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मैंने लाहौर पाकिस्तान को दे दिया- रेडकिल्फ., -मधूलिका श्रीवास्तव ,भोपाल


 मैंने लाहौर पाकिस्तान को दे दिया- रेडकिल्फ

    आज से 78 वर्ष पूर्व जब देश आज़ाद हुआ था तब भारत पाकिस्तान के बीच सरहद की सीमा रेखा खींचने वाले सर सिरिल रैडक्लिफ  ने लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया था।

  आज जब हम 2025 में अपनी आज़ादी के 78 वर्ष पूरे होने पर स्वतंत्रता का जश्न मना रहे हैं । तब आज से 78 वर्ष पूर्व जब हम आज़ाद हुए थे उस समय क्या माहौल था ? की जब कल्पना करते हैं तब आज़ादी के परवानों की ख़ुशियों का ठिकाना न रहा होगा, जन जन हर्षोल्लास से चहक रहा होगा, देश में आज़ादी की ठंडी बयार बह रही होगी ! कुछ ऐसा ही दृश्य ज़हन में आता है । किंतु उन  क्षणों में देश में अंग्रेज शासक इस ख़ुशी के माहौल में विभाजन का काँटा चुभा कर इसको रक्तरंजित करने की आधारशिला रख रहे थे । 200 साल पहले उन्होंने जिस सोने की चिड़िया को क़ैद किया था उसे आज़ाद करने की कसक को मानो चिरस्थायी बनाने के लिये उन्होंने जाते जाते हिंदुस्तान - पाकिस्तान बना कर पूरा कर लिया । 

     हमारी जंगें आज़ादी के परवानों ने पहली जंग 1857 से ही शुरू कर दी थी और देश में 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया था जिसे लगातार मनाते भी रहे पर यह संपूर्ण आज़ादी नहीं थी ।14 अगस्त 1947  की देर रात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की आजादी की घोषणा की। अगली सुबह, सूरज की किरणें देश में चारों तरफ आजादी का आनंद लेकर आई थीं। वह दिन भारत के इतिहास का सबसे ख़ूबसूरत दिन था ।

        15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।

इस जश्न में लाखों का जन सैलाब उमड़ पड़ा था ।पंडित नेहरू ने लाल क़िले के प्राचीर से ट्रिस्ट विद डैस्टिनी ( नियति से वादा ) भाषण दिया और भारत को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया ।

    15 अगस्त को सुबह छह बजे जब पंडित नेहरू झंडा फहरा रहे थे तब एक अद्भुत घटना हुई उसी समय खुले आसमान में अचानक से इंद्रधनुष नजर आया तो लगा मानो पूरी कायनात देश की आज़ादी का जश्न मना रही हो और ईश्वर ने भी आज़ादी पर अपनी मोहर लगा दी हो । यह दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित हो गया ।

     भारत  स्वाधीनता के जश्न में महात्मा गाँधी शामिल नहीं हुए थे।वे उस दिन दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां वे हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे।पंडित नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को एक पत्र भेजा। इस पत्र में लिखा था, '15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा। आप राष्ट्रपिता हैं, इसमें शामिल हों और  अपना आशीर्वाद दें।'

    इस पर गांधीजी ने इस पत्र का जवाब भिजवाया, 'जब कलकत्ता में हिन्दू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं? मैं देश में दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।' इस लिए महात्मा गाँधी की अनुपस्थिति में ही आज़ादी का प्रथम जश्न संपन्न हुआ ।

        15 अगस्त तक भारत और पाकिस्तान के बीच बँटवारा तो हो चुका था पर सीमा रेखा का निर्धारण नहीं हुआ था। इसका फैसला 17 अगस्त 1947 को “रेडक्लिफ लाइन”  की घोषणा से हुआ । यह भारत की आज़ादी के साथ जुड़ी देश के विभाजन की उस समय की अत्यंत दुखद त्रासदी थी जिसे आज़ादी के सुनहरे भविष्य की चाह में देश की जनता ने बँटवारे का यह ज़हरीला घूँट, दवा की तरह पी लिया था ।

      सन् सैंतालिस में जब ये तय हो गया कि अगस्त में भारत को आज़ाद करना है उस के पाँच हफ़्ते पहले लॉर्ड माउंटबैटन ने अपने अभिन्न मित्र ब्रिटिश वकील सिरिल रैडक्लिफ को देश के विभाजन की सीमा रेखा खींचने का काम सौंपा , जो इसके पहले कभी भारत नहीं आये थे और न ही उन्हें भारत की भौगोलिक स्थिति का और न ही सांस्कृतिक स्थिति के बारे में कुछ मालूम था ।

  सर सिरिल रैडक्लिफ को सिर्फ़ पाँच हफ़्ते का समय दिया गया जिसमें उन्हें अखंड भारत जैसे विशाल देश को विभाजित करना था ।उन्होंने हवाई यात्रा द्वारा उस पूरे क्षेत्र का दौरा किया व ज़मीनी जानकारी में पाया कि पूर्व में बंगाल और पश्चिम में पंजाब में मुस्लिम आबादी बहुतायत में है । यह सब कुछ अस्पष्ट था क्योंकि ना तो कोई नक़्शे थे ना ही कोई दस्तावेज जिससे भौगोलिक व धार्मिक बसावट की सही जानकारी हो वहीं साफ़ सीधी लकीर खींचना तो नामुमकिन ही था । किंतु देश में हालात ऐसे  बन चुके थे कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही था क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के समय ही अंग्रेज समझ चुके थे कि भारत अब उनका उपनिवेश नहीं रह सकता ।उन्हें अब यहाँ से जाना ही होगा ।

   तब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर करना तय हुआ । इस विभाजन में महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू,मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउंटबैटन , सर सिरिल रैडक्लिफ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कुछ कार्यकर्ता शामिल थे ।इन सब में रैडक्लिफ की सबसे अहम् भूमिका थी जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन रेखा की ज़िम्मेदारी सौंपी थी ।इसी लिए विभाजन रेखा का नाम “रैडक्लिफ रेखा “ पड़ा।

   इस विभाजन में बंगाल के पूर्वी भाग को पूर्वी पाकिस्तान , आज का बांग्लादेश और पंजाब का विभाजन कर पाकिस्तान का निर्माण हुआ ।इस विभाजन में रेलवे, फ़ौज, ऐतिहासिक धरोहर केंद्रीय राजस्व आदि का भी बराबरी से बँटवारा हुआ था तथा अधिकारों का भी हस्तांतरण हुआ था ! और इस तरह भारत और पाकिस्तान दो राष्ट्र बन गये ।

    इस विभाजन को लेकर एक दिलचस्प बात हुई कि बँटवारा तो हिंदू मुस्लिम बहुल क्षेत्र के हिसाब से हुआ किंतु लाहौर में हिन्दुओं की संपत्ति ज़्यादा थी तथा वह हिंदू बहल क्षेत्र था , पर फिर भी लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया । 1971 में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, जो खुद भी विभाजन के पीड़ित थे, ने लंदन में रैडक्लिफ से इसका कारण पूछा तब वे सहज भाव से बोले -“ मेरे पास समय कम था और एक बहुत बड़े इलाक़े का विभाजन करना था जब विभाजन की कार्यवाही अंतिम चरण में थी तो मैं ने देखा कि पाकिस्तान के पास कोई बड़ा शहर नहीं है तो मैंने लाहौर को हिंदुस्तान से निकाल कर पाकिस्तान को दे दिया ।” 

   बँटवारे का असर दोनों तरफ़ भारी पड़ा ।तक़रीबन 12 करोड़ लोग बेघर हुए और सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी जिसमें क़रीब पाँच से दस लाख लोग मारे गये । ये इतिहास की सबसे भयानक त्रासदी थी। आज तक हम भारत व पाकिस्तान में रिश्तों में बँटवारे की कड़वाहट को झेल रहे हैं ।

        रैडक्लिफ ने रेखा तो खींच दी पर वे समझ गए थे कि उनसे बहुत कुछ दांव पर लग गया है इसलिए उन्होंने काम पूरा होने के बाद अपने सारे नोट्स आग के हवाले कर दिए । वे स्वयं भी शायद आत्मग्लानि से भर उठे थे इसलिए इस काम का मेहनताना चालीस हज़ार रुपये भी उन्होंने नहीं लिए और वापस लौट गए  , जबकि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “आर्डर ऑफ ब्रिटिश एंपायर “ से नवाजा भी था । किंतु वे कहीं न कहीं अपने इस फ़ैसले से असंतुष्ट थे पर शायद नियति को यही मंज़ूर था ।

   वे 17 अगस्त के बाद फ़ौरन ही स्वास्थ्य की आड़ लेकर वापस इंग्लैंड चले गये और फिर कभी भारत या पाकिस्तान नहीं आये और न ही कभी पीछे मुड़ कर देखा ।  1 अप्रैल 1971 को इंग्लैंड में ही उनका निधन हो गया  ।

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मधूलिका श्रीवास्तव 

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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