नारी व्यथा
हँसते-हँसते कितने ही
गमों को पीते जाना,
अपने कष्टों को ,तकलीफों को
बिना पर्दे सबसे छुपाना,
अपनी ख्वाहिशों को
मजबूरियों तले दबाना
अपनी पसंद छोड़
दुसरो की पसंद का खाना
अपने घावों को अनदेखा कर
किसी का मरहम बन जाना
अपने लिए ना जी कर
अपनों के लिए जिया जाना
अकेले रास्ते से गुज़रने पर
किसी की कुदृष्टि का शिकार हो जाना
पसंद के कपड़े पहनने पर
बाहरी लोगों द्वारा टोका जाना
अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने पर
बेशर्म होने का तमगा पाना,
इतनी विकट परिस्थितियों में भी
अपना सम्मान बचाना,
आसान नही होता है
एक नारी का नारी हो पाना..
-शुभम जैन"पराग" उदयपुर (राज.)
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काव्य
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