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काव्य : नारी का यह रूप पत्नी कहलाती है -एस के कपूर "श्री हंस", बरेली


 काव्य : 

नारी का यह रूप पत्नी कहलाती है

*।।विधा।।मुक्तक।।*

1

जो रोज़ प्यार  स्नेह भरा

भोजन खिलाती है।

जल्दी घरआना बात यह

जरूर   बताती है।।

जगाती संस्कार  संस्कृति

के गुण     घर में।

नारी का यह  रूप   पत्नी

कहलाती        है।।

2

वही घर का तीज त्यौहार

उत्सव मनाती है।

कहाँ कितना देना   शगुन

वही  समझाती है।।

घर परिवार को बांध  कर

रखती एक सूत्र में।

नारी का यह रूप    पत्नी

कहलाती         है।।

3

गीले में सोकर  बच्चों को

सूखे में  सुलाती है।

रोते हुए    बच्चे    को भी

वही चुप कराती  है।।

नाते रिश्तेदारी में आपकी

की पहचान उसी से।

नारी का यह  रूप   पत्नी

कहलाती         है।।

4

क्यों जी सुन   रहे   हैं जो

पुकार   लगाती है।

घर बच्चों की हर जरूरत

वही   बतलाती है।।

महरी के न  आने पर बन

जाती चक्करघिन्नी।

नारी का यह  रूप   पत्नी

कहलाती          है।।

5

भूल करअपना दर्द बच्चों

को दवा   पिलाती है।

घर में हर किसी की सेहत

वो खयाल रखाती है।।

शादी व्याह शॉपिंग  जाना

है भाता उन्हें   बहुत।

नारी का यह रूप     पत्नी

कहलाती           है।।

6

आस पड़ोस से संबंध वही

निभाती           है।

बहन भाभी मामी चाची जो

बन    जाती    है।।

जो बना देती है वीरान मकां

को     घर    एक।

नारी का यह रूप       पत्नी

कहलाती        है।।

एस के कपूर "श्री हंस", बरेली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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