काव्य : ग़ज़ल
भरोसा है नहीं बाक़ी, दिलों में प्यार क्या देखें।
तुम्हारी जीत क्या देखें कि अपनी हार क्या देखें।।
गिले सबको बराबर हैं शिकायत भी सभी करते।
सितम ज़्यादा किया किसने बढ़ी क्यों ख़ार क्या देखें।।
दिलों में दूरियां सब के सभी ने रंजिशें पाली।
किसे रोकें किसे टोकेंं ग़लत व्यवहार क्या देखें।।
दिखावा है बनावट है हकीक़त पर पड़ा पर्दा।
यहां खोये सभी ख़ुद में नाज़ बरदार क्या देखें।।
सभी बासी हुई ख़बरें अदावत की तबाही की।
पुराने हो चुके मसले छपे अख़बार क्या देखे।।
गिरावट की अगर पूछो गिरी क़ीमत शराफ़त की।
चले खोटे जहां सिक्के वहां व्यापार क्या देखें।।
कहां जाए कहो यारों हमें सब ग़ैर लगते हैं।
नज़र के सामने है सब नज़र के पार क्या देखें।।
- गीतांजलि गुप्ता , नई दिल्ली
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