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प्रासंगिक विशेष : नशे से मुक्ति- है जरूरी ! - डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर


 प्रासंगिक विशेष

नशे से मुक्ति- है जरूरी !


 -  डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर 

      नशे भी कई तरह के होते हैं यह जुनून का भी एक प्रकार है जैसे परीक्षा में अव्वल आना , खेल में विजेता होना , लक्ष्य को हांसिल करना , दायित्व को सबसे पहले पूर्ण करना या गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने जैसे जुनून या एक तरह से नशे में जुटकर लक्ष्य प्राप्त करना , कहा भी जाता है परिवारों ओर समाज मे कि इसे तो फलां का नशा है , यह एक सकारात्मक पक्ष है नशे या जुनून का , पर हम यहां बात कर रहे हैं आत्मघाती नशे की । मादक द्रव्यों , सिंथेटिक ड्रग्स शराब स्मेक हेरोइन सिगरेट तम्बाकू आदि की जो बर्बादी के कारण बन रहे हैं ।

सब जानते हैं शराब गांजा भांग सिगरेट बीड़ी तम्बाकू गुटका ओर समेक - हेरोइन आदि तो नशे के माध्यम है ही अब युवा आगे बढ़कर रासायनिक ड्रग्स की ओर आकर्षित है ।

देश के युवा वर्ग में इन दिनों नशे का प्रचलन बढ़ता जा रहा है तथा उसी प्रकार नशे से हो रही मौतों का आंकड़ा भी दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए युवाओं को नशे से बचाने के लिए सार्थक रूप से पहल करनी होगी, ताकि युवा सही दिशा में आगे बढ़ सके। अगर युवा शक्ति नशे की चपेट में आ रही है, तो नशा रूपी राक्षस को किस तरह समाप्त किया जा सके, इस विषय में समाज को गंभीर चिंतन करना होगा। 

एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विभिन्न राज्यों में नशीले पदार्थों से संबंधित अपराधों की दर अलग-अलग है, लेकिन एक बात साफ है कि नशे का जो प्रचलन पूरे देश में सामान्य तरीके से बढ़ता जा रहा है, इसके कई कारण हैं। इन कारणों में मुख्य रूप से निष्क्रिय जीवन शैली होना, युवा वर्ग को उचित मार्गदर्शन का अभाव, पारिवारिक कलह, माता-पिता द्वारा बच्चों की तरफ ध्यान न देना, गलत संगत, अवसाद, तनावग्रस्त रहना, प्रेम में हताशा, महत्वाकांक्षी होना, हाई प्रोफाइल जीवन शैली की लालसा, समाज में नशे को शान का प्रतीक समझना, नशे की उपलब्धता एवं पहुंच आसान होना एवं अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी नशे की लत के कारण हैं।

नशे की आदत अन्य जघन्य अपराधों की जननी है। नशेड़ी बच्चे घर में चोरियां करने के अतिरिक्त अपने माता-पिता से मारपीट तथा उनकी हत्या करने में भी हिचकते नहीं हैं। इसलिए जरूरी है कि नशे रूपी राक्षस को जड़ से खत्म किया जाए। निष्क्रिय जीवन शैली : यह सत्य है कि आज से 20-25 साल पहले पहाड़ी प्रदेश में चिट्टा, हिरोइन, एलएसडी या अन्य सिंथेटिक ड्रग्स की उपलब्धता नहीं थी लेकिन उस समय गांव के लोगों की जीवन शैली भी सक्रिय थी। उस समय की दिनचर्या में सुबह उठते ही गांव के लोग गाय-भैंसों को चराते, खेती में व्यस्त रहते, दूर-दूर से पानी एवं चूल्हे के लिए लकड़ी लाते एवं प्रकृति के नजदीक रहते। नगरों और शहरों में व्यक्ति सुबह और शाम के समय खेलते और सैर करते, युवा वर्ग घर के कामकाज व स्कूल के कार्य को खत्म कर खेलों में व्यस्त रहता था। इस व्यस्तता के चलते व्यक्ति को नशा करने या अन्य नकारात्मक बातों को सोचने का समय ही नहीं मिलता था। इसके विपरीत आज के युवा वर्ग को खेलों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है व न ही वे घर का कार्य करते हैं। आज का युवा घर के कामकाज में हाथ नहीं बंटाता है, जिसके कारण उसका दिमाग अन्य कार्यकलापों में न लगकर नशे के प्रति उसका झुकाव बढ़ता जा रहा है। 

सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग के कारण आज का नौजवान नशाखोरी की आदत की तरफ आकर्षित हो रहा है। सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट्स व अन्य प्रतिक्रियाओं से डोपामाइन नामक रसायन का स्राव होता है, जो हमें खुशी और संतुष्टि का अहसास कराता है। इसका अत्यधिक प्रयोग हमें वास्तविक जीवन से दूर करता है। सोशल मीडिया की तरह जब कोई व्यक्ति ड्रग्स, शराब या कोई और नशा करता है, तब भी डोपामाइन हार्मोन रिलीज होता है जो उसे खुशी का अहसास देता है। ऐसे में खुशी पाने के लिए व्यक्ति को ज्यादा नशे की जरूरत पड़ती है।

ड्रग्स प्रयोग के दीर्घकालिक प्रयोग से मानव मस्तिष्क की रासायनिक प्रणालियों में भी परिवर्तन आता है। लेकिन जब बच्चों के मस्तिष्क में ये परिवर्तन आते हैं, तो माता पिता जानकारी के अभाव में इन परिवर्तनों को नजरअंदाज करते हैं तथा बच्चों में आए चिड़चिड़ापन, धैर्य की कमी, छोटी छोटी बातों पर लड़ाई, बच्चों की जीवनशैली में परिवर्तन, घर में चोरी आदि की घटनाओं को आज भी दैवीय शक्ति के नाराज होने व दैवीय प्रकोप मानते हैं, जिसके कारण वे अंधविश्वास का शिकार होते हैं तथा चेलों या बाबाओं के पास इनका आना-जाना लगा रहता है। बच्चों के मानसिक पटल पर आए परिवर्तनों को समझ नहीं पाते हैं तथा उनका बच्चा नशे की गिरफ्त में गंभीर रूप से फंस जाता है। 

यही नहीं अब तो युवाओं में सिंथेटिक ड्रग्स के प्रति आकर्षण बढ़ता जारहा है मालवा - मेवाड़ ओर हाड़ौती के एक दर्जन जिलों में अफीम हेरोइन स्मेक के अलावा एमडी का प्रचलन होरहा है यह घातक है पर नशा देरहा है । रतलाम मंदसौर नीमच रेंज के डीआईजी से एक बातचीत में सामने आया कि एमडीएमए , एलएसडी , कोकीन आदि कैप्सूल , क्रिस्टल पावडर ओर लिक्विड रूप में भी मिल रहे हैं वहीं यह भी देखा गया है कि स्कूलों के बाहर कॉलेज आदि के आसपास रासायनिक ड्रग्स बिस्किट चॉकलेट ओर कोल्डड्रिंक के साथ पकड़ा गया है । यह पुलिस और प्रशासन ही नहीं समाज और पेरेंट्स को विशेष ध्यान करना होगा । सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नौजवान जो कुछ भी देखते हैं, उसके प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, क्योंकि यह आयु वर्ग साथियों के प्रभाव और दबाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है। संतान की परवरिश में कमी : कई बार देखा गया है कि बच्चों को बिगाडऩे में माता-पिता भी दोषी होते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को सारे सुख एवं सुविधाएं बिना मेहनत के उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं, जिससे कि उनका बच्चा वास्तविक जिंदगी जीने में असफल होता है। इसका खामियाजा उन्हें उनके बच्चों द्वारा गलत संगत में पडक़र, व्यसनी होने के कारण भुगतना पड़ता है। अत: जरूरी है कि माता पिता अपने बच्चों को वास्तविक जिंदगी में आने वाले संघर्षों और कठिनाइयों के बारे में भी बताएं। बच्चों का तनावग्रस्त रहना : आधुनिक जीवनशैली और बच्चों में तनाव के बीच गहरा संबंध है। आधुनिक जीवन में बच्चों को कई तरह के तनाव का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि परीक्षा का दबाव, सोशल मीडिया का प्रभाव और परिवार की अपेक्षाएं। ये तनाव बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। बच्चों को अनावश्यक दवाब या तनाव से बचाने के लिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की बातों को भी ध्यान एवं धैर्य से सुनें तथा उन्हें यह महसूस करने दें कि उनकी राय मायने रखती है।

गलत संगत : एक कहावत है ‘काजल की कोठरी में कैसो हू सयानों जाय एक लीक काजल की लागे है तो लागे है’, इसका भावार्थ है कि आप कितने ही अच्छे हों, अगर आपकी संगत बुरी है तो उसका असर तो पड़ ही जाता है। कई बार हमें ये खबरें सुनने को मिलती हैं कि खराब संगत की वजह से चिट्टे की लत लग गई तथा ऐसी लगी कि कुछ परिवारों के बच्चों ने घर के बर्तन तक बेच दिए। बहरहाल, मध्यप्रदेश को नशामुक्त बनाने के लिए प्रदेश सरकार ओर पुलिस बल नशामुक्ति अभियान के जरिए जागरूकता फैलाने के साथ-साथ नशे के सौदागरों पर शिकंजा कसने तथा इनके नैटवर्क को नष्ट करने की कोशिश में है। 

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक श्री कैलाश मकवाणा द्वारा एक विशेष कार्ययोजना के साथ सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में 30 जुलाई तक जागरूकता अभियान चलाया जारहा है मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने विदेश में प्रवास पर रहते हुए अपने विशेष संदेश में नशे से दूर रहने के लिये सभी से आव्हान किया है ।

 इस अभियान में समाज और प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधि , सामाजिक संगठनों की सहभागिता भी चल रही है । विशेष स्लोगन दिया गया है और पोस्टर भी जारी किया है 

*नशे से दूरी है जरूरी* यह अच्छा अवसर है जब हम और आप पुलिस प्रशासन और समाज के साथ जुड़कर बच्चों किशोरों युवाओं को इस धातक नशे से बचायें । सामुहिक प्रयास सदैव सफल होते हैं और यह नशा मुक्ति अभियान तो हमारे - आपके , परिवार और समाज के लिये ही है 

एक ओर प्रयास हम कर सकते हैं यदि कोई अपना परिवार का , मित्र का रिश्तेदार का समाज का व्यक्ति नशे की लत से ग्रसित है तो उसे अंधकार से दुर करने का जतन करें , काउंसलिंग करें विश्वास के साथ धैर्य देते हुए अनुकूल वातावरण देवें ताकि वह इस कुटैव से बाहर आ सके , निजात पा सके । नशामुक्ति केंद्र पर उपचार करायें । यकीन मानिए निश्चित रूप से इसका पॉज़िटिव परिणाम मिलता है । मंदसौर नीमच में ऐसे प्रयोग सफल रहे हैं और सैंकड़ों युवाओं को नशे के दल दल से बाहर निकाला गया है ।

तो फिर आज से ही लक्ष्य तय करें *नशे से मुक्ति है जरूरी* शुभकामनाएं ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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