काव्य :
ग़ज़ल
झांकती दिल में मिले कल क्या पता।
हाल दिल का आ कहे कल क्या पता।
आज उस की शान उँची है मगर,
रेंगता लेकिन मिले कल क्या पता।
भागती है दूर मुझ से आज कल,
दिल में मेरे आ रहे कल क्या पता।
जिस जगहपर आजहै पढ़ना मुहाल,
ज्ञान की गंगा बहे कल क्या पता।
पूँछता भी आज कल कोई नहीं,
पूँछता हर इक मिले कल क्या पता।
- हमीद कानपुरी,कानपुर
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