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विदेशों में योग — विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल


 विदेशों में योग

विवेक रंजन श्रीवास्तव  भोपाल 

   योग, भारत की प्राचीनतम और आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है, जिसका मूल उद्देश्य आत्मा, मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करना है। यद्यपि योग का जन्म भारत में हुआ, किंतु आज यह सीमाओं से परे जाकर एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किए जाने के बाद से योग ने न केवल स्वास्थ्य पद्धति के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक दूत के रूप में भी विश्वभर में अपनी पहचान बनाई है।

विदेशों में योग का प्रसार उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में योग और वेदांत के सिद्धांतों की व्याख्या की। इसके बाद परमहंस योगानंद, बी.के.एस. अयंगर, श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव और जग्गी वासुदेव जैसे योगाचार्यों ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई। आज अमेरिका, कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों में योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवनशैली बन चुका है।

विदेशों में योग की लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं। बढ़ते तनाव, व्यस्त जीवनशैली, मानसिक रोगों में वृद्धि और समग्र स्वास्थ्य की तलाश ने लोगों को योग की ओर आकर्षित किया है। अमेरिका में ही लगभग तीन करोड़ से अधिक लोग नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं। वहां हठ योग, विन्यासा योग, बिक्रम योग और पावर योगा जैसी कई विधाएँ प्रचलित हैं, जो विभिन्न शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं।

विदेशी चिकित्सा और विज्ञान जगत ने भी योग की प्रभावशीलता को मान्यता दी है। अमेरिका की ‘नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ’ जैसी संस्थाओं ने योग पर वैज्ञानिक शोध किए हैं, जिनमें यह प्रमाणित हुआ है कि योग उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, अवसाद, मधुमेह और मोटापे जैसे विकारों में सहायक है। इससे योग को एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे में स्थान मिला है।

हालाँकि, योग के इस वैश्विक विस्तार के साथ-साथ कुछ चिंताएँ भी सामने आई हैं। पश्चिमी देशों में योग का बढ़ता बाजारीकरण इसकी मूल भारतीय आत्मा से दूर जाने का संकेत देता है। योग अब एक उद्योग बन चुका है जिसमें योगा मैट्स, ब्रांडेड वस्त्र, संगीत, महंगे प्रशिक्षण और कॉरपोरेट सेमिनार शामिल हैं। कई बार इसे केवल एक फिटनेस अभ्यास या फैशन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे इसके आध्यात्मिक और दर्शनात्मक पक्ष की उपेक्षा होती है। यह एक प्रकार का सांस्कृतिक ‘अपचयन’ (dilution) भी कहा जा सकता है, जिसमें योग का उपयोग तो होता है, पर उसकी आत्मा खो जाती है।

भारत सरकार और अनेक सांस्कृतिक संस्थानों ने इस स्थिति को संतुलित करने के प्रयास किए हैं। भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया, जिसे आज विश्व के 170 से अधिक देशों में मनाया जाता है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), विभिन्न दूतावास और प्रवासी भारतीय संस्थान विदेशों में योग कार्यशालाओं, प्रशिक्षकों और पाठ्यक्रमों के माध्यम से योग के असली स्वरूप को प्रचारित कर रहे हैं।

आज विदेशों में कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थानों में योग प्रशिक्षण, डिप्लोमा और डिग्री कोर्स भी उपलब्ध हैं। ‘योगा अलायंस’ जैसी संस्थाएँ योग शिक्षकों को प्रमाणित करती हैं, जिससे योग अब एक पेशेवर करियर विकल्प भी बन गया है। इसके साथ ही यह आवश्यक हो गया है कि योग शिक्षकों की गुणवत्ता, उनकी प्रशिक्षण पद्धतियाँ और दर्शन संबंधी समझ सुनिश्चित की जाए, ताकि योग केवल आसनों का प्रदर्शन बनकर न रह जाए।

विदेशों में योग का विस्तार एक सांस्कृतिक, चिकित्सकीय और आत्मिक आंदोलन की तरह है। यह न केवल भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक है, बल्कि वैश्विक मानवता के लिए शांति, संतुलन और स्वास्थ्य का संदेश भी है। योग भारत की मिट्टी से जन्मा हुआ वह अमूल्य उपहार है, जो आज पूरी दुनिया को जोड़ रहा है – शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से और आत्मिक रूप से। आवश्यकता इस बात की है कि योग के इस वैश्विक स्वरूप में उसकी भारतीय आत्मा सुरक्षित रहे, ताकि यह केवल शरीर नहीं, बल्कि आत्मा को भी स्वस्थ और संतुलित कर सके।

 - विवेक रंजन श्रीवास्तव

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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