काव्य :
रस दार दोहे..
गरजत बरसत रात दिन,
तरसत गोरी नैन!
आवन की पिया कह गए,
आवत नाही चैन!!
सज धज नदिया जा रही,
अब सागर के पास!
मैं विरहिन पनघट खड़ी,
लेकर अपनी प्यास!!
हरा भरा चहुं ओर है,
बरस रहा है आब!
पाती भेजी मिलन की,
आया नहीं जवाब!!
आंखों में छाया नशा,
तन मन में उन्माद!
अंग अंग मेरा जले,
कर साजन की याद!!
टप टप टप बूंदे गिरे,
तन मन द्वय झुलसाय!
बूंदे गिरती देह पर,
दिल में आग लगाय!!
- सुरेश गुप्त ग्वालियरी
विंध्य नगर बैढ़न
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