काव्य :
मैं हिंदुस्तान हूं
- पद्मा मिश्रा , जमशेदपुर
जहां शस्य श्यामला धरती की फसलें अंगड़ाई लेती हैं
सूरज की किरणों के नर्तन से,जीवन तरुणाई जगती है
उस भूमिपुत्र को करूं नमन,मैं सुख का स्वर्ण विहान हूं
जगती जिसका वंदन करती , मैं प्यारा हिंदुस्तान हूं।
जहां कला सुशोभित घर आंगन, आल्हा के गीत गूंजते हैं
जहां संस्कृतियों की हाट लगी,वीणा के राग बिहसते है
मैं शब्द शब्द संगीत भरा, मधुरिम,मधुमय,मृदु गान हूं
जगती जिसका वंदन करती , मैं प्यारा हिंदुस्तान हूं।
मैं बुद्ध अहिसा की धरती,ममता की करुण पुकार हूं
मैं नानक गौतम ईसा के सद्वचनो का श्रृंगार हूं
मैं रामायण की पावनता,गीता का जयगान हूं
जगती जिसका वंदन करती , मैं प्यारा हिंदुस्तान हूं।
जहां राम बसे हर जन-मन में, मर्यादा-दीप जलाते हैं
जहां धर्म ध्वजा, और राजनीति के कृष्ण विवेक जगाते हैं
समदर्शी समभाव रुप में,भारत मां का मान हूं
जगती जिसका वंदन करती,मैं प्यारा हिंदुस्तान हूं
है वीर प्रसू भारत सेना ,विजयी भारत का गीत मधुर, कर्तव्यों उच्चादर्शों की पावन गंगा बहती अविरल
मैं जनमत को गौरव देता,मैं लोकतंत्र की शान हूं
जगती जिसका वंदन करती मैं प्यारा हिंदुस्तान हूं।
0
.jpg)
