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काव्य : पत्थर पर फूल चितेरा था - रामनारायण सोनी,इंदौर


 

पत्थर पर फूल चितेरा था


लाऊँ कहाँ से पल लौटा कर 

जो तुम ले कर चले गये

रखूँ कहाँ यादों के पंछी 

पवन, गगन से छले गये

नयन मेरे ये रीत गये हैं, 

अधरों के सब गीत गये हैं

निविड़ निशा में दीप आस के

अँधियारों से छले गये


छोड़े उन पद चिह्नों को मैं 

पागल सा देखा करता हूँ

उनमें बिम्ब प्रणय के अपने

निशिदिन ढूँढा करता हूँ

इस नदिया के खड़े किनारे, 

इन पादप वृन्दों से मैं

किधर गये हो? आ कर इन से 

अकसर पूछा करता हूँ


जिस पत्थर पर पत्थर से ही 

तुमने फूल उकेरा था

मेरे दिल पर थपकी देकर 

कुछ वैसा ही चितेरा था

देखो आ कर अब तक दोनों 

कितने ताजा दम है 

महक रहा है अब भी वैसा

जितना पहले घनेरा था


-रामनारायण सोनी,इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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