लघुकथा : ट्रैफिक जाम
"सुम्मि राजू को सुबह जल्दी तैयार कर देना, सावन सोमवार है, ट्रैफिक जाम रहेगा, जल्दी निकलना होगा ।" रजत ने अपनी पत्नि से कहा ।
"सुम्मि कुछ बोलती उससे पहले ही चार वर्षीय राजू रूंआसा होकर बोल पड़ा- "मम्मी मैं सुबह इतनी जल्दी नहीं उठूंगा ।"
"उठना पड़ेगा बेटू, कल कांवड़ियों की भीड़ से लम्बा ट्रैफिक जाम रहेगा । स्कूल मिस नहीं करते । अभी सो जाओ ।" कहकर अपने बेटे राजू को थपकियां देकर सुलाते हुए बड़बड़ाने लगी ....."क्या मुसीबत है... कोई भी धार्मिक पर्व हो या त्यौहार, इतना ट्रैफिक जाम हो जाता है कि सारे कार्य बाधित हो जाते हैं, दो-तीन किलोमीटर तक वाहनों की लाइन लग जाती है ...बच्चे, बुजुर्ग ,कामकाजी, बीमार.... सब लोग परेशान हो जाते हैं ! क्या भगवान इन सब आडंबरों से प्रसन्न होते हैं ?" सुम्मि के चेहरे पर तनाव स्पष्ट झलक रहा था ।
पति रजत ने समझाते हुए कहा- "तुम नाहक परेशान हो रही हो, वैसे भी यह चीजें हमारे बस में नहीं है । बच्चा अलग परेशान है, उसे भी सुबह बहुत जल्दी उठना होगा । हम बड़े तो लाइन में लंबा इंतजार कर सकते हैं, लेकिन बच्चों का क्या दोष ?"
"दोष तो उस अम्मा का भी नहीं था जो कुछ दिन पहले मोहर्रम के जुलूस की भेंट चढ़कर समय से अस्पताल न पहुंच सकी और प्राण गवां बैठी ! छपा था न अखबारों में, क्या हुआ? सुम्मि गुस्से से तमतमा कर बोली । पति असहाय-सा मुंह फेरकर लेट गया और बोला-"सो जाओ, मुझे भी सुबह ऑफिस जाना है ।" सुम्मि भी करवट लेकर लेट गई, उसके दिमाग में बेटे राजू के शब्द गूंज रहे थे- "मम्मी मैं सुबह इतनी जल्दी नहीं उठूंगा ।"-
- हेमलता शर्मा भोली बेन, इंदौर, मध्यप्रदेश
धर्म के नाम पर बढ़ रहे आडम्बरों से एक संवेदनशील व्यक्ति का चिंतित होना निहायत स्वाभाविक है. धार्मिक उत्सव अब शक्ति प्रदर्शन के अवसर बनते जा रहे हैं. लोगों की आस्था का राजनीतिक लोग भरपूर दोहन कर रहे हैं.
ReplyDeleteसम्वेदनशील और विचारणीय विषय को उठाती है ये कहानी. लेखक को साधुवाद.