मेरी कविता में समाओ माँ
मैं छुप जाता था जैसे तेरे आँचल में
तूँ लेती थी बचा,हर वर्षा और बादल में
मुझे न भूखा रहने देती,मेरी हर पीड़ा हर लेती
वैसा ही कुछ कर जाओ माँ, मेरी कविता में तुम समाओ माँ
तूनें मुझे प्रेम से बाँधा
तुझ बिन मैं हर दिन हूँ आधा
मेरे घाव,मेरे आँसू, तुम पल्लू से पोछ जाओ माँ
मेरी कविता में तुम समाओ माँ
जीवन तुझसे,प्राण है तुझ से
जीवन का हर,आँगन तुझ से
तूनें पिलाया, दूध का अमृत,तुम खुशियों के आँसू ,बहाओ माँ
मेरी कविता मे समाओ माँ
मैं जानूँ तूँ, साथ सदा है
कभी न मुझसे,तूँ जुदा है
अक्षर,शब्दों में तूँ है मेरे, फिर अहसास दिलाओ माँ
मेरी कविता में तुम समाओ माँ
क्या कभी तुझे ,बेटा लिख सकता
क्या तेरा रूप ,कोई दिख सकता
हर मन जाने,ये है नामुमकिन
इसको ,मुमकिन कर जाओ माँ
मेरी कविता में समाओ माँ
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र,भोपाल
Tags:
काव्य
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