हलाहल पीकर भी जो हताहत नहीं हुए वे राग द्वेष से परे हैं शिव। लोक के कल्याण का अवतार है शिव। आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए आदिशक्ति के संग है शिव।

श्रावण मास समय पावन कालखंड है, जिसमें देवों के देव महादेव का आशीर्वाद वंदनीय होता है। यह मास भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का उत्सव है, जिसमें उनका स्वरूप प्रकृति के हर रंग और रूप में विद्यमान है। शिवजी का सम्पूर्ण प्रकृति के श्रृंगार से सजीव चित्रण उनके दिव्य स्वरूप का प्रतीक है, जो हमें जीवन की गहराइयों में झांकने का अवसर देता है।

महादेव की जटा में विराजमान गंगा का स्वरूप अद्भुत है। उनके केशों में बहती गंगा की अविरल धारा धरा को सदैव समृद्ध रहने का आशीर्वाद दे रही है । धरती का भार संभाले हुए वासुकी  का गले में सुशोभित होना, शक्ति और धैर्य का प्रतीक है। वासुकी  उनके अभय का परिचायक है, जो संकट के समय में भी उनके संरक्षण में विश्वास बनाये रखता है।

मृगछाल का आवरण उनके असीम त्याग और तपस्या का प्रतीक है। यह असाधारण वस्त्र न केवल उनकी विनम्रता का परिचायक है, बल्कि उनके जीवन के सरलता और सहजता का भी प्रतिबिंब है। पंचतत्वों से निर्मित भस्म का श्रृंगार योगी की साधना का परिचायक है, जो आत्मा की शुद्धि और अंतर्मन की जागरूकता का प्रतीक है। शिवजी का यह भस्म धरा, जल, अग्नि, वायु और आकाश—पांचों तत्वों का मेल है, जो जीवन के संपूर्ण चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।

शिव का जीवन लय ताल का अद्भुत संगम है। उनके स्वरूप में जीवन की हर धड़कन, हर संगीत का स्वर, हर ताल का तालमेल समाहित है। महाकाल का धैर्य और संयम उनकी महानता का प्रतीक हैं। उनका रौद्र अवतार क्रोध का नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक है, जो समस्त संसार के कल्याण के लिए प्रकट होता है। उनके इस संयम और अनुशासन में ही समर्पण और तप की भावना छुपी है, जो जीवन के हर संघर्ष का सामना करने का सबक सिखाता है।

यह संपूर्ण चित्रण केवल शिव के स्वरूप का ही नहीं, बल्कि जीवन के आदर्शों का भी प्रतीक है। श्रावण मास में शिवभक्ति का उत्सव हमें इन गुणों को अपनाने और अपने जीवन को भी शिव की तरह संयमित, धैर्यवान और सद्भाव से भरने का संदेश देता है। यह मास हमें आत्मा की शुद्धि, जीवन के उच्चतम लक्ष्य और प्रकृति के सौंदर्य का अवलोकन करने का अवसर प्रदान करता है। देव महादेव की महिमा और उनके अनेक रूपों का यह स्वरूप हमारे जीवन को आलोकित कर जीवन के सच्चे अर्थ का बोध कराता है।

शिव का त्रिशूल, जिसे 'त्रिशूल' कहा जाता है, तीन शूलों का संयोग है—यह त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है। यह त्रिशूल केवल एक हथियार नहीं, बल्कि तीनों  गुणों सत्त्व, रजस और तमस का समरूप है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, यह त्रिशूल ऊर्जा के तीनों स्तरों का प्रतिनिधित्व करता है—सौर, चंद्र और स्थूल ऊर्जा। यह ऊर्जा का त्रिकोणात्मक स्वरूप जीवन के विभिन्न आयामों को नियंत्रित करता है।

किंवदंतियों में कहा जाता है कि त्रिशूल का प्रयोग ऊर्जा के संकेंद्रण और प्रक्षेपण के लिए किया जाता था, जिससे ब्रह्माण्डीय शक्ति का संचार होता है। आधुनिक भौतिकी में, जब हम ऊर्जा के त्रिकोणीय स्वरूप की कल्पना करते हैं, तो यह त्रिशूल उस ऊर्जा के विभिन्न स्तरों के समन्वय का प्रतीक बन जाता है। इसके अलावा, त्रिशूल का आकार और उसकी धारें एक तरह से ऊर्जा के प्रवाह और दिशा को नियंत्रित करने वाले उपकरण की तरह भी हैं।

शिव का डमरु ध्वनि, कंपन और सृजन का स्रोत है। डमरु, पौराणिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वाद्य यंत्र ऊर्जा और कंपन का प्रतीक है। वैज्ञानिक अनुसंधान में यह पाया गया है कि डमरु की ध्वनि में विशिष्ट आवृत्तियाँ और कंपन होती हैं, जो मनोविज्ञान एवं शरीर विज्ञान दोनों पर प्रभाव डालती हैं। यह ध्वनि तरंगें ऊर्जा के स्वरूप को प्रकट करती हैं, जो जीवन की सृजन शक्ति का प्रतीक हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि डमरु की ध्वनि ब्रह्माण्ड के इस सृजन और संहार की प्रक्रिया का आधार है। यह कंपन ऊर्जा के आवृत्तियों का सूचक है, जो न केवल संगीत में, बल्कि जीवन के अनंत चक्र में भी व्याप्त है। वैज्ञानिक प्रयोगों से पता चला है कि विशिष्ट ध्वनि तरंगें मस्तिष्क की सक्रियता, मांसपेशियों की ऊर्जा और शारीरिक तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं। इस प्रकार, डमरु की अनोखी ध्वनि जीवन के रचनात्मक और नष्टात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती है। सांस्कृतिक और वैज्ञानिक समरूपता का प्रतीक है । शिव के त्रिशूल और डमरु का उल्लेख केवल धार्मिक प्रतीकों के रूप में ही नहीं, बल्कि ऊर्जा, कंपन और संतुलन के वैज्ञानिक तत्वों के रूप में भी किया जा सकता है। ये उपकरण हमारे जीवन और ब्रह्माण्ड के गूढ़ रहस्यों को समझने का माध्यम हैं। यह प्रतीक हमें यह भी सिखाते हैं कि शक्ति और सृजन दोनों ही ऊर्जा के विभिन्न स्वरूप हैं, जिनका सही प्रयोग और संतुलन आवश्यक है।

शिव का त्रिशूल और डमरु, इन प्रतीकों का वैज्ञानिक, पौराणिक और सांस्कृतिक अध्ययन हमें यह बताते हैं कि प्रकृति के रहस्यों को समझने के लिए विज्ञान और धर्म का सम्मिलन अत्यंत आवश्यक है। ये उपकरण ऊर्जा के स्रोत, उसके प्रवाह और उसके प्रभाव का प्रतीक हैं। इन प्रतीकों के माध्यम से हम जीवन के एक अंतर्निहित सत्य, शक्ति और सृजन की प्रक्रिया को गहराई से समझ सकते हैं, जो समस्त ब्रह्माण्ड के मूल स्वभाव का प्रतिबिंब है।

डॉ हंसा व्यास 

सदर बाजार नर्मदापुरम

 


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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