काव्य :
गढ़ तू
गढ़ तू कुछ तो गढ़,
अपनी कहानी गढ़।
ना देख अकेला हैं,
बस तू आगे बढ़।।
गढ़ तू...
चेहरे मासूम मिलेंगे,
मीठी वाणी के सरताज।
सपने दिखायेंगे बड़े बड़े,
पर वो गिरायेंगे गाज़।।
कुछ मिलेंगे ज्ञानी ध्यानी,
कुछ मिलेंगे निरा अनपढ़।
गढ़ तू...
कदम भी लड़खड़ायेंगे,
बैचेनी की होगी झलक।
पीछे मुड़कर न देखना,
देखना कितना ऊँचा फलक।।
पूछना किस्से पेड़ो से,
कभी बहार कभी पतझड़।
गढ़ तू...
राह बना अपनी तू,
खूद का न तोड़ हौसला।
चून तिनका पंछी की तरह,
रच इतिहास बना घोसला।।
छोड़ प्रपंच दुनिया की,
बनकर देख ले फक्कड़।
गढ़ तू कुछ तो गढ़,
अपनी कहानी गढ़।।
- दीपक चाकरे"चक्कर",खण्डवा
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