काव्य : किशन बाँसुरी तूने जब भी बजाई
ग़ज़ल
किशन बाँसुरी तूने जब भी बजाई
तिरी राधिका भी चली दौड़ी आई
नहीं और कुछ देखने की तमन्ना
तुम्हारी जो मूरत है मन में समाई
हुई राधिका सी मैं भी बाबरी अब
कथा भागवत माँ ने जब से सुनाई
रहे भक्त तेरी शरण में सदा जो
भंवर से उसी की है नैया बचाई
किया नाश तुमने अधर्मी का जग में
सदा सत्य की राह सबको दिखाई
दिया कर्म का ज्ञान सारे जगत को
चहूँओर ऐसी अलख है जगाई
लगी नाचने *कामिनी* होश खोकर
अजब साँवरे तुमने लीला रचाई।
-डॉ.कामिनी व्यास रावल,उदयपुर
Tags:
काव्य
.jpg)
