लघुकथा :
स्वीकारोक्ति
' मम्मी यह अनीता आंटी गाती तो कमाल का है। अलाप तो देखो जरा कैसे लेती है। मानना पड़ेगा उनकी गायकी को।' डिंपी अपनी मम्मी मोनिका से कह रही थी।
यूट्यूब पर अनीता का गाना बज रहा था जो मोनिका की कॉलीग थी।
' हां डिंपी बेटा, तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। अनीता ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है। कहने वाले कुछ भी बातें बनाते रहे पर संगीत को उसने अपनी जिंदगी दी है।' स्नेहा ने अंदर आते हुए कहा जो मोनिका के कॉलेज में भी थी और उसकी पड़ोसन भी थी।
' मेहनत तो हम क्या कम करते है। इतने इतने कार्यक्रम करवाते हैं। बस चांस की बात है – – ' कहते हुए मोनिका ने खराब सा मुंह बनाया।
' तुम अनीता के गाने जो भी वह यूट्यूब पर डालती है। सुनती जरूर हो और कई बार तो मैंने देखा है दो-दो बार भी सुनती हो पर कभी लाइक नहीं करती। अच्छा कमेंट देना तो बहुत दूर की बात है। कॉलेज में भी जब सब उसकी तारीफ करते हैं तो तुम या तो उसके लिए कुछ निगेटिव बोल देती हो या मुंह बना लेती हो।' स्नेहा ने आज साफ साफ सब बोल दिया जो वो पहले कई बार बोलना चाहती थी।
' हां तो जरूरी नहीं सबको सबका गायन पसंद आए।'
' पर सुनती तो हो न।'
' ऐसे ही सुन लेती हूं कि देखूं क्या डाला है उसने ऐसा खास जो सब सुनते फिर रहे हैं और उसकी तारीफ करते नहीं थकते।' मोनिका ने चिढ़ कर से कहा
' सच बताऊं मोनिका , तुम्हें पता है वह अच्छा गाती है पर तुम्हारी ईगो और तुम्हारी जेलसी तुम्हें अनीता की तारीफ नहीं करने देती।'
' ऐसा कुछ नहीं, मुझे क्यों उससे जेलसी होगी। ' मोनिका ने ऊपर ऊपर से लापरवाही वाले अंदाज में कहा।
' मोनिका सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। सबको सब कुछ नहीं मिलता। भगवान सबको बांट बांट कर देता है। उसको भगवान ने अच्छी आवाज दी है तो तुम्हें इतना अच्छा परिवार , बेल सेटल बच्चे दिए हैं।'
' आंटी आप बिल्कुल ठीक कह रही हो।' डिंपी झट से बोली जो सब सुन रही थी ।
मोनिका की आंखों में भी स्वीकारोक्ति थी।
- डॉ अंजना गर्ग, म द वि रोहतक
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