काव्य :
कहीं न होकर भी
कहीं नहीं होकर भी
अहसासों की छुअन
आज भी
मेरी रुह में हैं,
तू कहीं न होकर भी
हर पल मेरे साथ है।
जब भी हाथ बढ़ा
छुआ है मैंने,
प्रीत-अगन में
सुलगती तू आगोश
में आई थी,
उसी प्रेमपाश की
अगन आज भी
मेरे भीतर
धधकती है।
सोचा था
रह न पाएंगे तुम बिन
सच जी तो रहे
मगर तेरे अहसास
की साँसों और
तेरे पाश की
धड़कनों में ।
हवाओं की छूअन
में तू,
दमकती धूप में तू,
बहती शीतल चाँदनी
में बहती-लिपटती
तू ही तू
महसूस होती है,
अहसासों की.......
-डा.नीलम , अजमेर
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