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राष्ट्रीय ध्वज दिवस: तिरंगे के आदर्शों को जीने का संकल्प -प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 [प्रसंगवश – 22 जुलाई - राष्ट्रीय ध्वज दिवस]

राष्ट्रीय ध्वज दिवस: तिरंगे के आदर्शों को जीने का संकल्प

[पिंगली वेंकय्या से चंद्रयान तक: तिरंगे की गौरवगाथा]

      भारत के इतिहास में 22 जुलाई 1947 का दिन एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित है, जब संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में औपचारिक रूप से अपनाया। यह ध्वज केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता, एकता, विविधता और गौरव का जीवंत चित्र है। इस दिन को राष्ट्रीय ध्वज दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो प्रत्येक भारतीय को न केवल अपने इतिहास से जोड़ता है, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है। तिरंगे के प्रत्येक रंग और बीच में स्थित अशोक चक्र में भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और नैतिक भावनाएं समाहित हैं, जो इसे विश्व के अन्य ध्वजों से विशिष्ट बनाती हैं। यह ध्वज हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, जो स्वतंत्रता संग्राम की गाथा, बलिदानों और एकता की भावना को अपने में समेटे हुए है।

तिरंगे का डिज़ाइन स्वतंत्रता सेनानी और दूरदर्शी विचारक पिंगली वेंकय्या की देन है। आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में जन्मे वेंकय्या एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक भाषाविद्, भूविज्ञानी और किसान भी थे। 1916 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पर एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने विभिन्न देशों के ध्वजों का अध्ययन करने के बाद भारत के लिए एक उपयुक्त ध्वज की आवश्यकता पर बल दिया। 1921 में, उन्होंने महात्मा गांधी को अपना डिज़ाइन प्रस्तुत किया, जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ बीच में चरखा था। यह चरखा स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। हालांकि, समय के साथ चरखे की जगह सम्राट अशोक के धर्म चक्र ने ले ली, जिसे 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने अंतिम रूप से स्वीकार किया। वेंकय्या का यह योगदान भारतीय इतिहास में अमर है, क्योंकि उनके द्वारा रचित ध्वज आज भी भारत की शान बढ़ा रहा है।

राष्ट्रीय ध्वज का डिज़ाइन भारतीय संस्कृति और मूल्यों का एक सुंदर समन्वय है। इसके तीन रंग और अशोक चक्र न केवल सौंदर्यपूर्ण हैं, बल्कि गहरे अर्थों से युक्त भी हैं। सबसे ऊपर का केसरिया रंग साहस, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक है। यह उन असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। मध्य में सफेद रंग शांति, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है। यह रंग भारत के आध्यात्मिक चरित्र और महात्मा गांधी के अहिंसक संघर्ष को दर्शाता है, जिसने विश्व को सत्य और शांति का पाठ पढ़ाया। सबसे नीचे का हरा रंग समृद्धि, विकास और प्रकृति के प्रति भारत के गहरे लगाव को दर्शाता है। भारत की कृषि परंपरा और पर्यावरण के प्रति सम्मान इस रंग में झलकता है।

ध्वज के केंद्र में नीले रंग का अशोक चक्र इसकी आत्मा है। सम्राट अशोक के धर्म चक्र से प्रेरित यह चक्र 24 तीलियों से युक्त है, जो समय की निरंतरता, प्रगति और कर्म के महत्व को दर्शाता है। प्रत्येक तीली जीवन के 24 घंटों का प्रतीक मानी जा सकती है, जो यह सिखाती है कि कर्म और प्रगति निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह चक्र न केवल भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाता है, बल्कि कानून के शासन और संवैधानिक मूल्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, यह चक्र सारनाथ के अशोक स्तंभ से प्रेरित है, जो अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने और शांति के प्रचार का प्रतीक है। इस प्रकार, तिरंगा न केवल भारत की स्वतंत्रता की कहानी कहता है, बल्कि इसके नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी विश्व के सामने प्रस्तुत करता है।

तिरंगे का महत्व केवल इसके रंगों और प्रतीकों तक सीमित नहीं है। यह ध्वज स्वतंत्रता संग्राम के उन अनगिनत आंदोलनों का साक्षी है, जिनमें लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक, तिरंगे के विभिन्न रूपों ने स्वतंत्रता सेनानियों को एकजुट किया। 1931 में, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तिरंगे को अपने आधिकारिक ध्वज के रूप में अपनाया, तब यह स्वतंत्रता की आकांक्षा का प्रतीक बन गया। 15 अगस्त 1947 को, जब जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर पहली बार तिरंगा फहराया, तब यह ध्वज केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि भारत की नवजात स्वतंत्रता का परिचय बन गया।

राष्ट्रीय ध्वज का महत्व केवल औपचारिक अवसरों तक सीमित नहीं है। यह हर भारतीय के जीवन का हिस्सा है। स्कूलों में सुबह की प्रार्थना के दौरान, सरकारी भवनों पर, खेल आयोजनों में, और यहां तक कि अंतरिक्ष में भी तिरंगा भारत की शान बढ़ाता है। 2004 में, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-1 मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर तिरंगे का प्रतीक अंकित किया, तब यह ध्वज भारत की वैज्ञानिक प्रगति का भी प्रतीक बन गया। सैन्य परेडों में, जब सैनिक तिरंगे को सलामी देते हैं, तो यह ध्वज उनके बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक बनता है।

2002 में, भारत सरकार ने ध्वज संहिता में संशोधन करके आम नागरिकों को तिरंगे को सम्मानपूर्वक फहराने की अनुमति दी। यह निर्णय तिरंगे को जनसामान्य के और करीब लाया। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले ने तिरंगे को एक सरकारी प्रतीक से जनता का प्रतीक बना दिया। अब हर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, और अन्य राष्ट्रीय अवसरों पर लाखों भारतीय अपने घरों और कार्यस्थलों पर तिरंगा फहराते हैं। ध्वज संहिता के अनुसार, तिरंगे को हमेशा सम्मान के साथ फहराया जाना चाहिए, और इसे कभी भी जमीन पर नहीं छूना चाहिए। यह नियम तिरंगे के प्रति भारतीयों के सम्मान और गर्व को दर्शाता है।

राष्ट्रीय ध्वज दिवस केवल एक ऐतिहासिक घटना की स्मृति नहीं है, बल्कि यह एक अवसर है अपने राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति सम्मान और गर्व को पुनर्जनन करने का। यह दिन हमें उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने का अवसर देता है, जिन्होंने तिरंगे को आजादी का प्रतीक बनाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई जैसे वीरों की कहानियां तिरंगे की लहरों में बसती हैं। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि तिरंगा केवल एक कपड़ा नहीं, बल्कि भारत की एकता, विविधता और प्रगति की जीवंत कहानी है।

आज, जब भारत विश्व मंच पर एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, तिरंगा हमारी पहचान और प्रेरणा का स्रोत है। यह हमें साहस, शांति और समृद्धि के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। तिरंगे का सम्मान केवल इसे फहराने में नहीं, बल्कि इसके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने में है। यह ध्वज हमें एकजुट रहने, अपने कर्तव्यों का पालन करने और एक बेहतर भारत के निर्माण में योगदान देने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय ध्वज दिवस के अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि हम तिरंगे के सम्मान में इसके मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएंगे। साहस के साथ चुनौतियों का सामना करेंगे, शांति और सत्य के मार्ग पर चलेंगे, और भारत की प्रगति और समृद्धि के लिए कार्य करेंगे। तिरंगा केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के सपनों, संघर्षों और आकांक्षाओं का प्रतीक है। जब यह हवा में लहराता है, तो यह न केवल भारत की स्वतंत्रता की कहानी कहता है, बल्कि हमें एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा भी देता है।

  - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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