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सावन के गीतों से सजी काव्य चौपाल


 सावन के गीतों से सजी काव्य चौपाल 

भोपाल । अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की मध्य प्रदेश इकाई  द्वारा काव्य चौपाल का आयोजन 25 जुलाई को फॉर्चून प्राईड त्रिलंगा में किया गया। जब शहर में सावन का महीना अपने पूरे उठान पर है तब झमाझम गिरती बारिश में आयोजित अनौपचारिक बैठकी की यह  शाम विविध रंगों से भरी कविताओं से सजी। इस  काव्य बैठकी में इस बार दार्शनिकता और वैचारिक भाव से भरी कविताएं ज्यादा गूंजित हुई। ।


कार्यक्रम की शुरुआत में मधुलिका सक्सेना 'मधुआलोक' ने सुकून की तलाश पर भावभीनी कविता सुनाई।


तलाश मे सुकून  की भटकन  है दरबदर,

दूर तलक तन्हाई आए न तू नज़र 


चन्दा पालीवाल जी ने अपनी भावपूर्ण कविता से सबका मन मोह लिया।


 ज़िन्दगी, 

तुझसे ही सीखा है मैंने...

उम्र के हर पड़ाव में,

दुखों से कैसे लड़ना,

 और कैसे आगे बढ़ना...!

                  

शेफालिका श्रीवास्तव जी की  कविता की गहराई भी सबको सोचने पर विवश कर रही थी।


दुनियाँ की भूलभुलैया में ,

मै घूम रहा था,नितांत अकेला..

नियति की एक ठोकर से ,

मन विचलित था मेरा ।


सरोज लता सोनी जी ने सबको विचार करने पर मजबूर किया जब उन्होंने संवेदना के  क्षरण पर कविता सुनाई। 


जाने किस मुकाम पर, 

जा सो रहीं  संवेदनाएँ।

 हृदय पाषाण हो गया,

 और खो गईं संवेदनाएँ।।


विश्व मैत्री मंच की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव जी की मीठे शब्दों से सजी और भावों से भरी कविता पर सभी का मन भीग गया। 

अब के सावन में यूं 

टूट कर बरसा पानी 

अब के मुलाकात 

अधूरी सी लगी 

अब के पंछी भी 

शाखों पे अनोखे से दिखे 

कजरी मल्हार भी 

ढोलक पे अचीन्ही सी लगी 

कांच के ख्वाब पर 

मुझको जो सँवारा उसने 

तेज बारिश थी 

बहती रही कतरा कतरा  


संतोष श्रीवास्तव


रानी सुमिता ने बारिश से भीगी हुई बहुत मनमोहक कविता सुनाई। 


मेरे शहर की बारिश!

थोड़ा ठहरो 

अभी ताल में दूर तक गिरती  बिन्दुओं को 

देखना है इकटुक

अपने भींजते आंचल में भर भर कर बूँदें 

 गीले पांव घर की ओर मुड़ना है मुझे 


खंजन सिन्हा जी की कविता ने सबका मन मोह लिय।


जिस कागज पर" दिल " क्या लिख दिया

वह कागज" धड़कने " लगा ।


    जिस कागज पर "कलम " रखी 

    वह कागज "कविताओं "से भर गया।


मुजफ्फर सिद्दीकी जी ने एक मिज़ाज की कविता प्रस्तुत की। 

 लहरें शोर मचाती हुई, 

बहुत ताकत से अपने ही पानी को

अपने से बहुत दूर धकेल देती थीं।

लेकिन वह पानी वापस आकर उन्हीं में समा जाने को बेचैन था।


नीलिमा रंजन जी की  कविता दार्शनिकता से भरी थी।

 वह अंतिम क्षण, 

किसने देखा है

वह भीड़, वे रास्ते, 

वे बिखरे टूटे पत्ते!


विनीता राहुरीकर जी ने एक प्यारी सी कविता प्रस्तुत की।

गुपचुप सखियों की कनबतियाँ

भिनसारे पनघट पर रिमझिम

छलकत गगरी, छलकत अंबर

किसकी याद सिहराती थी गुरिया


राजेन्द्र गट्टानी जी ने व्यंग्य में डूबी कविता सुनाई और गंभीर वातावरण में एक हास्य रस घोल दिया।


यक़ीनन याद कर लेंगे

अभी जिनकी ज़रूरत है 

उन्हें तो यूज़ - थ्रो कर लें ।।


गाम- जवार के चौपाल में मिल-बैठ कर सुनने-गुनने की अवधारणा के तहत काव्य चौपाल का गठन किया गया। ऐसे में बाहर गिरती बारिश के बीच कवि-कवयित्रियां जब अपने मन के उद्गार से वातावरण को समृद्ध कर रहे थे तो चौपाल का दृश्य सहज उपस्थित हो रहा था।

                                …रानी सुमिता

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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