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पुस्तक समीक्षा :- बाल मन में अंदर तक पैठते, गुदगुदाते गीत - डॉ. विपिन पवार , पुणे


 पुस्तक समीक्षा :-

बाल मन में अंदर तक पैठते, गुदगुदाते गीत

- डॉ. विपिन पवार

हमारी पीढ़ी के लोग चंदामामा,  बालभारती, चंपक, पराग और स्पुतनिक पढ़ते-पढ़ते बड़े हुए हैं। अपने चिकने, सुंदर, विदेशी, आकर्षक कागज के कारण रूसी पत्रिका स्पुतनिक हमें विशेष प्रिय थी। हम सभी मित्र अपने बचपन में बालस्वरूप राही, हरिकृष्ण तथा विभा देवसरे, जयप्रकाश भारती, शेरजंग गर्ग, सूर्यभानु गुप्त, कन्हैयालाल नंदन, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा और काका हाथरसी के बाल गीत एवं कविताएं आपस में एक-दूसरे को सुनाया करते थे। उपर्युक्त इने-गिने रचनाकारों के अलावा उस समय भी अच्छे एवं स्तरीय बाल साहित्य की कमी मैंने महसूस की थी, जो आज पचपन वर्षों के उपरांत भी कर रहा हूं। शायद इसका कारण यह है कि आज अंग्रेजी का विश्वप्रसिद्ध विदेशी बाल साहित्य एक क्लिक पर उपलब्ध है, जो उस समय हमारे लिए दूर की कौड़ी था और विदेशी बाल साहित्य की उत्कृष्टता एवं गुणवत्ता से सुधी पाठक तो परिचित होंगे ही। 

इस अभाव के बीच एक लंबे अरसे के पश्चात “ हाथी का पाजामा ” शीर्षक से एक बाल गीत संग्रह सन 2021 में रेल मंत्रालय स्थित मेरे कार्यालय में पहुंचा था। इस संग्रह में श्री नवीन चतुर्वेदी द्वारा रचित 30 बाल गीत हैं। श्री नवीन चतुर्वेदी वरिष्ठ  साहित्यकार एवं शिक्षाविद  हैं‌। कविता, कहानी, लेखों एवं शोध पत्रों के अलावा आपके नाटक विशेष रूप से चर्चित हैं। 

श्री चतुर्वेदी ने इन बाल गीतों को अपने घर परिवार के सारे बच्चों को समर्पित किया है। सभी बच्चों के नाम भी बहुत काव्यात्मक हैं, साहित्यिक हैं एवं पौराणिक हैं, जैसे अनुकृति, अर्जुन, अर्जिता, अद्वित आदि। इन बाल गीतों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें ऐसा कोई कठिन शब्द नहीं है, जिसका अर्थ बच्चों को बड़ों से पूछना पड़े। ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता एवं गेयता की दृष्टि से सभी गीत बहुत अच्छे बन पड़े हैं, जो किसी भी बाल गीत की सफलता की सबसे बड़ी शर्त है, जैसे क्रमांक- 3 के गीत में एक बहुत सुंदर प्रयोग हुआ है- धम्म धड़ाम, जो बच्चों के बीच विशेष लोकप्रिय होगा। जहां कोई कविता हमें शिकार की बुराई के प्रति सचेत करती है, तो लंगड़ी घोड़ी कविता बाल हास्य का एक अनूठा नमूना है। कुछ कविताओं में अंग्रेजी के आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो रसग्रहण में बिल्कुल भी बाधा नहीं बनते बल्कि यह शब्द बच्चों की जुबान पर रचे-बसे हैं । 

सभी कविताएं हाथी का पाजामा, मेंढक को जुकाम, बंदर मामा धम्म धड़ाम, चूहे का सूट, शिकारी की शान, गर्मी, छींका, जाड़े का सूरज, लंगड़ी घोड़ी, शर्मिंदा मेंढक, बादल क्यों बरसे सागर पर, हैट्रिक, आवाज़ें, संगीत सभा, हिल स्टेशन, बंदर और बिल्ली, चुनाव, बादल घिर आए, बुरा न मानो होली है, चूहों की चाह, शर्मिंदा क्यों रंग पर, उल्टा पुल्टा, धमा चौकड़ी, जान बची तो लाखों पाए, बादल, लट्टू, होली का रंग, रंगभेद, हाथी की शादी और कुकड़ूं कूं....एक से बढ़कर एक हैं। 

श्री चतुर्वेदी अपने बाल गीतों के माध्यम से बच्चों का सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करते, बल्कि उन्हें कुछ काम की बातें भी बताते हैं, ज्ञान भी प्रदान करते हैं। एक बानगी देखिए... 

बंदर कूदा डाली-डाली मारी एक छलांग,

नीचे से गधा चिल्लाया मामा मेरा सलाम।

जलचरों के पारस्परिक संबंध और उनसे उपजी मनोरंजन स्थिति देखिए.......

फिसल गया मेंढक कीचड़ में,

हुआ अजूबा भारी,

दुर्घटना देखी बतखों ने,

तो किलकारी मारी ।

मेंढक शर्मिंदा था फिर भी,

मछली ने समझाया,

धरती पर जाने से ऐसा,

हो जाता है भाया‌।

पशु पक्षियों की बोलियों पर आधारित रचना की कुछ पंक्तियां हैं –

बिल्ली जब भी आती है कहती है मैं आऊं।

चूहा डर के कहता है पहले मैं छिप जाऊं।

आवाजें नामक बाल गीत का अंत कितने सुंदर ढंग से किया गया है , देखें....

आवाजों में ही बसता है यह पूरा संसार,

सारे बच्चे करते हैं इन आवाजों से प्यार‌।

एक बाल गीत में तो बच्चों को अंधविश्वास के प्रति भी सचेत किया गया है, जो विशेष सराहनीय है, 

सांप काटता है जब तब,

कितने ही मर जाते हैं लोग,

नाग देवता कहकर ही

क्यों पूजा करते उसकी लोग।

बच्चों के लिए लिखे गए इस बाल गीत में कितनी आसानी से रंगभेद की विश्वव्यापी  समस्या पर अपनी बात कह दी गई है, 

रंग सभी अच्छे होते हैं,

शर्मिंदा क्यों होती रंग पर,

शर्मिंदा होना ही है तो हो,

आलस के अपने ढंग पर ।

ये बाल गीत हमें बताते हैं कि पंचतंत्र एवं हितोपदेश की कहानियों को आधार बनाकर पशु-पक्षियों पर बाल गीत एवं कविताएं लिख देने से ही कोई बाल साहित्यकार नहीं बन जाता । संग्रह में प्रत्येक पृष्ठ पर एक कविता दी गई है। मुखपृष्ठ बहुत आकर्षक है। सुंदर चिकने कागज पर छपाई के साथ-साथ साज-सज्जा एवं प्रस्तुतिकरण उत्कृष्ट है। प्रत्येक पृष्ठ पर दिए गए चित्र बहुत ही आकर्षक एवं विषयानुकूल है।

भूमिका एवं कुछ कविताओं में भी मुद्रण की भूलें हैं, जिनसे बचा जा सकता था‌। बाल साहित्य में मुद्रण एवं व्याकरण की भूलों/अशुद्धियों को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि बाल साहित्य बच्चों के लिए मील का पत्थर साबित होता है। हमें हमारे बचपन में रूसी पत्रिका स्पुतनिक इसलिए प्रिय थी कि उसका कागज बहुत सुंदर ,चिकना एवं मनभावन था , तो चंपक इसलिए पसंद थी कि उसमें प्रदर्शित चित्र  विषयानुकूल होते थे।  उक्त दोनों विशेषताएं इस संग्रह में हैं। पुस्तक का मूल्य उपयुक्त है। प्रत्येक स्कूल एवं घर में इस पुस्तक को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 

पुस्तक : हाथी का पाजामा (बाल गीत संग्रह)

गीतकार : श्री नवीन चतुर्वेदी 

प्रकाशक : अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन, भोपाल ( मध्यप्रदेश ) 

संस्करण : प्रथम, 2021 

मूल्य:  ₹ 60


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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