काव्य :
मां से दिल की बात
मां मैं मजबूर हूं , इसलिए तुमसे दूर हूं ,
तुम्हारी याद बहुत आती है,
मन को व्याकुल कर जाती है ।
कभी –कभी लगता है ,अगर मैं पंछी होता
तो फौरन उड़कर चला आता ,
कभी लगता अगर हवा होता,
तो बहकर चला आता ।
कभी आपकी हाथ की बनी रोटी याद आ जाती ,
तो कभी गुड डालकर मीठा बना गाजर का हलवा ,
कभी मन बैचेन होकर रह जाता ,
कभी एक दीदार को आंखें हर पल तरसती है ,
ऐसा लगता काश मेरा बचपन फिर लौट आता ,
और फिर से मां से प्यारी लोरी फिर सुन पाता ।
मां कभी तुम्हारी सुबह –सुबह, उठाने वाले मीठे स्वर ,
तो कभी बड़े प्यार से बालो को सहलाना याद आ जाता,
अब ऐसा लगता जैसे घर पराया हो गया हो,
न तुम अब डांटती हो और न ही कुछ कहती हो ,
मां तुम्हारे डांट में ही प्यार झलकते है,
मुझे पता है मां मेरे याद में हर समय ,
तुम भी मेरे से दूर होने का दर्द सहती होगी ,
तुम्हारी आँखे भी मेरी तरह ही ,
आंसुओं से नम रहती होंगी ।
–अमन कुमार
( डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, मध्यप्रदेश)