काव्य :
दौड़ती भागती जिंदगी
दौड़ती-भागती ज़िंदगी ,
ना ठौर है न ठिकाना।
जब तलक जीवन है,
बस आगे बढ़ते ही जाना।
न किसी को सुध है अपनों की,
ना गैरों से कोई अपनापन।
चलता जाता अनवरत ,
यह अमूल्य जीवन।
अंधेरों में चलती जब
जीवन की गाड़ियाँ रफ़्तार में,
तब एक साँस ठहरकर पूछती,
क्या पाए हम इस बेकरार में?
थककर जब दिल बैठता है
दुनिया की अशांति से हार में,
तभी उगती है उम्मीद कोई,
जैसे सूरज छुपा हो बादल की मार में।
कभी मुस्कानें थामे राहें,
कभी आँसू भी बनते साथी।
जीवन का हर मोड़ सिखाता,
रुकना नहीं, बस चलना है आगे ही आगे।
- प्रतिभा दिनेश कर
विकासखंड सरायपाली
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