काव्य :
सुरमई शाम के नाम
सुरमई शाम है फैली
हसीन जुल्फों सी,
सिमट गया है समय
और फिजा बिखरी सी।
कह रही वादियों में
छांव घनी पेड़ों की,
जिदगी जंग है तूफान
और थपेड़ों की।
ढलते सूरज को देख
आज है अपना इरादा,
जिंदगी की हो शाम
तब भी निभाएं वादा।
-डाॅ. सुधा कुमारी
नई दिल्ली
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