ad

काव्य : पथिक - रानी पांडेय, रायगढ़ छत्तीसगढ


 काव्य : 

पथिक 


कहाँ अटका है पथिक, 

राह तेरी एक है,

छलावा है मृगतृष्णा, 

रेगिस्तान मे तो रेत ही सच है।

कार्मिक घेरों में फँसा है तू,

काटना ही होगा संयम से, 

कर्म करता जा तू बस अपना,

मिलेगा जो, विधाता के नियम से,

युद्ध अपने अन्तर्मन का जीता जो,

जग सारा ही जीत लिया ।

एक चक्र जीवन का "सीखाता"है,

तो दूसरा अस्तित्व के

उद्देश्य की पूर्ति करता है,

उद्देश्य धरा से मुक्ति की ओर,

नियति उसी तरफ ले जाती,

जहाँ चेतना मार्ग प्रशस्त होगा ।

रखनी है उस पथिक की चाह

जिसे मृत्यु से कोई ना डर होगा।

क्या मिला,क्या खोया जग में,

क्यूँ ये चाह रही पगपग में, 

सकारात्मकता को जीता जा,

नयी चुनौतियों को गले लगा,

चुनाव सही हो तो जीवन 

को मिलता नया आयाम। 

पथिक है तू,चलना तेरा काम,

पथ की वास्तविकता तो पथ

रचयिता जाने,परिस्थितियाँ 

रचती नया आयाम ,

पथ से सवाल ना कर। 

कहाँ अटका है पथिक, 

कि राह तेरी एक है।

चाह तेरी एक है ।


- रानी पांडेय,

रायगढ़ छत्तीसगढ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post