ad

काव्य : महापर्व कुम्भ - राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी' इटारसी


 काव्य : 

महापर्व कुम्भ

शंकर के त्रिशूल की धारा सी

गंगा, यमुना, सरस्वती की 

अजस्र वाहिनी त्रिवेणी की  

सतत पावन करे धरित्री की

समुद्र मंथन  निसृत अमृत

 छलक था,विष और अमृत 

अमृत के लिए लगी थी दौड़ 

देवों-दानवों लग रही थी होड़

सृष्टि  हेतु विषपाई बने शंकर 

गाथा ये प्रयाग के कण कण 

ब्रह्म यज्ञ हुआ था  जन-जन 

छलक था अमृतघट उज्जैन 

छलका अमृत गोदावरी घाट 

अमृतमय हरिद्वार गंगा घाट 

12 वर्ष  में साधुओं  जमघट 

तो चलें प्रयाग के अक्षय वट 

संगम तट, करोड़ों जहां नरमुंड 

कुहासा घना  शीतकारी ठंड 

नीले आसमा की खुली छतरी में साधु सन्यासी पेल रहे  दंड 

देशी विदेशी  लगाएं डुबकी 

गंगकरें पवित्र आत्मा सब की

देवतात्मा संतो की सुनें वाणी दर्शन करें  छप्पर और छाणी

१४४ वर्ष में महाकुंभ आया 

महा मोक्ष का अवसर लाया।

मिटते हैं रोग मिट्ती है माया जीवन में शुभ अवसर आया 

संत- मंत्र नागा साधु के दर्शन जीवन सफल हो पुण्य अर्जन

संगम की भूमि यह तारिणी 

पुण्य सलिला जीवनदायनी .

राम वल्लभ गुप्त 'इंदौरी'

इटारसी

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post