काव्य :
कमल कली कमल कली सोने चली,
संध्या अति अभिराम
रवि रश्मियाँ समेट कर,
करें तनिक विश्राम।
प्रातः पूरब द्वार पर
लिए गुलाबी धूप
अपलक उसे निहारते,
कमल अमल अपरूप।
अम्बर फैली लालिमा,
यहाँ गुलाबी रंग
प्रेम और सौंदर्य का
कैसा अद्भुत संग!
स्वर्ण-रश्मि की डोरियाँ,
पवन हिंडोला डाल
दिनकर दे गलबाहियां,
झूले मृदुल मृणाल।
रहे सदा जोड़ी अमर,
अम्बर-अवनि अनादि
ईश-जीव का प्रेम यह,
हरे जनों की व्याधि।
- डॉ. सुधा कुमारी ,दिल्ली
Tags:
काव्य