काव्य :
पथिक
कहाँ अटका है पथिक,
राह तेरी एक है,
छलावा है मृगतृष्णा,
रेगिस्तान मे तो रेत ही सच है।
कार्मिक घेरों में फँसा है तू,
काटना ही होगा संयम से,
कर्म करता जा तू बस अपना,
मिलेगा जो, विधाता के नियम से,
युद्ध अपने अन्तर्मन का जीता जो,
जग सारा ही जीत लिया ।
एक चक्र जीवन का "सीखाता"है,
तो दूसरा अस्तित्व के
उद्देश्य की पूर्ति करता है,
उद्देश्य धरा से मुक्ति की ओर,
नियति उसी तरफ ले जाती,
जहाँ चेतना मार्ग प्रशस्त होगा ।
रखनी है उस पथिक की चाह
जिसे मृत्यु से कोई ना डर होगा।
क्या मिला,क्या खोया जग में,
क्यूँ ये चाह रही पगपग में,
सकारात्मकता को जीता जा,
नयी चुनौतियों को गले लगा,
चुनाव सही हो तो जीवन
को मिलता नया आयाम।
पथिक है तू,चलना तेरा काम,
पथ की वास्तविकता तो पथ
रचयिता जाने,परिस्थितियाँ
रचती नया आयाम ,
पथ से सवाल ना कर।
कहाँ अटका है पथिक,
कि राह तेरी एक है।
चाह तेरी एक है ।
- रानी पांडेय,
रायगढ़ छत्तीसगढ।