देशभक्ति का साहित्य समाज को राष्ट्रीयता से जोड़ने में सेतु का कार्य करता है - डॉ.सीरोठिया
गणतंत्र दिवस पर हुई देशप्रेम के गीतों की काव्य गोष्ठी
सागर। देश के 76 वे गणतंत्र दिवस पर संस्था हिन्दी साहित्य भारती द्वारा विवेकानंद अकादमी गोपालगंज में देशप्रेम पर आधारित काव्य गोष्ठी के आयोजन में प्रतिष्ठित कवियों द्वारा अपने रचना पाठ से प्रभावित किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर के कुलाधिपति डॉ.अजय तिवारी ने कहा कि शब्द ही ब्रह्म है। साहित्यकार का राष्ट्रीय निर्माण में बड़ा योगदान है। सागर की धरा ने ख्याति प्राप्त कवि और विभूतियां दी हैं उन विभूतियों और विद्वानों को सादर नमन है। उन्होंने सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया का उपयोग करने का परामर्श देते हुए स्वरचित कविता "घर की शिक्षा हो गई निकम्मी, दोषी बाप है या फिर मम्मी" का वाचन भी किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कवि गीतऋषि डॉ.श्याम मनोहर सीरोठिया ने कहा ऐसी गोष्ठियाँ जन चेतना को जाग्रत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। देशभक्ति का साहित्य समाज को राष्ट्रीयता से जोड़ने में सेतु का कार्य करता है। उन्होंने देश के शहीदों को समर्पित गीत "बारंबार नमन भारत के बाँके वीर जवानों को,मातृभूमि पर किया निछावर, जिनने अपने प्राणों का" वाचन किया।
राष्ट्रीय भावना से प्रेरित काव्य गोष्ठी का प्रारंभ स्वर संगम समिति के अध्यक्ष हरी सिंह ठाकुर द्वारा किए गए गीत से हुआ।
तदुपरांत युवा कवयित्री रचना रची ने जहां लाल वसुधा की खातिर हंसकर गोली सहते हैं,ऐसी पावन भूमि को ही भारत माता कहते हैं, वरिष्ठ कवयित्री डॉ चंचला दवे ने तू स्वर्ण कलश,तू मुकुट मणि,तू ही सर्जक, तू ही पालक,तू ही धर्म ध्वजा का वाहक, कवि कपिल बैसाखिया ने संविधान बनाया अपना, जनतंत्र समाहित इसी में,विश्व के कोने-कोने में, छाया हमारा लोकतंत्र। वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ (सुश्री) शरद सिंह ने आजादी का भान कराता है गणतंत्र हमारा,दुनिया भर में मान बढ़ाता है गणतंत्र हमारा।कवि पुष्पेंद्र दुबे कुमार सागर ने वतन के वास्ते जीना वतन के वास्ते मरना,बहुत मुश्किल नहीं है काम तुम ये काम कर चलना। तिरंगा थाम कर चलना तिरंगा थाम कर चलना, कवि पूरन सिंह राजपूत ने सवैया छंद भारत मां सदा रखना यह अमर रहे गणतंत्र हमारा, वरिष्ठ कवि पीआर मलैया ने भारतीय संविधान पर काव्यात्मक सार, युवा कवि कपिल चौबे ने मन में लगे लगन ,लगन से बहके मन ,फिर मन ,मन से मनाए नहीं मानता,साहित्यकार ज ल राठौर प्रभाकर ने समरस और सहिष्णु देश में,सद्भावों का सदा प्रवेश, कवि आरके तिवारी ने मैया करूं मैं तेरी आरती मेरी लाज रखो ए मां भारती, प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ने माँ भारती तुमको प्रणाम, तेरे चरणों में अर्पित ये तन और प्राण तथा कवि रमेश दुबे व सौरभ दुबे ने अपनी काव्य रचनाओं का वाचन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के पूजन अर्चन और कवि पूरन सिंह राजपूत द्वारा की गई सरस्वती वंदना से हुई। हिन्दी साहित्य भारती के अध्यक्ष अंबिका प्रसाद यादव ने स्वागत भाषण देते हुए संस्था के गठन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का व्यवस्थित संचालन कोषाध्यक्ष आर के तिवारी साहित्यकार ने किया तथा श्यामलम् अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर पी एन मिश्रा, डॉ.रामरतन पांडे , रमाकांत शास्त्री,प्रदीप चौरसिया,संजू पांडे,धर्मेंद्र सोनी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
डॉ चंचला दवे, सागर