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विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई विशेष : डिजिटल समय में लैंगिक समानता इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल


 विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई विशेष : 

डिजिटल समय में लैंगिक समानता

इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव 

भोपाल 

     17 मई 1865 को अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना की गई थी । जिस स्मृति में प्रति वर्ष 17 मई को विश्व दूरसंचार दिवस के रूप मे मनाया जाता है । तब से आज तक दूरसंचार ने क्रांतिकारी परिवर्तन देखे हैं। टेलीग्राम स्मृतियों में रह गया है। पेजर आते साथ चला गया। आज इंटरनेट, मोबाइल ने दुनियां को बहुपाश में जोड़ रखा है।

तेजी से डिजिटलीकृत होते विश्व में, तकनीकी प्रगति सामाजिक बदलाव का प्रमुख इंजन बन चुकी है। परंतु यह प्रगति तब तक अधूरी है, जब तक इसमें महिलाओं और लड़कियों की बराबर भागीदारी सुनिश्चित नहीं होती। यूएनडीपी के अनुसार, लैंगिक समानता वाले समाज की जीडीपी में 35% तक की वृद्धि संभव है। फिर भी, विश्व में आज भी 37% महिलाएं इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पातीं , और तकनीकी क्षेत्र में उनकी नेतृत्व भूमिकाएँ मात्र 24% हैं (स्रोत: ITU, 2023)। डिजिटल परिवर्तन में लैंगिक असमानता न केवल सामाजिक न्याय का प्रश्न है, बल्कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था, नवाचार और सतत विकास के लिए एक बड़ी बाधा भी है। डिजिटल युग में लैंगिक अंतर एक वैश्विक चुनौती है।

डिजिटल परिवर्तन के तीन प्रमुख आयाम हैं  पहुँच, कौशल और नेतृत्व। वैश्विक स्तर पर, महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में 20% कम स्मार्टफोन हैं, और विकासशील देशों में यह अंतर 40% तक  है (GSMA, 2022)। 

शिक्षा के क्षेत्र में,  विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित विषयों में महिलाओं की हिस्सेदारी 35% से कम है (यूनेस्को, 2021)। यह अंतर तकनीकी उद्योगों में और गहराता है, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में केवल 22% पेशेवर महिलाएँ हैं (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, 2023)।  

इस असमानता के मूल कारण हैं 

1. सांस्कृतिक पूर्वाग्रह अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में, 45% परिवार "लड़कियों के लिए तकनीकी शिक्षा को अनावश्यक" मानते हैं (यूनिसेफ, 2022)।  

2. डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी ग्रामीण भारत में, 70% महिलाओं के पास निजी मोबाइल नहीं है (NFHS-5, 2021)।  

3. साइबर हिंसा,  58% महिलाएँ ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, जो उन्हें डिजिटल मंचों से दूर करता है (एमनेस्टी इंटरनेशनल, 2023)।  

4. आर्थिक असमानता  वैश्विक स्तर पर, महिलाओं की औसत आय पुरुषों से 20% कम है, जो उनकी तकनीकी पहुँच को सीमित करती है।  

लैंगिक समानता क्यों अनिवार्य है?

1. आर्थिक प्रगति: यदि 60 करोड़ महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करने लगें, तो वैश्विक जीडीपी में $500 बिलियन की वृद्धि हो सकती है (वर्ल्ड बैंक, 2022)।  

2. नवाचार में विविधता: टीमों में लैंगिक संतुलन होने पर उत्पादकता 41% तक बढ़ जाती है (मैकिन्से, 2020)।  

3. सामाजिक न्याय: डिजिटल साक्षरता महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा और कानूनी अधिकारों से जोड़ती है। उदाहरण के लिए, केन्या में M-Pesa मोबाइल बैंकिंग ने 1.8 लाख महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण दिया।  

समाधान: एक बहु-स्तरीय रणनीति

1. नीतिगत हस्तक्षेप: - भारत की डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA)और रवांडा की "Smart Girl"योजना जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा।  इंटरनेट को मौलिक अधिकार  घोषित करना, जैसा कि केरल सरकार ने 2022 में किया।  

2. शिक्षा से क्रांति:  

महिलाओं के लिए विज्ञान विषयों में छात्रवृत्तियाँ बढ़ाना और स्कूली पाठ्यक्रम में डिजिटल कौशल को अनिवार्य बनाना।  

"Girls Who Code" जैसे कार्यक्रमों ने अमेरिका में तीन लाख लड़कियों को प्रशिक्षित किया है।  

3. कॉर्पोरेट सहयोग:  

- गूगल का "Women Techmakers" और माइक्रोसॉफ्ट का "Code Without Barriers" जैसे प्रयास, जो महिलाओं को तकनीकी नेतृत्व में ला रहे हैं।  उल्लेखनीय हैं।

4. सुरक्षित डिजिटल स्पेस:  

-साइबर अपराध रोकथाम कानूनों को सख्ती से लागू करना, जैसा कि यूरोपीय संघ ने डिजिटल सर्विसेज एक्ट (2023) में किया।  

भारत में आए दिनों डिजिटल अरेस्ट जैसे फेक सायबर अपराध हो रहे हैं जो चिंता का सबब है।

5. सामुदायिक जागरूकता:  - पंचायत स्तर पर डिजिटल दीदी अभियान, जो भारत में 10 लाख ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुका है।  इसे बढ़ावा देना चाहिए।

सफलता की कहानियाँ**  

-घाना की एस्ट्रिड नानी ने "iCode" प्लेटफ़ॉर्म बनाया, जिसने 15,000 लड़कियों को कोडिंग सिखाई।  

- सऊदी अरब में, महिलाओं की डिजिटल भागीदारी 2018 से 2023 के बीच 14% से 35% तक बढ़  गई, जो उनकी विज़न 2030 नीति का परिणाम है।  

सामूहिक प्रयास की आवश्यकता ..

डिजिटल परिवर्तन में लैंगिक समानता की राह में चुनौतियाँ अवश्य हैं, पर संकल्प और सहयोग से इन्हें पार किया जा सकता है। जैसा कि मलाला यूसुफ़ज़ई कहती हैं, "एक किताब, एक कलम, एक शिक्षक दुनिया बदल सकता है।" आज यह कलम डिजिटल हो चुकी है, और इसकी पहुँच सभी को मिलनी चाहिए। विश्व सूचना दिवस पर,  हम एक ऐसी डिजिटल दुनिया बनाने का संकल्प लें, जहाँ हर लड़की न केवल उपभोक्ता, बल्कि निर्माता भी बने। यह  सामूहिक जिम्मेदारी है।

-- विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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