पत्थर पर फूल चितेरा था
लाऊँ कहाँ से पल लौटा कर
जो तुम ले कर चले गये
रखूँ कहाँ यादों के पंछी
पवन, गगन से छले गये
नयन मेरे ये रीत गये हैं,
अधरों के सब गीत गये हैं
निविड़ निशा में दीप आस के
अँधियारों से छले गये
छोड़े उन पद चिह्नों को मैं
पागल सा देखा करता हूँ
उनमें बिम्ब प्रणय के अपने
निशिदिन ढूँढा करता हूँ
इस नदिया के खड़े किनारे,
इन पादप वृन्दों से मैं
किधर गये हो? आ कर इन से
अकसर पूछा करता हूँ
जिस पत्थर पर पत्थर से ही
तुमने फूल उकेरा था
मेरे दिल पर थपकी देकर
कुछ वैसा ही चितेरा था
देखो आ कर अब तक दोनों
कितने ताजा दम है
महक रहा है अब भी वैसा
जितना पहले घनेरा था
-रामनारायण सोनी,इंदौर
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काव्य