पानी ,संस्कृतिऔर हम
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून, ये हम सभी जानते हैं,जल ही जीवन है,ये वाक्य भी एक अभियान की तरह चलाया जाता रहा है, किन्तु हम वास्तव में इस के लिए स्वयं के तौर पर कितने गंभीर हैं,यह विचार करने की बात है।
जीवन में जल संरक्षण की महती आवश्यकता है,आजीवन।केवल त्योहार तक हम स्वयं को सीमित रखें और हमारे पर्व पर,संस्कृति पर इसे आक्रमण की तरह सोचना,अनुचित होगा।अब होली में कितना पानी खर्च हो जायेगा,यह पानी के सामान्य दुरूपयोग की तुलना में कुछ नहीं है।
पानी के अभाव और इसके भाव पर ध्यान देने की आवश्यकता है,पहले पानी के बाहुल्य के समय पानी बिकता नही था,अब सीलबंद पानी बिक रहा है,क्यों, एक तो शुद्ध पेय जल मिल सके और दूसरा कारण कि हम इसे,दुरूपयोग न करें ऐसा मेरा सोचना है।
कल्पना कीजिए ,जहां पानी की कमी है,दूर मरुथली इलाकों में, वहां जीवन जीने के लिए,इसी अमूल्य पानी के लिए मीलों दूर चलकर महिलाएं जाती हैं और एक दो गागर पानी ,से जीवन यापन करना होता है।
कुओं में बहुत गहरे जाकर ,किस कठिनाई से बाल्टी भर पानी मिल पाता है,ग्रीष्म ऋतु में तो कुएं सूख भी जाते हैं,देश के कई प्रांतों में यह स्थिति बनती जा रही है।जलवायु परिवर्तन की स्थितियां,बहुत नीचे जाता भूजल स्तर,ये चेतावनियां है,जो प्रकृति हमे देती रहती है,किंतु हममें से कितने हैं ,जो जल के संरक्षण या इसके दुरूपयोग को रोकने के प्रति,अपने आचरण में गंभीरता दिखाते हैं, हम सभी विचार करें।
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,अरे पानी तो बेशकीमती स्वर्ण है, प्राण वायु की तरह यह तो जीवन ही है,।
वैसे भी सनातन संस्कृति में जल भगवान और देवी का रूप है,जीवनदायिनी नदियां नर्मदा,गंगा,जमुना जीवन दायिनी बनी रहे,पोखरे ,झीलें, ताल,तलैया,जीवन नैया पार लगाएं यह तभी संभव बना रहेगा,जब जल के प्रति सम्मान हमारे प्रयासों में,जल सदुपयोग में,और जल संरक्षण के आचरण में,व्यवहार में पूर्ण रूपेण शामिल रहेगा।
हमारा पानी यानी,हमारा सम्मान,हमारी करुणा,हमारे आंसुओ में निहित है,जल के प्रति नयन,मुंह न मोड लें,आइए विचारों को सकारात्मक मोड़ दें,हमारी होली सद्भाव,प्रेम के रंगो में मने ।होली पर कोई विचार ,कोई जल के दुरूपयोग के विचारो का हमला हो नही सकता,,किसी भी को
ऐसा विचार मन में लाने का अधिकार भी नहीं है।हमारी संस्कृति,हमारे त्यौहार अक्षुण हैं
और बने रहेंगे।
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल